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मानसिक रोगियों का अस्पताल चल रहा बिना नियमावली के

दुर्दशा : बिहार में मानसिक रोगियों की कुल संख्या 1,26,772 है, भोजपुर जिले के कोइलवर में प्रदेश का एकलौता मानसिक अस्पताल है पटना : साल 2011 की जनगणना के अनुसार बिहार में मानसिक रोगियों की कुल संख्या करीब 1,26,772 है. इनके इलाज के लिए भोजपुर जिले के कोइलवर में प्रदेश का एकलौता मानसिक अस्पताल है. […]

दुर्दशा : बिहार में मानसिक रोगियों की कुल संख्या 1,26,772 है, भोजपुर जिले के कोइलवर में प्रदेश का एकलौता मानसिक अस्पताल है
पटना : साल 2011 की जनगणना के अनुसार बिहार में मानसिक रोगियों की कुल संख्या करीब 1,26,772 है. इनके इलाज के लिए भोजपुर जिले के कोइलवर में प्रदेश का एकलौता मानसिक अस्पताल है. इसमें नशा से परेशान, वैवाहिक और पारिवारिक कारणों से तनाव झेल रहे लोगों सहित बच्चे और मिर्गी के मरीज आते हैं.
मरीजों की संख्या साधारण दिनों में 150 है जबकि सोमवार और गुरुवार को बढ़कर 300 से 350 हो जाती है. 15 साल से इस अस्पताल का भवन, डॉक्टर और कर्मचारी जहां अस्थायी हैं वहीं इसकी अब तक नियमावली भी नहीं बनी है.
बिमहास के डायरेक्टर डॉ प्रमोद कुमार सिंह कहते हैं कि देश के मशहूर मेंटल हॉस्पिटल कांके से बिहार के मरीजों को लौटाया जाने लगा है. इसका महत्वपूर्ण कारण यह है कि यहां इलाज बेहतर हो रहा है. साथ ही वहां इलाज कराने वाले प्रत्येक मरीज की एवज में बिहार सरकार द्वारा झारखंड सरकार को प्रतिदिन 932 रुपये देने पड़ते हैं. वहीं बिमहास में प्रत्येक दिन प्रति मरीज करीब 200 रुपये का खर्च है. इसमें मरीज के खाने पर 100 रुपया और दवा पर 100 रुपये प्रतिदिन का खर्च शामिल है. इस तरह जब झारखंड सरकार को यह पैसे नहीं देने होंगे तो बिहार सरकार को हर साल लाखों रुपये की बचत होगी. कोइलवर के इस अस्पताल का नाम राज्य मानसिक स्वास्थ्य एवं सहबद्ध विज्ञान संस्थान (बिमहास) है.
इसमें सोमवार को नशा करने से मानसिक रोग का शिकार बने करीब 300 मरीज आते हैं. यहां के डॉक्टर बताते हैं कि एक मरीज मनोज (बदला नाम) गांजा पीने से अजीबोगरीब हरकतें करने लगा. यह देख परिजन परेशान हो गये. ग्रामीणों की सलाह पर मई महीने में उसे इलाज के लिए लेकर आये. उसे एडमिट कर लिया गया. इससे गांजे की लत तो छूट ही गयी, साथ ही दवाई से वह धीरे-धीरे ठीक हो रहा है. यहां कई प्रकार से मानसिक रूप से बीमार बच्चे गुरुवार को आते हैं.
जून महीने में आठ साल के एक बच्चे को लेकर उसके माता-पिता आये. उनकी शिकायत थी कि बच्चे को भूलने की आदत है. यहां के डॉक्टर ने मरीज से बातचीत कर वजह की जानकारी लेने का प्रयास किया. बाद में इस काम में इलेक्ट्रोइंसेफ्लोग्राफिक मशीन से उसकी जांच हुयी. उसमें बीमारी का पता चलने पर उस अनुसार दवा दी जा रही है. अब उसमें बहुत सुधार है. ऐसा ही एक बच्चा जब ठीक हो गया तो उसे ले जाने उसके परिजन पहुंचे. परिजनों ने कहा कि दस साल का इस लड़के को बहुत डर लगता था और वह ऊल-जुलूल बातें कहता था. अब ठीक हो गया तो घर ले जा रहे हैं.
वैवाहिक समस्या वालों का स्पेशल ओपीडी गुरुवार को
यहां वैवाहिक जीवन में परेशानी से मानसिक रोगी बनने वालों की ओपीडी गुरुवार को होती है. इसमें पुरुष और महिला काउंसलर मरीजों की जांच करते हैं. वे पति और पत्नी से बात कर विवाद के वजह पता करते हैं. दोनों को समझाते हैं. जरूरत पड़ने पर दवा दी जाती है. यदि मरीज की मानसिक हालत ज्यादा गंभीर रहती है तो उसे एडमिट किया जाता है. सामान्य हालत होते ही उसे घर भेज दिया जाता है.
अस्पताल में स्थायी डॉक्टर और कर्मचारी नहीं
यहां के कार्यवाहक सुपरिटेंडेंट डॉ केपी शर्मा कहते हैं कि यहां तीन वार्ड हैं- पुरुष, महिला और बच्चा. तीनों वार्डों में कुल 95 मरीज हैं. इनमें से 37 महिला मरीज हैं. यहां निदेशक सहित कुल 11 डॉक्टर हैं. इनमें से आठ साइकाट्रिस्ट और तीन एमबीबीएस हैं. साथ ही दो साइकोलोजिस्ट, चार ऑक्यूपेशनल थेरापिस्ट, दो सोशल वर्कर और दस नर्स हैं.
इनमें से कोई भी अस्पताल का स्थायी कर्मचारी नहीं है. कुछ पदस्थापन और कुछ प्रतिनियुक्ति पर हैं. इसके अलावा तीस सिक्युरिटी गार्ड हैं जो आउटसोर्स से रखे गये हैं. सूत्रों की मानें तो यहां कम से कम तीन-चार फिजीशियन और कुल 30 नर्स होनी चाहिए थीं जो नहीं हैं. साथ ही मेल वार्ड अटेंडेंट भी नहीं हैं.

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