पटना: बिहार मानवाधिकार आयोग ने राज्य सरकार के बिहार जेल मैनुअल-2012 को त्रुटिपूर्ण करार दिया है. इस नये जेल मैनुअल की धारा 396 (2) में सजायाफ्ता कैदियों द्वारा उनके आचरण के आधार पर मिलनेवाली सजा में छूट (अर्जित परिहार) में से 15 दिनों से अधिक अवधि को जब्त करने का अधिकार तो जेल अधीक्षकों दिया गया है, लेकिन अधिकतम कितनी अवधि तक की सजा में छूट को वे जब्त कर सकते हैं, इसका जेल मैनुअल में कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया है.
जेल अधीक्षकों को मिले इस अधिकार और उनकी मनमर्जी के खिलाफ अपील अथवा पुनरीक्षण का भी इस नये जेल मैनुअल में कोई प्रावधान नहीं है. आयोग ने गृह विभाग के प्रधान सचिव आमिर सुबहानी और राज्य के कारा महानिरीक्षक प्रेम सिंह मीणा को पत्र लिख कर नये जेल मैनुअल की इन त्रुटियों की ओर ध्यान दिलाया है और कहा है कि इन बिंदुओं की तत्काल समीक्षा कर इसका निराकरण करें.
क्या है मामला
बिहार मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायाधीश बिलाल नाजकी और सदस्य व राज्य के पूर्व डीजीपी नीलमणि नालंदा निवासी एक याचिकाकर्ता अशोक कुमार सिंह के आवेदन की सुनवाई करते हुए बिहार जेल मैनुअल-2012 में यह त्रुटि पायी है. दरअसल, अशोक कुमार सिंह ने आयोग के समक्ष आवेदन देकर शिकायत की है कि उसके पिता दीक्षा सिंह वर्ष 1996 से बिहारशरीफ जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं. राज्य दंडादेश परिहार बोर्ड की विगत 6 फरवरी, 2013 की बैठक में उनका मामला रखा गया था. दीक्षा सिंह की परिहार सहित 20 वर्षो की अवधि की सजा विगत 24 दिसंबर, 2013 को पूरी होनेवाली थी. बोर्ड द्वारा निर्णय लिया गया कि अगली बैठक में इस पर विचार किया जायेगा, जबकि आवेदक का आरोप है कि बोर्ड की दो बैठकें हुईं, लेकिन उसके पिता के मामले पर विचार नहीं किया गया. बोर्ड के अध्यक्ष गृह विभाग के प्रधान सचिव होते हैं तथा विधि सचिव, जेल आइजी, सीआइडी के आइजी समेत कई अन्य अधिकारी इसके सदस्य होते हैं.