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पानी गुणवत्ता की जांच कराने को लेकर छह माह इंतजार

पटना : ग्रामीण इलाके में जिस पानी को पीने का उपयोग लोग कर रहे हैं, वह कितना स्वच्छ है. इसकी गुणवत्ता की जांच कराने के लिए कम से कम छह माह और इंतजार करना होगा. पानी की गुणवता की जांच कराने के लिए स्थापित होनेवाले प्रयोगशाला की प्रक्रिया काफी धीमी है. एकाध जिले को छोड़कर […]

पटना : ग्रामीण इलाके में जिस पानी को पीने का उपयोग लोग कर रहे हैं, वह कितना स्वच्छ है. इसकी गुणवत्ता की जांच कराने के लिए कम से कम छह माह और इंतजार करना होगा. पानी की गुणवता की जांच कराने के लिए स्थापित होनेवाले प्रयोगशाला की प्रक्रिया काफी धीमी है. एकाध जिले को छोड़कर गुणवत्ता की जांच के लिए पूरे राज्य में पीएचइडी के लोक स्वास्थ्य अनुमंडल में लगभग 22 करोड़ से स्थापित होनेवाले 76 जांच प्रयोगशाला में कहीं जमीन की समस्या आ रही है तो कहीं प्रक्रिया की शुरूआत ही नहीं हुई है. नतीजा लोगों को पानी की गुणवत्ता जांच के लिए मिलनेवाले सुविधा अभी तत्काल नहीं मिलनेवाली है.तब तक लोगों को पहले से इस्तेमाल होनेवाले पानी पी कर संतुष्ट होना होगा .

प्रयोगशाला स्थापित करने की प्रक्रिया धीमी : हर जिले में पहले से स्थापित जांच प्रयोगशाला के अलावा कम से कम दो-दो प्रयोगशाला स्थापित होना है. ताकि गांव के लोग इस्तेमाल करनेवाले पानी की गुणवत्ता के बारे में जान सके. जांच प्रयोगशाला स्थापित करने की प्रक्रिया धीमी है. जांच प्रयोगशाला स्थापित करने का काम पिछले साल दिसंबर तक समाप्त होना था. लेकिन विभागीय अधिकारियों की लापरवाही से प्रयोगशाला स्थापित करने में दिलचस्पी नहीं दिख रही है.
दो बार होगी पानी गुणवत्ता की जांच
पानी की गुणवता की जांच समय-समय पर जरूरी है.स्थापित होनेवाले नये जांच प्रयोगशाला को राष्ट्रीय स्तर की संस्था एनएबीएल से मान्यता मिल गयी है. साल में दो बार पानी की गुणवत्ता की जांच होगी. सार्वजनिक जगहों पर उपलब्ध कराये जानेवाले पानी की जांच मानसून शुरू होने से पहले होगा. मानसून खत्म होने के बाद पुन: पानी की जांच होगी. पानी की जांच कर यह पता लगाया जायेगा कि जो पानी का उपयोग हो रहा है वह पीने के लायक है या नहीं. प्रयोगशाला में पानी की जांच के बाद आनेवाले परिणाम की जानकारी सार्वजनिक तौर पर लोगों को दी जायेगी. ताकि आम लोगों के लिए जलापूर्ति व्यवस्था की गुणवत्ता सुनिश्चित हो सके.आधिकारिक सूत्र ने बताया कि प्रयोगशाला स्थापित करनेवाली एजेंसी ही अपने स्तर से जांच प्रयोगशाला में कर्मियों की व्यवस्था करेगी. एजेंसी द्वारा पांच साल तक जांच प्रयोगशाला का मेंटेन होगा.

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