नार्थ इस्ट ट्रेन हादसाः जुड़वां बहनों में से एक की जान मां के साथ चली गयी, दूसरी पिता के साथ अस्पताल में भर्ती

बक्सर जिले के रघुनाथपुर में दुर्घटनाग्रस्त नॉर्थ ईस्ट एक्सप्रेस डुमरांव में भीषण रेल हादसे की याद ताजा करा गयी. लगभग 61 साल पहले 26 जुलाई 1962 को डुमरांव रेलवे स्टेशन पर खड़ी मालगाड़ी से पंजाब मेल टकरा गयी थी.

By Prabhat Khabar Print Desk | October 13, 2023 7:10 AM

बक्सर में हुए ट्रेन हादसे में एक हंसता-खेलता परिवार उजड़ गया. न्यू जलपाईगुड़ी के रहनेवाले दीपक भंडारी भी इसी ट्रेन में सफर कर रहे थे. उन्हें दिल्ली से अपने शहर न्यू जलपाईगुड़ी जाना था. इस हादसे में इनकी पत्नी और एक बेटी की मौत हो गयी. दीपक भंडारी (40 वर्ष) अपनी पत्नी उषा भंडारी (35 वर्ष) और दो जुड़वा बेटियों आकृति (08) और आदिति के साथ घर जा रहे थे. खाना खाकर सोने की तैयारी हो रही थी, इसी दौरान अचानक तड़तड़ाहट आवाज हुई और उनकी पत्नी और बेटी आकृति झटके में शीशे तोड़ कर बाहर गिर गयीं. इससे दोनों की मौत हो गयी. दीपक और आदिति का इलाज चल रहा है. अस्पताल में दीपक एक तरफ अपनी आंसू पोछ रहे थे, तो दूसरी तरफ मोबाइल पर कॉल आने पर अपनी पीड़ा बता रहे थे.


एलएचबी कोच की वजह से बचीं सैंकड़ों की जान

दानापुर मंडल के रघुनाथपुर स्टेशन के पास नार्थ-इस्ट एक्सप्रेस में हुए भीषण हादसे में चार लोगों की जान चली गयी और करीब 70 से अधिक लोग घायल हुए. मगर, हादसा जितना बड़ा था, उस हिसाब से बहुत अधिक जानें नहीं गयीं. इलेक्ट्रिकल विद्युत विभाग कार्यालय अधीक्षक सुनील कुमार सिंह ने बताया कि इस ट्रेन में कोच एलएचबी नहीं लगे होते तो मृतकों और घायलों का आंकड़ा और बढ़ जाता. उन्होंने बताया कि ट्रेनों में दो तरह के कोच लगते हैं एक एलएचबी और दूसरा आइसीएफ कोच होता है. दोनों कोच के निर्माण में तकनीक का अंतर होता है.

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ट्रेन टक्कर के बाद सीधे खड़े हो जाते हैं एलएचबी कोच

सुनील सिंह ने बताया कि लिंक हॉफमेन बुश (एलएचबी) कोच को बनाने की फैक्ट्री कपूरथला, पंजाब में है और सबसे पहले कोच 2000 में तैयार किया गया था. एचएलबी कोच यात्रियों के लिए काफी आरामदायक होते हैं. दुर्घटना की स्थिति में ये कोच कम क्षतिग्रस्त होते हैं और यात्रियों के सुरक्षित रहने की संभावना अधिक रहती है. तेजस राजधानी, शताब्दी और दुरंतो सहित कई प्रमुख ट्रेनों में एलएचबी कोच ही लगाये गये हैं. दुर्घटना के दौरान कोच एक दूसरे से टकराने के बाद सीधे खड़े होते हैं और फिर अपनी स्थिति में लौट आते हैं. एक ट्रेन में अधिकतम 22 कोच ही लग सकते हैं. ये स्टेनलेस स्टील की वजह से हल्के होते हैं. इसमें डिस्क ब्रेक का प्रयोग होता है. इसके रखरखाव में कम खर्च होता है. इसमें बैठने की क्षमता ज्यादा होती है स्लीपर में 80, 3 एसी 72 होते हैं.

उत्तर प्रदेश का बीएसएफ जवान छुट्टी बिताकर जा रहा था ड्यूटी

बक्सर के रघुनाथपुर के पास हुए ट्रेन हादसे में उत्तर प्रदेश का रहने वाले बीएसएफ जवान असम में अपनी ड्यूटी ज्वाइन करने जा रहा था. वह भी इस हादसे का शिकार हो गया. जिसका इलाज पटना एम्स में किया जा रहा है. उत्तर प्रदेश के मैनपुरी के वीरायमपुर गांव निवासी रवि कुमार के पिता विश्राम सिंह ने बताया कि बेटे के रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर हो गया है. उनके साथ रवि का छोटा भाई सुशील कुमार और यूपी पुलिस में जवान बहनोई अस्पताल पहुंचे हुए थे. बीएसएफ जवान रवि कुमार की हालत को देख उनके पिता भाई-बहन परिजन का अभी रो-रो कर बुरा हाल हो रहा है. उन लोगों को लगातार अपने परिवार वालों से मोबाइल पर बातचीत करते और रोते फफकते हुए देखा गया.

पांच मिनट के लिए प्लेटफॉर्म धुआं से भर गया था

पटना. राहत कार्य में जुटे अजय कुमार ने बताया कि आधे घंटे पहले चार नंबर प्लेटफॉर्म से मालगाड़ी गुजरी थी. वे तब चार नंबर प्लेटफॉर्म पर अपने दोस्तों के साथ टहल रहे थे. अचानक तेज आवाज हुई और आसमान में आग की चिंगारी के साथ कुछ देर के लिए धुआं फैल गया. इसके बाद वे लोग दौड़कर गये. चीख-पुकार मची थी. दरवाजा नहीं खुल रहा था. सीढ़ी लाकर ऊपर से यात्रियों को निकाल कर पहले प्लेटफॉर्म पर बैठाया गया. इसके बाद एंबुलेंस से अस्पताल के लिए भेजा गया.

राहत कार्य का रेल मंत्रालय सीधा प्रसारण देख रहा था

नॉर्थ इस्ट एक्सप्रेस के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद गुरुवार की सुबह से रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू कर दिया गया था. सुबह आठ बजे रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों ने घटनास्थल का मुआयना किया. रातभर से मौजूद अधिकारियों से घायलों की स्थिति और मृतकों के बारे में जानकारी ली. पहले रेल मंत्री के आने की खबर थी. लेकिन, बाद में बताया गया कि रेल मंत्रालय से ही राहत बचाव कार्य की मॉनीटरिंग की जा रही है. घटनास्थल से राहत कार्य का लाइव प्रसारण रेल मंत्रालय के अधिकारी देख रहे थे. इस बीच ड्रोन से भी पिक्चर और वीडियो रेल मंत्रालय और वरीय अधिकारियों को भेजा जा रहा था.

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