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बिहार सोनपुर मेला : कभी पशुओं से रहती थी रौनक, अब देखने को लोग तरसे

सोनपुर मेला से ठाकुर संग्राम बदलाव प्रकृति का नियम है, किंतु अचानक वैसे बदलाव को आप क्या कहेंगे, जिससे आमजन की जिंदगी प्रभावित होती हो और सभ्यता, संस्कृति तथा इतिहास पर भी सवाल खड़ा हो रहा हो. कार्तिक पूर्णिमा पर 10 लाख से अधिक लोग मेले में आकर गंगा व गंडक के संगम तट सहित […]

सोनपुर मेला से ठाकुर संग्राम

बदलाव प्रकृति का नियम है, किंतु अचानक वैसे बदलाव को आप क्या कहेंगे, जिससे आमजन की जिंदगी प्रभावित होती हो और सभ्यता, संस्कृति तथा इतिहास पर भी सवाल खड़ा हो रहा हो.

कार्तिक पूर्णिमा पर 10 लाख से अधिक लोग मेले में आकर गंगा व गंडक के संगम तट सहित विभिन्न नदी घाटों पर स्नान दान का पुण्य अर्जन कर मेला परिभ्रमण को निकले तो उन्हें निराशा हाथ लगी, जब उनलोगों को पुराने मिथक ध्वस्त होते दिखाई दिये. कभी मेला अवधि में दूध के मामले में डेनमार्क कहाने वाले मेले का गाय व भैंस बाजार सूना दिखाई दिया. कहते हैं अंग्रेजों ने यहां मेला अवधि में बाहर से आने वाले पशुओं की बड़ी संख्या देखकर ही कहा था कि यह विश्व का सबसे बड़ा पशु मेला है. जेनरल नॉलेज की कई पुस्तकों में भी यह विश्व के सबसे बड़े पशु मेले के रूप में उल्लेखित है पर अब यह बाजार पूरी तरह से अपनी पहचान बनाये रखने की संकट को झेल रहा है.

जहां हजारों की संख्या में गाय और भैंस रंभाया करती थीं, वहां अब मेले में आनेवाले लोगों के लिए बाइक व कार स्टेंड खुल गया है. आज की तिथि में गाय व भैंस बाजार में पशु तीन या चार दर्जन में ही सिमट कर रह गये. पशु लाने वाले भी अगल-बगल के लोग हैं, जो अपने पशुधन को यहां लाकर मेले की इज्जत बचाने का प्रयास कर रहे हैं.

यहां के स्थानीय लोग बताते हैं कि कभी पंजाब और हरियाणा की उन्नत नस्ल की गाय खरीदने के लिए राज्य के कई जिले के लोग मेले में कैंप किया करते थे. मेले में आये पशुओं को मंत्री से लेकर संतरी तक, अधिकारी से लेकर चपरासी तक मनचाहे पशुओं की खरीदारी करते ही थे. पशुपालकों को भी उनके बजट के अनुसार पशुधन उपलब्ध हो जाया करता था.

पहले पंजाब व हरियाणा के दर्जनों व्यापारी हजारों की संख्या में आते थे और मेला अवधि समाप्त होने के एक डेढ माह तक रह कर कारोबार किया करते थे. मेले में पगड़ी बांधे सरदार लोगों का जलवा हुआ करता था. इससे मेला का अंतरराज्यीय स्वरूप भी उमड़ता था, लेकिन अब वो बात नहीं. मेले का उद्घाटन के समय हर बार पशुओं को पंजाब व हरियाणा से लाने की बात मेला मंच से की जाती है, किंतु नतीजा शून्य है.

लोगों की माने तो गाय व भैंस बाजार इतना बड़ा था कि मेला अवधि में सोनपुर ही नहीं बल्कि हाजीपुर तक के दस हजार से अधिक परिवार चार-पांच रुपये लीटर दूध खरीद कर ले जाया करते थे. यहां हर घर में गाय व भैंस के दूध में तरह-तरह के व्यंजन बनते थे. कारण गाय वालों के सामने उस जमाने में समस्या यह होती थी कि दूध की वे खपत कहां करे, अब दस-बीस लीटर दूध भी मिलना मुश्किल है.

सोनपुर मेले में पशुओं की खरीद-बिक्री की स्थिति

उपलब्ध आकड़ों के अनुसार, पशु बाजार में मंदी का सिलसिला वर्ष 2007 से आना शुरू हुआ, उसके बाद तो पशु बाजार की सिर्फ कथा-कहानी ही बची है. आकड़ों के अनुसार, वर्ष 1996 में 27 करोड़ 70 लाख तिरानबे हजार नौ सौ पैंतीस रुपये, वर्ष 1997 में 28 करोड़ चार लाख चौरासी हजार रुपये, 1998 में 59 करोड़ तेरह लाख इक्कीस हजार आठ सौ रुपये, 1999 में 94 करोड़ तिरानबे लाख तैतालिस हजार नौ सौ रुपये, वर्ष 2000 में 47 करोड़ पचास लाख तैतालिस हजार रुपये, वर्ष 2001 में 42 करोड़ पच्चीस लाख, वर्ष 2002 में 34 करोड़ तिरसठ लाख बाइस हजार रुपये, 2003 में 11 करोड़ दो लाख बेरासी हजार रुपये, 2004 में 18 करोड़ तेईस लाख तिरानबे हजार रुपये, 2005 में 31 करोड़ अठ्ठासी लाख तेतालीस हजार रुपये, 2006 में 15 करोड़ साठ लाख बहत्तर हजार रुपये, 2007 में नौ करोड़ छह लाख इकतिस हजार रुपये तथा 2007 में आठ करोड़ एक लाख बानबे हजार रुपये के पशुधन की मेले में खरीद बिक्री हुई थी, जिसमें हाथी से लेकर चिड़िया तक शामिल थे.

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