पटना : अगर आपका मन खैनी, पान, तंबाकू, सिगरेट और गुटखा में डूबा रहता है. लेकिन हर दिन इसके सेवन को लेकर आत्मग्लानी होती है तो इसे छोड़ने के लिए हैंडी प्लास्ट की तरह बस एक पैच आपके त्वचा पर चिपका दिया जायेगा. आपका मन उसी समय से नशे की मांग को कम करने लगेगा. तीन माह के बाद तो आप इस नशे से बाहर चले जायेंगे. हालांकि हर प्रकार के नशे से पूरी तरह से बाहर होने के लिए चिकित्सकों की काउंसेलिंग और फालोअप में तीन-चार वर्ष तक लग सकता है.
राज्य में सभी जिलों सहित पीएमसीएच, एनएमसीएच और डीएमसीएच में डि-एडिक्शन सेंटर की स्थापना की गयी है. हर सेंटर पर 10-20 बेड की व्यवस्था की गयी है. सभी सेंटरों का फोकस अब खैनी, तंबाकू व गुटखा के साथ गांजा-भांग व ड्रग यूजर का इलाज पर केंद्रित हो गया है. राज्य सरकार द्वारा राज्य में पूर्ण नशाबंदी के मद्देनजर इन सेंटरों के कार्यों का विस्तार किया गया है. सरकार द्वारा पूर्ण नशाबंदी को लागू करने के लिए इस तरह की व्यवस्था राज्य के हर जिले में की गयी है.
एनएमसीएच डि-एडिक्शन सेंटर के नोडल पदाधिकारी डॉ संतोष कुमार ने कहा कि शराब के बाद लोग तीन प्रकार के नशे का सेवन कर रहे हैं. पहला ग्रुप खैनी, सिगरेट व गुटखा वाला निकोटिन ग्रुप है. दूसरा गांजा-भांग वाला ग्रुप और तीसरा है हेरोइन और मार्फिन का यूज करनेवाला ग्रुप. खैनी, सिगरेट और गुटखा वाले निकोटिन ग्रुप वाले मरीजों को अक्सर भर्ती करने की नौबत नहीं आती है. इस तरह के बीमार लोगों के इलाज में हैंडी प्लास्ट जैसी नोकोटिन का पैच शरीर के वैसे स्थान के त्वचा पर चिपका दिया जाता है जहां पर बाल कम हो. यह पैच कंधा व पीठ के ऊपरी हिस्से पर चिपकाया जाता है. जिस व्यक्ति को दिनभर में दर्जनों बार खैनी या सिगरेट पीने की आदत है, उसे यह पैच धीरे-धीरे कम करता जाता है. इस पैच को 24 घंटे में बदल दिया जाता है.
एक बार चिकित्सक इस पैच को लगा देते हैं उसके बाद उस व्यक्ति को प्रशिक्षण दे दिया जाता है. इसके अलावा पहले ग्रुप के मरीजों को लॉजेंजेज, निकोटिन गम या वर्मी क्लिन जैसी दवा दी जाती है. यह दवा मरीज को खानी पड़ती है. इस तरह के मरीजों के दवा आरंभ होने के बाद नशा छोड़ने का बाद का फेज आता है. इसमें मरीज को माथा का भारीपन, चक्कर आना, मितली होना, अनमना लगना और घबड़ाहट जैसी महसूस होती है. जो लोग अत्यधिक खैनी, सिगरेट या गुटखा का प्रयोग करते हैं उनमें पसीना आने और धड़कन बढ़ने जैसे लक्षण महसूस होते हैं. दूसरे ग्रुप में गांजा-भांग का उपयोग करनेवाले मरीज आते हैं. यह सबसे सस्ता नशा है. ऐसे लोगों में मानसिक बीमारी होती है. इस प्रकार के लोग अधिक बोलते हैं, हो-हंगामा और मारपीट तक करते हैं.
अपनी समझ-बूझ भी खो देते हैं. इस तरह के मरीजों को एक-तीन माह तक भर्ती कर इलाज की आवश्यकता होती है. तीसरी कोटि में ड्रग यूजर्स या हेरोइन या मार्फिन यूज करनेवाले मरीज आते हैं. चाहे ये लोग सूंघने के माध्यम से या इंजेक्शन के माध्यम से दवा का उपयोग करते हैं. इस तरह के ड्रग यूजर्स को मार्फिन या हेरोइन छोड़ने के बाद एक सप्ताह तक नशा छोड़ने पर समस्या होती है. इलाज के दौरान इन मरीजों पर मल्टीपल मॉडल अप्रोच से इलाज किया जाता है.