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उत्तरी कोयल परियोजना के लिए 1622 करोड़ मंजूर
24 साल से बंद सिंचाई प्रोजेक्ट तीन साल में पूरा होगा नयी दिल्ली : केंद्रीय कैबिनेट ने झारखंड और बिहार में उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना के बकाया काम को फिर से प्रारंभ करने के लिए 1622 करोड़ रुपये की मंजूरी दी है. तीन वर्षों में यह परियोजना पूरी होगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में […]
24 साल से बंद सिंचाई प्रोजेक्ट तीन साल में पूरा होगा
नयी दिल्ली : केंद्रीय कैबिनेट ने झारखंड और बिहार में उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना के बकाया काम को फिर से प्रारंभ करने के लिए 1622 करोड़ रुपये की मंजूरी दी है. तीन वर्षों में यह परियोजना पूरी होगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट की बुधवार को हुई बैठक में यह फैसला हुआ.
कैबिनेट ने मंडल बांध के जलस्तर को घटा कर 341 मीटर किये जाने का भी फैसला किया, ताकि कम इलाका बांध के डूब क्षेत्र में आये और बेतला उद्यान और पलामू टाइगर रिजर्व को बचाया जा सके. सोन नदी की सहायक उत्तरी कोयल नदी पर स्थित यह परियोजना 1972 में शुरू की गयी थी और 45 साल बाद भी आज तक लटकी हुई थी. हालांकि 2300 करोड़ की लागत से बनने वाली इस परियोजना पर 700 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं. इस परियोजना के तहत 67.86 मीटर ऊंचे और 343.33 मीटर लंबे कंक्रीट बांध (मंडल बांध) का निर्माण कराया जाना था.
इसकी क्षमता 1160 मिलियन क्यूबिक मीटर (एमसीएम) जल संग्रह करने की निर्धारित की गयी थी. इसके अलावा परियोजना के तहत नदी के बहाव की निचली दिशा में मोहनगंज में 819.6 मीटर लंबा बैराज और बैराज के दांये और बांये तट से दो नहरें सिंचाई के लिए वितरण प्रणालियों समेत बनायी जानी थीं. जलाशय की ऊंचाई घटाकर 341 मीटर किये जाने से मंडल बांध की जल संग्रहण क्षमता अब 190 एमसीएम होगी.
फैसले के तहत शेष बचे कार्यों के 1013.11 करोड़ रुपये के सामान्य घटकों का वित्त पोषण केंद्र सरकार द्वारा पीएमकेएसवाइ कोष से अनुदान के रूप में किया जायेगा.
केंद्र सरकार बिहार और झारखंड राज्यों से अनुदान के रूप में प्राप्त पीएमकेएसवाइ के तहत दीर्घकालिक सिंचाई कोष (एलटीआइएफ) से 365.5 करोड़ रुपये तक (बिहार-318.64 करोड़ रुपये और झारखंड-46.86 करोड़ रुपये) के शेष बचे कार्यों की कुल लागत के 60 प्रतिशत का भी वित्त पोषण करेगी. बिहार और झारखंड राज्य उस दर पर नाबार्ड के जरिये एलटीआइएफ से ऋण के रूप में 243.66 करोड़ रुपये (बिहार-212.43 करोड़ रुपये और झारखंड-31.23 करोड़ रुपये) के शेष बचे कार्यों की शेष लागत के 40 प्रतिशत की व्यवस्था करेंगे, जिस पर कोई सब्सिडी नहीं होगी. कैबिनेट ने परियोजना प्रबंधन सलाहकार (पीएमसी) के रूप में केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम मेसर्स वापकॉस लिमिटेड द्वारा टर्न-की आधार पर परियोजना के शेष बचे कार्यों के क्रियान्वयन को भी मंजूरी दी. परियोजना के क्रियान्वयन पर नजर नीति आयोग के सीइओ की अध्यक्षता वाली भारत सरकार की उच्चाधिकार प्राप्त समिति रखेगी. परियोजना को पूरा कराने को लेकर बिहार और झारखंड के सांसदों ने प्रधानमंत्री से भी मुलाकात की थी.
औरंगाबाद के सांसद सुशील कुमार सिंह, चतरा के सांसद सुनील कुमार सिंह, जहानाबाद के सांसद अरुण कुमार पलामू के सांसद बीडी राम, गया के सांसद हरि मांझी तथा राज्य सभा सांसद गोपाल नारायण सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर इस परियोजना को पूरा कराने का अनुरोध किया था.
1993 से रुका है काम : इसका निर्माण कार्य मूलत: 1972 में प्रारंभ हुआ और 1993 में बिहार सरकार के वन विभाग ने इसे रुकवा दिया. तब से बांध का निर्माण कार्य ठप पड़ा हुआ था.
अब तक 769 करोड़ खर्च : परियोजना की कुल लागत अभी तक 2391.36 करोड़ आंकी गयी है. 769.09 करोड़ खर्च किये जा चुके हैं. अगले तीन वित्त वर्षों में 1622.27 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से शेष बचे कार्य पूरा किये जायेंगे.
मंडल डैम : जलाशय की ऊंचाई दो मीटर घटेगी
परियोजना के पूरा होने पर झारखंड के पलामू व गढ़वा तथा बिहार के औरंगाबाद व गया जिलों में 111,521 हेक्टेयर जमीन की सिंचाई की व्यवस्था की जा सकेगी. फिलहाल अधूरी परियोजना से 71,720 हेक्टेयर जमीन की पहले ही सिंचाई हो रही है. इसकी कुल सिंचाई क्षमता 1,11,521 है, िजसमें 91,917 हेक्टेयर िबहार में है.
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