बिहार में शराबबंदी को अब 17 महीने हो चुके हैं. इन 17 महीनों में इस निर्णय पर बहुत बहसें हुईं. मामला कोर्ट तक गया, लेकिन अब तक सरकार का हाथ इस मामले में अपने विरोधियों से ऊंचा ही रहा है. इसका सबसे बड़ा कारण है लोगों का इस फैसले के प्रति समर्थन. भले ही शराबबंदी को कुछ समूहों ने निजी स्वतंत्रता या बिहार के पर्यटन में पिछड़े जाने के डर से जोड़ा हो, लेकिन इससे नुकसान कम और फायदा ही अधिक हुआ है. इस फैसले से समाज का संघर्षशील तबका अपनी पारिवारिक और आर्थिक स्थिति को सुधारने में कामयाब हुआ है.
महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा में कमी आयी है और आम आदमी ने शराब पर उड़ाये जाने वाले रुपये अपने बीवी-बच्चों पर खर्च किये हैं. ऐसे परिवारों की संख्या सैंकड़ों में नहीं, बल्कि हजारों में है. अगर इस डेढ़ साल का विश्लेषण किया जाये, तो बिहार ने इस फैसले को सख्ती से लागू कर देश के सामने एक उदाहरण पेश किया है कि अगर थोड़े से राजस्व की चिंता छोड़ दी जाये, तो समाज के संघर्षशील तबके के उत्थान को कोई रोक नहीं सकता. ‘प्रभात खबर’ ने शराबबंदी के बाद लोगों के जीवन में आये इस बदलाव की पड़ताल की और यकीन मानिये पूरे प्रदेश में हजारों की संख्या में ऐसे लोग सामने आये, जो डेढ़ साल पहले के मुकाबले बदले हुए थे.
उल्लेखनीय है कि 5 अप्रैल, 2016 से बिहार में पूर्ण शराबबंदी है और 2 अक्तूबर, 2017 को संशोधित शराबबंदी कानून को लागू हुए एक साल हो जायेगा. अतः हम आज से अगले एक महीने तक अपने पाठकों को हर रोज ऐसे ही कुछ परिवारों से मिलवायेंगे, जिनका जीवन डेढ़ साल भर में बदल गया है.
-संपादक