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तीन चरण गुजारा, अब लॉकडाउन 4.0, कैसे भरेगा पेट !

लाॅकडाउन के लंबे दौर में तीन चरण तक गुजारा करने के बाद अब आगे का दिन काटना जब मुश्किल हुआ, तो पेट की आग बुझाने सड़कों पर कारोबार के लिए गरीब तबके के लोग पहुंचने लगे है.

नवादा : लाॅकडाउन के लंबे दौर में तीन चरण तक गुजारा करने के बाद अब आगे का दिन काटना जब मुश्किल हुआ, तो पेट की आग बुझाने सड़कों पर कारोबार के लिए गरीब तबके के लोग पहुंचने लगे है. फुटपाथों पर कुछ-कुछ दुकानें लगा कर अपने परिवार के लिए आसरा बनने में कई लोग जुट गये है. इसमें कुछ ने कहा प्रधानमंत्री के जन धन योजना ने राहत दिया, तो कुछ ने कहा राशन कार्ड भी नहीं बनाया जा रहा है. ऐसे हालतों में लॉकडाउन 4.0 का सामना करना मुश्किल हो गया है. लॉकडाउन में किस तरह मजबूरियों के दौर से गुजारा किया गया, इन सभी बिंदुओं पर अलग-अलग लोगों से बातचीत के आधार पर लिया गया उनका दास्तान दर्द भरा है.

जन धन खाता में आये तीन हजार रुपये बना राहत पैकेजशहर के मोगलाखार निवासी अनवर हुसैन अपने उम्र के अंतिम पड़ाव पर 80 वर्ष उम्र गुजार चुके हैं. इनकी पत्नी जैतुन निशा की भी उम्र 75 साल हो चुकी है. दोनों एक-दूसरे के सहारे जीवन की अंतिम नैया पार करने में लगे हैं. अनवर शहर के मेन रोड में फुटपाथ पर पिछले 45 सालों से ताला बनाने का काम करते आ रहे है. इन दिनों लॉकडाउन में उसने किसी तरह अपने खाते में चार हजार रुपये बचा कर रखे थे, जब लॉकडाउन में जरूरत हुई तब खाते से रुपये निकालने के दौरान उसने-अपने जन धन खाते में तीन हजार की बढ़ोत्तरी पाया.

अनवर ने बताया कि यह रुपये हम दोनों पति-पत्नी के लिए एक वरदान साबित हुआ. उन रुपयों से इतने दिनों तक गुजारा करने के बाद अब रोजगार करने निकले हैं. प्रतिदिन 50 से सौ रुपये की कमाई हो जाती है.राशन कार्ड तक नहीं मिला, घड़ा बेचना मजबूरी महिला के कंधे पर परिवार की जितनी जवाबदेही होती है, उतनी पुरुषों के कंधे पर शायद नहीं होती है. घर गृहस्थी से लेकर बाहर तक का काम संभालना किसी चुनौती से कम नहीं है. यह दास्तान शहर के गोंदापुर निवासी सोना देवी की है, जो शहर के प्रजातंत्र चैक पर लाॅकडाउन 4.0 में मिट्टी के घड़े सहित अन्य समानों को बेचने के लिए दुकान लगायी थी. सोना देवी बताती हैं कि लाॅकडाउन के दौरान लंबे समय तक घर में रखे रुपये व अनाज समाप्त होने लगे तो फुटपाथ पर दुकान खोलने आना पड़ गया. एक घड़े की कीमत 130 रुपये बताती है.

कड़ी मेहनत के बाद मिट्टी के बर्तन तैयार कर दिनों भर जेठ के दोपहरी में रुपयों की जुगाड़ में बैठी रहती है. उसने बताया कि सरकार का कोई लाभ अब तक नहीं मिला, यहां तक कि राशन कार्ड भी नहीं बनाया जा रहा है. पंचायत के मुखिया तक गुहार लगा चुके हैं. अनाज के दाने-दाने को मोहताज होने से बेहतर रहा कि हम खुद फुटपाथ पर मिट्टी के बर्तन बेचने निकल पड़े. लगन के इंतजार में पेट चलाना हो गया मुश्किललगन के लिए बांस के बने सूप व बट्टा व मौनी आदि का निर्माण कर हर साल कमाई किया करते थे.

जिससे पूरे परिवार का भरण-पोषण होता था. लेकिन लाॅकडाउन के कारण चैती छठ का बना सूप भी नहीं बिक सका है. यह बातें शहर के अस्पताल रोड हाट पर सड़क किनारे फुटपाथ पर बांस के सामान बेचने वाली उषा देवी ने कही. उन्होंने बताया कि तीन बार लाॅकडाउन रहने के कारण रोजगार पूरी तरह से ठप पड़ गया. दाने-दाने को मोहताज हो गये. लाॅकडाउन 4.0 में कुछ राहत मिली है. फुटपाथ पर दुकान लगाना शुरू किये हैं, इक्का-दुक्का सूप आदि बिकने लगा है, जिससे पेट चलाने में राहत मिली है. गौरतलब है कि इस तरह की कई महिलाएं हैं, जो फुटपाथ बांस के सामान बेचने के लिए हर दिन जुटती हैं. उसने बताया कि चैती छठ का बना बांस के सामान अभी तक बचा हुआ है.

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