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2017 में शहर को सिर्फ तीन दिन मिली अच्छी हवा

पटना : पटना की आबोहवा इतनी खतरनाक हो चुकी है कि पटनावासियों को समूचे वर्ष 2017 में केवल तीन दिन ही सांस लेने लायक स्वच्छ हवा मिल सकी है. सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के साल भर के आंकड़े के आधार पर सेंट्रल फॉर इन्वॉयरमेंट एंड एनर्जी डेवलपमेंट ने एक अध्ययन रिपोर्ट जारी किया है, उसमें […]

पटना : पटना की आबोहवा इतनी खतरनाक हो चुकी है कि पटनावासियों को समूचे वर्ष 2017 में केवल तीन दिन ही सांस लेने लायक स्वच्छ हवा मिल सकी है. सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के साल भर के आंकड़े के आधार पर सेंट्रल फॉर इन्वॉयरमेंट एंड एनर्जी डेवलपमेंट ने एक अध्ययन रिपोर्ट जारी किया है,

उसमें यह जानकारी मिली है कि साल के आधे से ज्यादा दिन यानी 55 फीसदी दिन बदतरीन कैटेगरी में शामिल रहे. 25 फीसदी दिन ही संतुष्टि के लायक रहे. एयर क्वालिटी इंडेक्स में पीएम 2.5, नाइट्रोजन डाई आॅक्साइड, सल्फर डाई आॅक्साइड और ओजोन की मात्रा को मांपा गया, तो हवा की गुणवत्ता में यह गिरावट देखी गयी. पटना की हवा में पीएम 2.5 सालाना 138.6 माइक्रो ग्राम प्रति घन मीटर रहा, जबकि मानक के अनुसार इसे केवल 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर होना चाहिए.

सबसे प्रदूषित दिन रहा 14 नवंबर

अध्ययन के अनुसार वर्ष 2017 में 14 नवंबर का दिन सबसे प्रदूषित रहा. उस दिन पीएम 2.5 सर्वाधिक यानी 643 माइक्रो ग्राम प्रति घन मीटर रहा, जो कि राष्ट्रीय मानक से 10 गुना ज्यादा था. रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण के एक मानक पार्टिकुलेटर मैटर (पीएम 2.5) यानी बारीक प्रदूषित कण की सघनता वर्ष 2017 में 138.6 माइक्रो ग्राम प्रति घन मीटर रही, जबकि साल 2016 में यह 144.2 माइक्रो ग्राम प्रति घन मीटर थी. सीड की रिपोर्ट पेश करते हुए सीड के डायरेक्टर प्रोग्राम्स अभिषेक प्रताप और सीनियर प्रोग्राम ऑफिसर अंकिता ज्योति ने कहा कि वर्ष 2016 की तुलना में प्रदूषण में 4 प्रतिशत की कमी आयी, लेकिन यह अभी भी राष्ट्रीय मानक से चार गुना ज्यादा और विश्व स्वास्थ्य संगठन के सुरक्षा मानकों से करीब 14 गुना ज्यादा है.

क्या कहती है पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की रिपोर्ट

सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने 311 दिन प्रदूषण को मापा.

वर्ष 2017 में केवल 1 प्रतिशत दिन (यानी केवल तीन दिन) ही हवा की गुणवत्ता बेहतर की केटेगरी में आंकी गयी.

सभी दिनों में से आधे से अधिक में इसे बदतरीन श्रेणी में आंका गया.

यातायात संबंधी उत्सर्जन के अतिरिक्त सड़क की धूल, रसोई के लिए ठोस ईंधन जलावन, ईंट-भट्ठे, कूड़े काे खुले में जलाने से प्रदूषित करने में सबसे ज्यादा योगदान होता है. शहर में सालाना पीएम 2.5 जनित प्रदूषण का करीब 15 फीसदी केवल परिवहन क्षेत्र से आता है.

मॉनीटर किये गये 311 दिनों में 24 घंटा पीएम 2.5 के अध्ययन में यह देखा गया है कि केवल 81 दिन ही पीएम 2.5 की स्थिति सुरक्षा मानकों के भीतर रही, जो 60 माइक्रो ग्राम प्रति घन मीटर है.

वर्ष 2017 में 71 दिनों में 24 घंटा पीएम 2.5 की सघनता सुरक्षा मानकों से 3 से 6 गुना अधिक पायी गयी और 11 दिन ऐसे रहे, जब पीएम 2.5 को सुरक्षा मानकों से 6 गुना से अधिक देखा गया बाकी 106 दिनों में इस संकेंद्रण को सुरक्षा सीमा से एक से दो गुना ज्यादा आंका गया.

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