पटना : जमीन रहते हुए बीमार बेटे को मैं मरता नहीं देख सकता. इसलिए अब मुझे बड़े बेटा का दुश्मन बताया जा रहा है. मैं अपने छोटे बेटे का इलाज करवाऊंगा. बुजुर्ग पिता की इस संवेदनशीलता को महिला आयोग ने सराहा. पीड़ा को कम करने के लिए उसके पक्ष में अपने आदेश का मरहम लगाया. दरअसल उस बुजुर्ग के दो बेटे हैं. एक की किडनी खराब है.
जिसमें वह अपनी काफी संपत्ति खर्च कर चुका है. पिता की इस रवैये से नाराज बड़े बेटे ने अपने छोटे भाई और उसकी पत्नी पर दबाव बनाने का प्रयास किया. इस पर पिता ने बीमार बेटे का पक्ष लिया. ससुर बतौर गवाह महिला आयोग के सामने पेश हुए थे.
आयोग के सामने नालंदा निवासी बुजुर्ग की छोटी बहू रीता देवी ने कहा कि मैडम मेरे पति बीमार है. उनकी किडनी खराब हो चुकी है. इलाज के क्रम में काफी पैसे भी खर्च हो गये हैं. अब बड़े भैया (जेठ) और भाभी (जेठानी) मुझे और मेरे पति को बार-बार घर से निकालने की धमकी दे रहे हैं. चूंकि, पति के इलाज में ससुर ने काफी पैसे खर्च किये हैं. इस पर आयोग ने जब रीता देवी के ससुर को बुलाकर पूरे मामले की पड़ताल की, तो बात आइने की तरह साफ हाे गयी.
बहू ने ससुर से गाय के दूध की कमाई में भी मांगा हिस्सा
एक अन्य मामले में बहू ने अपने ससुर से गाय के दूध एवं अन्य कमाई में हिस्सा देने को लेकर शिकायत की. जब आयोग ने बेटे-बहू और बूढ़े मां-बाप को बुलाकर पूरी बात जानी तो, बताया कि बेटा-बहू दोनों अलग रहते हैं. बीमार मां को दो वक्त की रोटी तक नहीं बना कर देते हैं. ऐसे में गाय का दूध से जो पैसा होता है उससे इलाज कराते हैं. यदि यह पैसा भी बेटे-बहू को दे दिया जाये. तो हम बीमारी में बिना दवाई के ही मर जायेंगे. इस पर आयोग की सदस्य नीलम सहनी ने पहले तो बेटे-बहू को किसी प्रकार का पैसा नहीं देने की बात कहीं. साथ ही बूढ़ी मां के इलाज के लिए प्रतिमाह एक हजार रुपये देने की बात कहीं.
दहेज का उठा मामला, तो आयोग ने दी सख्त चेतावनी : पटना निवासी परिवर्तित नाम नेहा की शादी के नौ वर्ष हो गये हैं. पर शादी के बाद अक्सर दहेज को लेकर ससुराल वाले प्रताड़ित करते हैं. इस पर आयोग ने नेहा के ससुरालवालों को बुलाकर नेहा से दहेज की मांग करने को लेकर पुलिस थाने में केस दर्ज कराने की बात कहीं. कहा, दोबारा दहेज की मांग की, तो जेल भेज देंगे. शुक्रवार को बिहार राज्य महिला आयोग द्वारा आयोजित पांच दिवसीय शिविर के अंतिम दिन कुल 150 मामलों की सुनवाई की गयी. इनमें 142 मामलों में पीड़िता और प्रतिपक्षी के उपस्थित नहीं होने पर उन मामलों को खारिज कर दिया गया. वहीं, पांच मामले में सुनवाई कर फैसला सुनाया गया. शिविर के दौरान कुल 750 मामलों में 692 मामलों को खारिज कर दिया गया. शेष मामलों में सुनवाई की गयी.