पटना: बच्चों के 92-95 प्रतिशत दिमाग का विकास दो साल के भीतर हो जाता है. उसके बाद धीरे-धीरे विकास होता है. ऐसे में बच्चों को कम-से-कम दो साल तक आहार के साथ मां का दूध मिलना चाहिए. मां के दूध में टॉरिन व सिसटिन नामक दो रसायन मौजूद होते हैं, जो दिमाग के विकास के लिए जरूरी हैं. ऐसे में अगर कोई अभिभावक अपने बच्चे को बाहर का दूध देते हैं, तो वह सही नहीं हैं.
ये बातें सोमवार को पीएमसीएच के शिशु विभाग में आयोजित कार्यशाला में शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ निगम प्रकाश नारायण ने कहीं. उन्होंने कहा कि मां के दूध की पूर्ति कोई भी दूध नहीं कर सकता है. मां का पहला पीला दूध बच्चे को कई बीमारियों से बचाता है. अगर मां अपने बच्चे को दो साल तक नियमित स्तनपान कराती है, तो उस बच्चे का संपूर्ण विकास बहुत तेजी से होता है और वह आम बीमारियों से दूर रहता है और इसके कारण हम नवजात बच्चों के मृत्यु दर को कम कर सकते हैं. जरूर कराएं नेत्र जांच : शिशु विभाग की अध्यक्ष डॉ संजाता राय चौधरी ने कहा कि जिन बच्चों का जन्म लेने के बाद दो किलो से कम वजन हो या उसे किसी भी कारण से ऑक्सीजन देना पड़े, वैसे बच्चों में अंधापन का खतरा अधिक होता है.
इसलिए ऐसे बच्चों का नेत्र जांच बेहद जरूरी है. बच्चे का जन्म सरकारी अस्पताल में हो या निजी नर्सिग होम में अभिभावक इसके प्रति सतर्क रहें. उन्होंने कहा कि सरकार को भी चाहिए जहां भी प्रसव की व्यवस्था है, वहां नवजात बच्चों का नेत्र जांच हो, इसकी पूरी व्यवस्था की जाये. जहां इसकी व्यवस्था नहीं हो वहां पर प्रसव के बाद चिकित्सकों को चाहिए कि वे बच्चे के माता-पिता को समझाएं. हाल के दिनों में नवजात की सुरक्षा के लिए अत्याधुनिक उपकरण आये हैं, लेकिन इसकी जरूरत नवजात को नहीं पड़े, इसके लिए हमें जागरूक होना पड़ेगा और मां के गर्भ धारण करने के बाद से लेकर उसके जन्म तक परिवार को दोनों का ख्याल रखना चाहिए और इसके लिए जरूरी है कि चिकित्सकों से नियमित मिलते रहें. सबसे उत्तम निवेश : शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ श्रवण कुमार ने कहा कि नवजात शिशु सुरक्षा में निवेश एक उत्तम निवेश है. नवजात शिशु में मृत्यु दर किसी भी प्रदेश के विकास का एक महत्वपूर्ण रास्ता है. जब बच्च स्वस्थ जन्म लेगा, उसका दिमाग ठीक से काम करेगा, तो वह समाज के विकास में अपना कुछ न कुछ योगदान जरूर करेगा.
इसलिए जरूरी है कि एक ऐसी व्यवस्था बनायी जाये, जिसके लागू होने के बाद बच्चों का मृत्यु दर कम हो सके. उन्होंने कहा कि सभी अस्पतालों में ऐसी व्यवस्था दी जाये कि जन्म के दौरान बच्चे में किसी तरह की परेशानी आये, तो उसका संपूर्ण इलाज उसी जगह पर हो जाये. बच्चे को लेकर कहीं भागना नहीं पड़े. कार्यशाला में पीएमसीएच अधीक्षक डॉ लखींद्र प्रसाद, डॉ यामिन मजूमदार, डॉ शीला सिन्हा, डॉ अमर कांत झा अमर, डॉ एसपी श्रीवास्तव, डॉ मधु सिन्हा सहित अन्य चिकित्सक मौजूद थे.