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बेड पर सोना, वहीं पर ही होता है पढ़ना

कैसे पढ़ें बेटियां : हाल कदमकुआं स्थित पिछड़ा वर्ग, अति पिछड़ा वर्ग बालिका आवासीय विद्यालय का, पढ़ने को नहीं क्लास रूम पटना : बेड पर ही सोना और बेड पर ही पढ़ना. स्कूल जाने का झंझट तो नहीं, पर पढ़ाई नहीं कर पाने का है टेंशन. कदमकुआं आवासीय विद्यालय में रहने की सुविधा के अलावा […]

कैसे पढ़ें बेटियां : हाल कदमकुआं स्थित पिछड़ा वर्ग, अति पिछड़ा वर्ग बालिका आवासीय विद्यालय का, पढ़ने को नहीं क्लास रूम
पटना : बेड पर ही सोना और बेड पर ही पढ़ना. स्कूल जाने का झंझट तो नहीं, पर पढ़ाई नहीं कर पाने का है टेंशन. कदमकुआं आवासीय विद्यालय में रहने की सुविधा के अलावा और भी ऐसी कई चीजें हैं, जिनकी कमी छात्राएं झेल रही हैं. इनमें सबसे बड़ी कमी क्लास रूम की है. आलम यह है कि जिस रूम में वे रहती हैं, वही उनका क्लास रूम भी है. जिस बेड पर वे सोती हैं, वही क्लास रूम के बेंच-डेस्क भी हैं.
18 कमरों में रहती हैं 200 छात्राएं
छात्रावास में कुल 280 सीटें हैं. इनमें नामांकित लड़कियों की संख्या 200 है. रहने के लिए कुल 18 कमरे और पढ़ाने वाले शिक्षक मात्र चार हैं. ये जिस कमरे में सोती आैर रहती हैं, उनमें ही क्लास भी करती हैं. एक बेड पर पांच से छह बच्चियां पढ़ाई करने को मजबूर हैं.
छत पर लगती है असेंबली : भवन दो मंजिला है. कैंपस के अंदर इतनी जगह नहीं है कि लड़कियों की असेंबली हो सके. इसके लिए छत पर व्यवस्था की गयी है. लड़कियाें के लिए खाना खाने का कमरा नहीं है. तीनों समय का खाना छत पर ही होता है. छत पर ही शौचालय की भी सुविधा है.
विजिटर रूम भी नहीं : छात्रावास में रहनेवाली लड़कियों के पेरेंट्स अकसर मिलने-जुलने आते हैं. पर कोई भी विजिटर कमरा नहीं होने से कभी सीढ़ियों के नीचे, तो कभी बाहर ही मिल कर जाना पड़ता है. न तो उनके खेल-कूद की व्यवस्था है और न ही मनोरंजन का कोई साधन.
तीसरी मंजिल पर भवन बनाने के लिए विभाग को पत्र लिखा गया है. ताकि क्लास रूम की सुविधा मिल सके. साथ ही शिक्षक की कमी बनी हुई है. इससे इन लड़कियों को पढ़ाना मुश्किल हो रहा है. कम संसाधनों के बावजूद लड़कियां परीक्षाओं में बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं. जो भी शिक्षकाएं हैं, वे रेगुलर क्लास लेती हैं.
– नीलम कुमारी, प्राचार्य, आवासीय विद्यालय
बेड भी सपाट नहीं, दो मंजिला है. इससे क्लास के दौरान लड़कियों का हिलना-डुलना भी बंद हो जाता है. पढ़ने के दौरान उनकी गरदन भी टेढ़ी हो जाती है. इसके अलावा भवन के चारों ओर मकान बने होने से कई कमरे एेसे भी हैं, जहां बाहर की रोशनी नहीं आ पाती है. इससे बिजली की राेशनी में ही बच्चियां पढ़ पाती हैं. बीते वर्ष उपमुख्यमंत्री जी ने विद्यालय में जेनरेटर की सुविधा ताे मुहैया करा दी, पर क्लास रूम की समस्या दूर नहीं कर पाये हैं.
एक बेड पर दो-दो लड़कियां : वहीं, कमरे में सिंगल-सिंगल दो मंजिले बेड लगे हैं. एक बेड पर दो-दो लड़कियों को सोना पड़ता है. क्योंकि बेड लगाने के लिए जगह नहीं है. वहीं भवन के पीछे गंदगी का अंबार फैला है. इससे खिड़कियों को अकसर बंद रखना होता है. रसोई घर के राशन भी सीढ़ियों के निकट रखे जाते हैं. किचेन का शेड भी टूटा पड़ा है. इससे खाना बनाते वक्त धूल कण भी पड़ते रहते हैं. वहीं, 200 लड़कियों पर छह शौचालय भी कम पड़ रहे हैं.

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