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बिहार : बड़े से छोटे स्कूल तक में कमीशन का खेल, 800 की किताबों के लिए चुकाना पड़ रहा 5000

प्राइवेट स्कूल : एनसीईआरटी की किताबों की जगह बेची जा रही हैं प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबें पटना : नये शैक्षणिक सत्र की एक अप्रैल से शुरुआत हो रही है. स्कूलों में एडमिशन के साथ ही किताबों की बिक्री भी शुरू कर दी गयी है. आदेश के अनुसार स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबें पढ़ायी जानी हैं, […]

प्राइवेट स्कूल : एनसीईआरटी की किताबों की जगह बेची जा रही हैं प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबें
पटना : नये शैक्षणिक सत्र की एक अप्रैल से शुरुआत हो रही है. स्कूलों में एडमिशन के साथ ही किताबों की बिक्री भी शुरू कर दी गयी है. आदेश के अनुसार स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबें पढ़ायी जानी हैं, इसके बावजूद स्कूलों में प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबों की बिक्री की जा रही है.
इससे अभिभावकों की जेब हल्की और स्कूलों की तिजोरी भारी हो रही है. वजह कि एनसीईआरटी की किताबों के सेट की कीमत औसतन आठ-नौ सौ रुपये के करीब होती है. जबकि प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबों का सेट चार-पांच हजार रुपये में बेची जा रही है.
एनसीईआरटी किताबों की संख्या व मूल्य कम
एनसीईआरटी में विषयवार किताबों की कीमत के साथ ही संख्या भी कम है. प्राइमरी से हायर सेक्शन तक की कक्षाओं के लिए सात-आठ किताबें होती हैं. जबकि प्राइवेट पब्लिशर्स की 16-17 किताबें स्कूलों में पढ़ायी जाती हैं. एक दुकानदार ने बताया कि कुछेक स्कूल तो 20-22 किताबें भी लागू कर देते हैं. इस कारण अभिभावकों को किताबों की चार गुना से अधिक कीमत चुकानी पड़ रही है.
हर साल बदली जा रही किताब
प्रावधानों की बात करें, तो 10 वर्ष के अंतराल पर सिलेबस में बदलाव किया जाता है. किताबें भी उसी के अनुसार बदलती हैं. लेकिन प्राइवेट स्कूल हर साल किताबें बदल देते हैं. किताब में कुछ चैप्टर अलग होते हैं, ताकि विद्यार्थियों को मजबूरन नयी किताबें खरीदनी पड़े.एनसीईआरटी में प्राइमरी से हायर सेक्शन तक की कक्षाओं के लिए आठ किताबें हैं.प्राइवेट पब्लिशर्स की 16-17 किताबें स्कूलों में पढ़ायी जाती हैं.
अभिभावकों के हक का कमीशन खा जाते हैं स्कूल
प्राइवेट पब्लिकेशन की किताबों पर अमूमन 20 से 50 प्रतिशत तक की छूट दी जाती है. लेकिन किताब खरीदने वाले अभिभावकों को यह छूट नहीं मिलती. छूट की रकम कमीशन के रूप में स्कूलों के एकाउंट में चली जाती है.बताया जाता है कि इसका कुछ हिस्सा दुकानदार के हिस्से में भी जाता है.
दबाव नहीं, मजबूर करते हैं
सीबीएसई के सर्कुलर में यह भी कहा गया था कि स्कूल
एनसीईआरटी की किताबों के अलावा अन्य पब्लिशर्स की किताबें खरीदने के लिए अभिभावकों पर दबाव नहीं बनायेंगे. लेकिन स्कूल उन पर सीधे दबाव नहीं बना कर प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबें खरीदने के लिए मजबूर कर रहे हैं. स्कूलों द्वारा अभिभावकों को बुक लिस्ट न देकर स्कूले में बने स्टॉल से ही किताबें दी जा रही हैं. ऐसा नहीं होने की स्थिति में निर्धारित दुकान से ही किताबें खरीदने को कहा जा रहा है.
