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……तो मैं भी भर सकता हूं ऊंची उड़ान
जूही स्मिता पटना : कहते हैं, अगर इरादे नेक हों और हौसला बुलंद हों, तो गरीबी या अन्य बाधाएं मंजिल तय करने में बाधक नहीं बनती. कुछ ऐसा ही कर दिखाने का जज्बा पाल रखा है 18 वर्षीय पवन कुमार ने, जो जन्म से ही हाथ-पैर से लाचार हैं. अनिसाबाद के रघुनाथ टोला निवासी संजय […]
जूही स्मिता
पटना : कहते हैं, अगर इरादे नेक हों और हौसला बुलंद हों, तो गरीबी या अन्य बाधाएं मंजिल तय करने में बाधक नहीं बनती. कुछ ऐसा ही कर दिखाने का जज्बा पाल रखा है 18 वर्षीय पवन कुमार ने, जो जन्म से ही हाथ-पैर से लाचार हैं. अनिसाबाद के रघुनाथ टोला निवासी संजय कुमार का बेटा पवन सिविल इंजीनियर बनना चाहता है. वह इसी साल एएन कॉलेज से इंटर पास किया है. इंटर में मैथ लेकर पढ़ाई की और बोर्ड में 58.9 प्रतिशत आया है. जेइइ मेंस में 645 रैंक हासिल की है. उसकी तमन्ना एनआइटी से पढ़ने की है, लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण उसे काफी दिक्कत आ रही है. पवन के पिता किराने की दुकान में काम करते हैं.
पवन के दो छोटे भाई और एक बहन भी हैं. इन सबकी जिम्मेवारी उनके ही कंधों पर है और यही कारण है कि पवन अपने हौसले की उड़ान नहीं भर पा रहा है.
पढ़ाई के दौरान कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा
पवन को शुरुआत में पढ़ाई और लिखाई करने में काफी दिक्कत होती थी. खासकर लिखने में, लेकिन पिता द्वारा बार-बार प्रोत्साहित करते रहने पर पवन ने लिखना सिखा. वह जिस भी स्कूल में दाखिला के लिए गया, वहां एडमिशन नहीं मिल पाया लेकिन सन 2005 में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ एजुकेशन, बेऊर में विकलांग स्कूल न्यू होम में दाखिला मिल गया, जहां उसने पांचवी तक की पढ़ाई की.
इसके बाद राइजिंग सन स्कूल में आठवीं तक की पढ़ाई की. 2015 में पटना हाइ स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा दी. इसमें उसे 70 प्रतिशत आये. वहीं 2017 में एएन कॉलेज से इंटर में 58.9 प्रतिशत आये. पवन ने बताया कि इंटर में कम अंक आने का कारण उसका समय पर पेपर समाप्त नहीं कर पाना था.
इंटर परीक्षा के दौरान कॉलेज के प्राचार्य ने पवन को लिखने के लिए किसी की मदद लेने के लिए पूछा था, लेकिन उसने साफ मना कर दिया था. उसने सारे पेपर में प्रश्नों के उत्तर खुद से लिखे, जिसकी वजह से कुछ सवाल पूरे नहीं हो पाये. वे कहते हैं, मैंने कभी भी किसी परिस्थिति में हार नहीं मानी. हर वक्त अपनी मेहनत पर भरोसा किया.
पवन अपने िपता के साथ.
पवन के पिता कहते हैं, मैं बस अपने बेटे का सपना पूरा करना चाहता हूं. हर संभव प्रयास भी कर रहा हूं. हमें आर्थिक मदद चाहिए ताकि मेरा बेटा अपनी जिंदगी सर उठा कर जी सके.
बुधिया की तरह बनना चाहता था
पवन सन 2006 में डिसेबल स्पोर्ट वेलफेयर एकेडमी द्वारा पहली बार कारगिल चौक से शहीद चौक तक की रेस का हिस्सा बना. उस वक्त उसे ओड़िशा के रहनेवाले बुधिया की तरह बनना था, लेकिन आर्थिक विषमताओं के कारण पढ़ाई पर ही ध्यान केंद्रित कर लिया. पवन को दौड़ना, डांस करना और इंगलिश नॉवेल पढ़ना काफी पसंद है. जब भी वक्त मिलता है, वह अपनी पसंद के गाने पर डांस कर लेता है. उसने 2015 में डीआइडी (कम उम्र के लोगों के लिए) में अपना डांस किया था. वहां फाइनल सेलेक्शन में उसका नाम नहीं आया था. वहां भी कई लोगों ने उसे लाचार समझा, लेकिन उसने कभी भी इन बातों पर ध्यान नहीं दिया.
दोस्तों के मामले में पवन खुद को काफी खुश किस्मत मानता है. लोगों का उसके प्रति जैसा भी नजरिया हो, लेकिन दोस्तों ने उसकी हर कदम पर मदद की है, फिर वह पढ़ाई हो या आर्थिक मदद. कभी ऐसी परिस्थिति होती, जहां काफी भीड़ होती तो सभी उसे घेर लेते ताकि उसे कोई परेशानी न हो. दीपक उसका बेस्ट फ्रेंड है. वह उसके सुख-दुख का साथी रहा है. वह उससे अपने मन की बात आसानी से बोल पाता है.
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