माह-ए-रमजान. इबादत में डूबे रोजेदार
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मुश्क-ए-अंबर से भी प्यारी है रोजेदार की मुंह की बदबू
माह-ए-रमजान. इबादत में डूबे रोजेदार मुजफ्फरपुर : रमजान के पाक माह में रोजे रखने के दौरान रोजेदार के मुंह की बदबू अल्लाह को मुश्क ए अंबर की खुशबू से भी ज्यादा पसंद है. रोजे की हालत में मोमिनों के कार्य से खुश होकर अल्लाह गुनाहों को माफ कर नयी जिंदगी जीने का बेहतरीन मौका देते […]
मुजफ्फरपुर : रमजान के पाक माह में रोजे रखने के दौरान रोजेदार के मुंह की बदबू अल्लाह को मुश्क ए अंबर की खुशबू से भी ज्यादा पसंद है. रोजे की हालत में मोमिनों के कार्य से खुश होकर अल्लाह गुनाहों को माफ कर नयी जिंदगी जीने का बेहतरीन मौका देते हैं.
महेश स्थान नूरी मसजिद के इमाम हाफिज वसी इमाम ने रविवार को नमाजे जोहर के उपरांत रोजेदारों से यह बात कही. उन्होंने अपने बयान में फरमाया की जो इंसान इस पाक माह में अल्लाह की नाफरमानी करेगा उस पर जहन्नुम की आग नाफिज कर दी जायेगी. इसलिए मोमिनों के हक में यह माह एक जीवनदान से कम नहीं है. हाफिज सरफराज अख्तर ने फरमाया की रमजान के महीने में रोजे रखना अनिवार्य माना गया है.
इस महीने में मुसलमानों को अपनी चाहतों पर नकेल कसकर अल्लाह की इबादत करनी चाहिए. यह महीना सब्र का महीना माना जाता है. इसका वर्णन इस्लाम धर्म की पवित्र पुस्तक कुरान में किया गया है.
रमज़ान के महीने में मुसलमानों को शिद्दत से नमाज़ और कुरान-शरीफ की तिलावत करनी चाहिए ताकि रब को राजी किया जा सके. इमाम ने बताया कि रमज़ान के महीने में जकात अदा करना बेहद जरूरी माना गया है. जकात उस धन को कहते हैं जो अपनी कमाई से निकाल कर
अल्लाह या धर्म की राह में खर्च किया जाए. इस धन का प्रयोग समाज के गरीब तबके के कल्याण और सेवा के लिए किया जाता है. जकात रमजान के महीने में आने वाली ईद से पहले दे देनी चाहिए, ताकि गरीबों तक यह पहुंच सके. रोजा रखकर व अल्लाह की इबादत करके इंसान अपने खुदा के करीब जाता है. ऐसा करने से इंसान खुदा से अपने किए हुए गुनाहों की तौबा मांग सकता है.
लड़का हो या लड़की सभी पर रमज़ान के महीने में रोजा रखना एक फर्ज होता है.
रमजान में जकात अदा करना जरूरी
समाज को पवित्र बनाने
का संदेश देता है रमजान
इमाम जाफर सदिक अलैहिस्ललाम ने कहा है कि उस समय तक तुम्हारी दुआ कबूल नहीं होगी जब तक कि समाज को पवित्र नहीं करोगे, तो लोगों ने पूछा कि पवित्र समाज कैसा होता है तो हजरत ने कहा कि ऐसा समाज जिसमें कमजोर
आदमी बिना भय के मजबूत आदमी से अपना हक मांग सके. हमारा यह समाज जब तक पवित्र नहीं होगा तब तक कि हम खुद को पवित्र न कर ले. इसलिए रोजे में बहुत सी जायज चीजों से रोका गया है ताकि जायज इच्छाओं पर खास नियंत्रण कर लिया जायेगा, तो आम दिनों में नाजायज इच्छाओं पर खुद- ब- खुद नियंत्रण हो जायेगा. परिणम होगा कि समाज से भ्रष्टाचार समाप्त होगा. अल्लााह की रहमत की बारिश शुरू होगी.
सैयद मो काजिम शबीब, इमाम, शिया जामा मसजिद, कमरा मुहल्ला
रमजान की रातों में फरिश्ते भेजते हैं रहमत
हदीस शरीफ में आया है कि जो शख्स हलाल कमाई से रमजान में रोजेदार को इफ्तार कराए उस पर रमजान की रातों में फरिश्ते रहमत भेजते हैं. शबे कदर में जिबरइल अमोन मुसाफा करते हैं. उसकी अलामत यह है कि उसके दिल में रिक्कत पैदा होती है और आंखों से आंसू बहते हैं, और यही वह लोग हैं जिनके दिल में खौफे जुदा पाया जाता है अपने रुह और जिस्म को खुदा की अमानत समझने वाले लोग ही जिंदगी के किसी मोड़ पर अमानत में खयानत नहीं करते और अपने जिस्म और जिस्मानियत को हर वक्त अल्लाह के हजूर हाजिर मान कर गुनाह से बचने की कोशिश में लगे रहते हैं.
मौलाना जिया अहमद कादरी, मर्कजी खानकाह आबादानिया व एदारा–तेगिया, माड़ीपुर
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