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बिहार : गंडक व बूढ़ी गंडक में दिन पर दिन हो रही पानी की कमी…जानें क्‍या कहते हैं पर्यावरणविद

पटना : गंडक और बूढ़ी गंडक नदियां हिमालय से निकलकर नेपाल होते हुए बिहार में प्रवेश करती हैं. गंडक नदी सोनपुर के पास गंगा में मिल जाती है. इससे छह जिलों में सिंचाई के लिए नहरें बनायी गयी हैं. वहीं, बूढ़ी गंडक बिहार में प्रवेश करने के बाद मुंगेर के पूर्वोत्तर में गंगा से मिल […]

पटना : गंडक और बूढ़ी गंडक नदियां हिमालय से निकलकर नेपाल होते हुए बिहार में प्रवेश करती हैं. गंडक नदी सोनपुर के पास गंगा में मिल जाती है. इससे छह जिलों में सिंचाई के लिए नहरें बनायी गयी हैं. वहीं, बूढ़ी गंडक बिहार में प्रवेश करने के बाद मुंगेर के पूर्वोत्तर में गंगा से मिल जाती है.
इससे सिंचाई सुविधा का विकास नहीं हुआ है. बाढ़ के समय को छोड़कर अन्य मौसम में इन दोनों नदियों में पहले के मुकाबले पानी की कमी होती जा रही है. इसका असर गंडक से निकलने वाली नहरों के पानी पर भी पड़ा है और फसलों की सिंचाई बाधित हुई है. इसका मुख्य कारण बारिश की कमी और नदियों में गाद की समस्या बतायी जा रही है.
इन दोनों नदियों में पानी का घटना या बढ़ना मूलरूप से बारिश पर निर्भर करता है. जिस साल नेपाल और चंपारण के इलाके में अच्छी बारिश होती है उस साल इन नदियों में अच्छी मात्रा में पानी आ जाता है. इसी औसत से नहरों में पानी आने से सिंचाईक्षमता में बढ़ोतरी हो जाती है.
गंडक परियोजना बिहार के वाल्मीकि नगर के निकट गंडक नदी पर निर्मित है. इससे दो नहरें निकाली गयी हैं. पश्चिम की ओर तिरहुत और पूर्व की ओर सारण नहर. इस समय तिरहुत नहर में मरम्मत और पुनरुद्धार का काम चल रहा है. वहीं, सारण नहरका विस्तार करने की योजना है. इसके तहत समस्तीपुर में भी नहरें बनायी जायेंगी.
गंडक से 8,32,000 हेक्टेयर जमीन पर सिंचाई सुविधा
जल संसाधन विभाग के आधिकारिक सूत्रों की मानें तो तिरहुत और सारण नहरों से कुल सात जिलों में सिंचाई सुविधा उपलब्ध है. इनमें पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, गोपालगंज, सीवान, सारण, वैशाली और मुजफ्फरपुर शामिल हैं. सातों जिलों के कुल 11,25,890 हेक्टेयर जमीन पर सिंचाई सुविधा उपलब्ध करवाने की योजना थी.
इसमें से करीब 8,32,000 हेक्टेयर जमीन पर सिंचाई सुविधा मिलने लगी है लेकिन नहर में मरम्मत का काम होने से रबी फसलों के लिए सिंचाई सुविधा फिलहाल बंद है. वहीं, खरीफ फसल के लिए इस साल करीब 5,40,263 हेक्टेयर जमीन पर सिंचाई के लिए पानी दिया गया है. इसके पिछले साल खरीफ फसल के लिए 4,47,256 हेक्टेयर जमीन पर सिंचाई के लिए पानी मिला.
– क्या कहते हैं स्थानीय लोग : इन दोनों नहरों के इलाके में रहने वाले स्थानीय लोगों की मानें तो वैशाली, मुजफ्फरपुर सहित पूर्वी व पश्चिमी चंपारण में सिंचाई मुहैया कराने में ये नहरें विफल साबित हुई हैं. पूर्वी व पश्चिमी चंपारण में गंडक नहरों से सिर्फ 20 से 25 फीसदी क्षेत्र में ही किसी तरह सिंचाई हो पा रही है. ऐसे में करीब 75 फीसदी इलाका सिंचाई से वंचित है.
बाढ़ के समय पानी
करीब 5 साल बाद अगस्त, 2017 में बूढ़ी गंडक के जलस्तर में लगातार बढ़ोतरी देखी गयी. इसमें अचानक पानी का बहाव इतना तेज आया कि मुजफ्फरपुर के पास तटबंध टूट गया. इसके बावजूद पानी बढ़ने का सिलसिला तेज गति से लगातार जारी रहा. स्थानीय लोगों की मानें तो करीब 10 साल बाद नदी का यह रूप दिखा.
क्या कहते हैं पर्यावरणविद
पर्यावरणविद प्रो आरके सिन्हा का कहना है कि हिमालय से आने वाली नदियां लंबी दूरी तय कर आती हैं. ऐसे में इनमें गाद की समस्या भी इनके उद्गमस्थल से ही शुरू हो जाती है. इसका प्रभाव यह होता है कि नदियों में गाद भरने से इनकी प्रवाह क्षमता कम होती जाती है और इनकी दूरी घटती चली जाती है. कभी-कभी तो इस कारण से नदियां अपना रुख भी बदल लेती हैं. कुछ ऐसा ही गंडक और बूढ़ी गंडक में भी हो रहा है.

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