बिहार : बिना जमीनी मदद के अब ‘गगन’ से ही हो सकेगी सुरक्षित लैंडिंग

पटना : 2008 में एयरपोर्ट ऑथोरिटी ऑफ इंडिया ने इसरो के सहयोग से गगन (जीपीएस एडेड जियो अगमेंटेड नेवीगेशन) के निर्माण का प्रोजेक्ट शुरू किया. इसके अंतर्गत विशेष प्रकार के कम्युनिकेशन सेटेलाइट की एक शृंखला स्थापित होनी है. गगन के पूरी तरह फंक्शनल हो जाने के बाद इंस्ट्रूमेंट लैंडिंग सिस्टम (आईएलएस) के लिए ग्राउंड इंस्ट्रूमेंट […]

By Prabhat Khabar Print Desk | December 11, 2017 7:22 AM
पटना : 2008 में एयरपोर्ट ऑथोरिटी ऑफ इंडिया ने इसरो के सहयोग से गगन (जीपीएस एडेड जियो अगमेंटेड नेवीगेशन) के निर्माण का प्रोजेक्ट शुरू किया. इसके अंतर्गत विशेष प्रकार के कम्युनिकेशन सेटेलाइट की एक शृंखला स्थापित होनी है. गगन के पूरी तरह फंक्शनल हो जाने के बाद इंस्ट्रूमेंट लैंडिंग सिस्टम (आईएलएस) के लिए ग्राउंड इंस्ट्रूमेंट की जरूरत नहीं रहेगी. उनका काम सेटेलाइट से ही हो जायेगा. इससे पटना जैसे एयरपोर्ट को विशेष फायदा होगा जहां छोटा रनवे हैं.
फिलहाल तीन ग्राउंड इंस्ट्रूमेंट की पड़ती है जरूरत
इन दिनों इंस्ट्रूमेंट लैंडिंग सिस्टम के तहत तीन ग्राउंड इंस्ट्रूमेंट की जरूरत होती है.लोकलाइजर : रनवे के किनारे थोड़ी थोड़ी दूर पर लगे इस उपकरण के द्वारा छोड़े गये सिग्नल विमानों में लगे खास तरह के उपकरणों द्वारा रिसीव किये जाते हैं, जिससे कॉकपिट के स्क्रीन पर रनवे की वर्चुअल इमेज बनती है. इनका रेंज 25 नॉटिकल मील तक होता है जिसके कारण उतनी दूर से ही पायलट को रनवे दिखने लगता है और लैंडिंग में सुविधा होती है.
ग्लाइडिंग पाथ : रनवे पर लगे इस उपकरण के कारण विमानों को ऊपर दूर से ही रनवे का ग्लाइडिंग एंगिल भी दिखने लगता है. इससे लैंडिंग में सुविधा होती है.
एप्रोच लाइट : कैटेगरी टू के आइएलएस सिस्टम में पायलट को मदद देने के लिए इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल आधारित इमेज के साथ साथ विजुअल सपोर्ट भी दिया जाता है. इसके लिए एप्रोच लाइट का इस्तेमाल किया जाता है जो कैटेगरी टू के आइएलएस सिस्टम में रनवे के बाद भी 900 मीटर तक लगा होता है.
जगह की कमी से कैट वन आईएलएस
पटना एयरपोर्ट पर जगह की कमी के कारण रनवे का विस्तार की गुंजाइश नहीं है. यहां न तो लोकलाइजर लगाने के लिए पर्याप्त जगह है और न ही ग्लाइडिंग पाथ या एप्रोच लाइट लगाने के लिए. इसके कारण यहां कैट वन आईएलएस सिस्टम ही लग पाया है. इसकी वजह से 1200 मीटर से कम दृश्यता होने पर यहां विमान उतारना संभव नहीं हो पाता है.
सेटेलाइट सिग्नल बतायेगा पल-पल की स्थिति
जीपीएस एडेड जियो एगमेंटेड नेवीगेशन सिस्टम के फंक्शनल होने के बाद सेटेलाइट सिग्नल विमान को रनवे के क्षण प्रतिक्षण की स्थिति और एटीसी को विमान की क्षण प्रतिक्षण की स्थिति बतायेगा.
इसके लिए इसरो के सहयोग से तीन जीसेट (जीसेट -8, 10 व 15) व आइआरएनएसएस शृंखला के सात सेटेलाइट (आईआरएनएसएस 1 से 7) अब तक ऑरबिट में स्थापित किये गये हैं. आगे और भी ऐसे कई सेटेलाइट छोड़े जायेंगे. पूरा नेटवर्क बन जाने के बाद पायलट इनकी मदद से तीन मीटर तक की एक्यूरेसी के साथ रनवे की सुदूर वर्चुअल इमेज देख सकेगा और बिना किसी ग्राउंड उपकरण के सहयोग से लैंड कर पायेगा.
774 करोड़ होगे खर्च
पूरी परियोजना पर 774 करोड़ खर्च होने हैं. सेटेलाइट से लिंक अप के लिए बेंगलुरु में एक मास्टर कंट्रोल सेंटर और 15 एयरपोर्ट पर रिफरेंस सेंटर स्थापित किये जाने है. इनमें सात रिफरेंस सेंटर का निर्माण हो चुका है. अन्य का भी जल्द ही निर्माण पूरा होगा.

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