स्टेशनरी में भी कमाई
किताबों के अलावा कॉपी, कवर समेत अन्य स्टेशनरी की भी अधिक मूल्य पर बिक्री की जा रही है. बड़ी कंपनियों के नाम पर 120 पेज की कॉपी पर एमआरपी 35-40 रुपये तक छपवाकर बेची जा रही है. जबकि लोकल कॉपियों इससे आधे मूल्य पर मिल जाती हैं.
किताब के साथ… स्टेशनरी का भी ठेका
स्कूलों द्वारा पब्लिशर्स अथवा विक्रेता को किताब के साथ ही स्टेशनरी का भी ठेका दिया जाता है. स्टेशनरी का कमीशन किताब से अलग होता है. इस तरह स्कूल में लगनेवाले स्टॉल में कॉपी, पेंसिल, रबर, कवर, नेम स्टीकर समेत अन्य सामग्री भी किताबों के साथ ही उपलब्ध करायी जाती है.
चूंकि कॉपी, कवर आदि को लेकर स्कूल द्वारा किसी तरह की आपत्ति न की जाये, इससे बचने के लिए अभिभावक भी स्कूल के स्टॉल से किताबों के साथ ही स्टेशनरी भी खरीद लेना मुनासिब समझते हैं.
बड़े से छोटे स्कूल तक में कमीशन का खेल
एक किताब विक्रेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कमीशन ही किताब ही गुणवत्ता का आधार होता है. इसलिए हर छोटे-बड़े स्कूलों में लाखों रुपये के कमीशन पर किताबें चलाने का सौदा किया जा रहा है.
स्कूल में जितने छात्र-छात्राएं होते हैं, उससे किताब व कॉपियों समेत अन्य पाठ्य सामग्री की संख्या को गुणा कर दिया जाता है. उसके बाद किताबों की लागत, पब्लिशर्स की बचत और स्कूल की कमीशन को जोड़ा जाता है. उसके बाद किताबों का मूल्य तय होता है.
पब्लिशर्स पहले स्कूल को तयशुदा राशि का भुगतान कर देते हैं, उसके बाद उन्हें स्कूल में स्टॉल लगाने या तयशुदा दुकान पर किताबें उपलब्ध कराने की सहमति दी जाती है.
अभिभावकों को… बुक लिस्ट नहीं देते स्कूल
कुछ अभिभावकों ने बताया कि स्कूल या तो अपने कैंपस में लगे स्टॉल से किताब-कॉपी खरीदने को कहते हैं या फिर किसी तयशुदा दुकान का पता बता देते हैं. स्कूल अपनी दुकानदारी व कमीशन कमाने के लिए ऐसा करते हैं. इस बार भी ऐसा ही हो रहा है. शहर के कुछ नामचीन स्कूलों ने वार्षिक परीक्षा के रिजल्ट की घोषणा के साथ ही किताबों की बिक्री की तिथि घोषित की है. लेकिन बुक लिस्ट नहीं दी है.
किताबें स्कूल कैंपस में बने स्टॉल में ही मिलेंगी. वहां क्लास बताने पर किताब व कॉपियों के सेट के साथ ही अन्य सामग्री भी मिल जायेगी. अभिभावकों को केवल तय राशि का भुगतान करना होगा.
सीबीएसई स्कूल भी फायदा उठाने में पीछे नही
पिछले वर्ष केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने एक सर्कुलर जारी कर संबद्ध स्कूलों को केवल एनसीईआरटी की की किताबें चलाने का ही निर्देश दिया था. लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट के एक फैसले के स्कूलों में प्राइवेट पब्लिशर्स की पैठ बरकरार रही. सीबीएसई स्कूल भी इसका फायदा उठाने में पीछे नहीं है. इन स्कूलों में भी प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबों को प्रमुखता दी जा रही है.

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