बचपन की ‘लूट’ l सालाना दो हजार बच्चे घरों से हो रहे गायब
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मासूमों को गुनाहों की ट्रेनिंग दे रहे बच्चों के ”कारोबारी”
बचपन की ‘लूट’ l सालाना दो हजार बच्चे घरों से हो रहे गायब पटना : प्रदेश में चाइल्ड ट्रैफिकिंग (बच्चों का अवैध व्यापार) करने वाले गिरोहों की गतिविधियां चरम पर हैं. झारखंड और प्रदेश के सीमावर्ती जिलों से कमजोर वर्ग के बच्चों को उठाकर या खरीदकर लाया जाता है. इन्हीं बच्चों को अपराध की तमाम […]
पटना : प्रदेश में चाइल्ड ट्रैफिकिंग (बच्चों का अवैध व्यापार) करने वाले गिरोहों की गतिविधियां चरम पर हैं. झारखंड और प्रदेश के सीमावर्ती जिलों से कमजोर वर्ग के बच्चों को उठाकर या खरीदकर लाया जाता है. इन्हीं बच्चों को अपराध की तमाम विधाओं मसलन चोरी, पेशेवर भिक्षावृत्ति में खपा दिया जाता है. इसका खुलासा हाल ही में हुआ जब कुछ बच्चों ने उनकी इच्छा के खिलाफ मोबाइल और दूसरी चोरी के लिए बाध्य किये जाने की शिकायत अफसरों के सामने बयां की.
खास बात यह है कि पुलिस के सामने खुलासा होने के बाद भी पुलिस ऐसे लोगों के गिरोह का पर्दाफाश करने में नाकामयाब रही है. इस पूरे मामले में चिंता की बात यह है कि प्रदेश में करीब हर साल दो हजार से अधिक बच्चे घरों से गायब हो जाते हैं या उनके माता-पिता की मजबूरी
मासूमों को गुनाहों…
का फायदा उठा कर उन्हें खरीद लिया जाता है.
मंगलवार को पटना के राजीव नगर थाने में बेहद डरे हुए 12 वर्षीय छाेटू ने अपनी दर्द भरी कहानी बतायी. उसने बताया कि वह झारखंड के साहेबगंज जिले के तेलझारी का रहने वाला है. उसके पिता नहीं है. उसे कुछ लड़के गांव से पटना ले आये, जहां एक कमरे में बंद कर उसे माेबाइल चोरी की ट्रेनिंग दी गयी. इसके बाद उसे सड़कों पर छोड़ लोगों के मोबाइल चोरी करने को कहते. इसी क्रम में वह पकड़ा गया. पुलिस के हाथ लगते ही गिरोह के लोग भाग गये. उसने बताया कि चोरी नहीं करके लाने पर खाना-पीना भी देना बंद कर देते और मारपीट भी करते थे. बीते माह कुंदन नाम का लड़का भी इसी तरह से मोबाइल चोरी कराने वाले गिरोह के हाथ लग गया था.
प्रति माह आठ से 10 बच्चे गिरोह में होते हैं शामिल
पटना के बेली रोड स्थित ‘अपना घर’ के अनुसार प्रतिमाह होम में ऐसे आठ से 10 बच्चे भेजे जाते हैं, जाे किसी-न-किसी सक्रिय गिरोह से जुड़े होते हैं. उन बच्चों से या तो चोरी का काम करवाया जाता है या फिर उन्हें भिक्षावृत्ति के कार्यों में लगा दिया जाता है. इनमें ज्यादातर बच्चे बाॅर्डर एरिया के होते हैं. जैसे नेपाल से सटे जिले किशनगंज, सीतामढ़ी, अररिया, यूपी से सटे जिले सीवान और सारण के होते हैं. वहीं, झारखंड के तेलझारी से सबसे अधिक बच्चे आते हैं.
3,768
बच्चे दूसरे राज्यों से मुक्त कराये गये
सीआईडी, कमजोर वर्ग के आंकड़े बताते हैं कि बिहार में 3071 बच्चे अब भी लापता हैं. ये बच्चे कहां है? क्या कर रहे हैं? इस सबंध में खोजबीन जारी है. आंकड़ों के मुताबिक बिहार में प्रतिवर्ष करीब 2000 बच्चे गायब होते हैं. ये आंकड़े उन्हीं बच्चों के हैं, जो थाने में एफआईआर
3,768 बच्चे दूसरे…
के रूप में दर्ज हैं. वहीं, श्रम संसाधन के आंकड़ों के मुताबिक 3,768 बच्चे बाल श्रमिक के रूप में दूसरे राज्यों से मुक्त कराये गये हैं. इनमें सबसे अधिक बच्चे गया जिले से 437 बच्चे, दूसरे नंबर पर पटना के 333, तीसरे नंबर पर वैशाली के 235 और चौथे नंबर पर नवादा के 233 बच्चे हैं.
बच्चे साॅफ्ट टारगेट के रूप में इस्तेमाल किये जा रहे हैं. तस्करी कर उनका इस्तेमाल बाल श्रमिक के रूप में, सेक्सुअल अब्यूज के रूप में, चोरी और भिक्षावृत्ति जैसे कार्यों में िकया जा रहा है.
—सुरेश कुमार, सामाजिक कार्यकर्ता
यहां आनेवाले बच्चों में कुछ बच्चे ऐसे भी हैं, जो मोबाइल चोर गिरोह के साथ दूसरे राज्यों से लाये गये हैं. उन्हीं में एक बच्चा दो दिन पहले राजीव नगर थाने से भेजा गया है. उसने यह बात बतायी.
—विनोद कुमार, रेनबो होम, पटना
अपना घर में प्रतिमाह आठ से 10 चोरी के कार्य में संलिप्त बच्चे भेजे जाते हैं. जब इन बच्चों के बारे में पड़ताल की जाती है तो पता चलता है कि ये बच्चे किसी सक्रिय गिरोह से जुड़े हुए हैं. इनमें सबसे अधिक झारखंड के तेलझारी के आते हैं.
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