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जानें विमान से जुड़ी ये छोटी-छोटी बातें, ताकि सुरक्षित हो आपका हवाई सफर

पटना : पिछले तीन-चार वर्षों में प्रदेश के लोगों में हवाई यात्रा का चलन बढ़ा है. एक ओर जहां लोग आसमान में उड़ने को लेकर रोमांचित रहते हैं, वहीं सुरक्षा का ख्याल भी उन्हें डराता है. यात्रियों के लिये विमानों का मेंटेनेंस कौतूहल का विषय रहा है. क्योंकि, मेंटेनेंस में थोड़ी सी चूक उनकी जान […]

पटना : पिछले तीन-चार वर्षों में प्रदेश के लोगों में हवाई यात्रा का चलन बढ़ा है. एक ओर जहां लोग आसमान में उड़ने को लेकर रोमांचित रहते हैं, वहीं सुरक्षा का ख्याल भी उन्हें डराता है. यात्रियों के लिये विमानों का मेंटेनेंस कौतूहल का विषय रहा है.
क्योंकि, मेंटेनेंस में थोड़ी सी चूक उनकी जान पर भारी बन सकती है. पिछले दिनों चाइना एयरलाइंस की एक फ्लाइट (बोइंग 747) छोटे-से वाशर के गिरने के कारण भीषण दुर्घटना की शिकार हुई और पूरा विमान इमरजेंसी लैंडिंग के बाद भभक उठा. हालांकि, सारे यात्री पहले ही बाहर निकाल लिये गये थे. ऐसे में विमानों के मेंटेनेंस को लेकर प्रभात खबर ने संबंधित सामग्री जुटायी है, ताकि आप जान सकें कि आपकी यात्रा कितनी सुरक्षित है.
पड़ताल में सामने आया कि अब तक किसी भी एयरलाइंस ने पटना एयरपोर्ट को बेस स्टेशन नहीं बनाया है. यहां विमानों का नाइट हॉल्ट नहीं होता है और उनके प्री-फ्लाइट बेसिक इंसपेक्शन की सुविधा भी नहीं है. इसके बावजूद यहां से उड़नेवाले हर विमान का ट्रांजिट इंसपेक्शन होता है, जिसमें एक विशेष रूप से बनाये गये शेड्यूल के अनुसार बारी-बारी से टेक्नीशियन और इंजीनियर विमान की जांच करते हैं.
विशेषज्ञों की मानें, तो केवल तीस मिनट का समय निर्धारित होने के बावजूद इसमें विमान के इंजन और सभी महत्वपूर्ण पार्ट-पुर्जों की जांच कर ली जाती है. कहीं भी किसी प्रकार का फॉल्ट पाये जाने पर विमान को तब तक उड़ने की इजाजत नहीं दी जाती, जब तक उसे दुरुस्त नहीं कर दिया जाता है.
एप्रेन्टिसिप के बाद मिलता लाइसेंस : एयरक्राॅफ्ट मेंटेनेंस इंजीनियरिंग की पढ़ाई तीन सालों की होती है, जिसमें ढाई साल थ्योरी और प्रैक्टिकल दोनों पढ़ाया जाता है, जबकि अंतिम छह महीने केवल प्रैक्टिकल करवाया जाता है. उसके बाद किसी विमान कंपनी में एक साल टेक्नीशियन के रूप काम करना पड़ता है़
जिसके बाद उसे इंजीनियर के रूप में काम करने का लाइसेंस मिलता है.
कोट
10 लाख ऑपरेशन में होती केवल छह दुर्घटना
बस व ट्रेन की
तुलना में आज विमान यात्रा अधिक सुरक्षित है और अब तक प्रति
दस लाख फ्लाइट ऑपरेशन में केवल छह दुर्घटनाएं हुई है. विमान निर्माता कंपनियां हरसंभव कोशिश करती हैं कि दुर्घटनाओं की आशंका कम-से-
कम हो.
चार प्रकार के लैंड गियर
विमान दुर्घटना की एक बड़ी वजह पहिये का नहीं खुलना (लैंड गियर फेल्योर) होता है. इसको दूर करने के लिए आज हर विमान में चार प्रकार के लैंड गियर सिस्टम का इस्तेमाल किया जा रहा है-
इलेक्ट्रिकल-यह सबसे पुराना लैंड गियर सिस्टम हैं, जो आरंभ से ही इस्तेमाल किया जा रहा है. इसमें इलेक्ट्रिक मोटर को सीधे और उल्टे दिशा में चला कर चक्के को बाहर-भीतर किया जाता है .
हाइड्रोलिक-इसमें एक विशेष प्रकार के फ्लूड को इलेक्ट्रिकल मोटर से तेजी से पंप किया जाता है.
न्यूमेटिक-इसमें कंप्रेष्ड गैस के इस्तेमाल से चक्का को बाहर और भीतर किया जाता है.
मेकैनिकल-यदि उपरोक्त तीनों पद्धति फेल कर जाये, तो इसका इस्तेमाल किया जाता है.
डबल इंजन
निजी इस्तेमाल वाले छोटे विमानों को छोड़ दें, तो व्यावसायिक वाले सभी विमानों में दोहरे इंजन होते हैं.
ताकि एक खराब भी हो तो दूसरे के सहारे नजदीकी एयरपोर्ट तक पहुंचा जा सके और इमरजेंसी लैंडिंग की जा सके.
लीकेज
ईंजन या फ्यूल टैंक के किसी पुर्जे के ढीले पड़ने पर ऐसा प्राय: होता है.
कंप्रेशर
फैन घुमा कर आवाज पर गौर किया जाता है. आवाज से स्थिति स्पष्ट हो
जाती है.
इससे कंप्रेशर की स्थिति का पता चल जाता है. ईंजन में हल्की खराबी भी आने पर उसकी आवाज बदल जाती है.
टायर प्रेशर
टायर प्रेशर को भी चेक किया जाता है. विमानों के टायर का प्रेशर बैरोमीटर पर 80 से 90 यूनिट के बीच होता है. इसमें नाइट्रोजन गैस भरी होती है, जो हवा से हल्की होने से सामान्यत: नहीं निकलती.
इस्तेमाल होते पुर्जे
विमान में इस्तेमाल होनेवाले हर पुर्जे पर उसकी न्यूनतम जीवन अवधि अंकित रहती है. इसके बावजूद भी तिथि समाप्त होते ही उसे बदल दी जाती है.
ताकि किसी तरह के खतरे की गुंजाइश नहीं हो.
ऑटो पायलट का इस्तेमाल-अब तक हुए दुर्घटना की वैश्विक रिपोर्ट बताती है कि विमान दुर्घटना 80 फीसदी मामलों में मानवीय भूल से होती है, जिसका एक बड़ा कारण थकान होता है. पायलट को लंबी यात्रा के दौरान थकान से बचाने के लिए ऑटो पायलट का अब इस्तेमाल शुरू हो गया है. इस मोड़ में विमान को ले जाने पर कंप्यूटर खुद-ब-खुद उसे चलाने लगता है और मानवीय भूल की गुंजाइश कम रहती है.
चक्के का स्ट्रट. चक्के के स्ट्रट (डंडे) को भी देखा जाता है. लैंडिंग के समय कई बार इसमें दरार आने या टूट होने की आशंका रहती है.

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