कहा प्राचीन ऋषि मुनियों ने राष्ट्रधर्म काे सर्वोपरि माना. संस्कृत कवियों में महाकवि कालीदास, वाल्मीकि, व्यास आदि ने रामायण, महाभारत, अभिज्ञान शकंतुलम, मेघदूत, उत्तम चरित्र, कुमार संभवम, रघुवंशम आदि रचनाओं में अनेक श्लाकों व रचनाओं का वर्णन किया है. कहा कि राजा दिलीप ने रक्षण और गोरक्षा के लिए अपना शरीर शेर को समर्पित कर दिया था.
लेकिन मौजूदा समय में राष्ट्रधर्म लुप्त होता जा रहा है. विशिष्ट अतिथि प्रो अमरेंद्र ठाकुर ने कहा कि राष्ट्र के लिए पूर्ण समर्पण और प्रजा पालन के लिए सर्वस्व त्याग करना ही राष्ट्रधर्म कहलाता है. संगोष्ठी की अध्यक्षता प्राचार्य डॉ नरेंद्र नारायण सिंह ने की. इस मौके पर संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो महेश्वर प्रसाद सिंह, प्रो सुरेंद्र प्रसाद सिंह, डॉ उमाशंकर प्रसाद सिंह, प्रो रमाकांत झा रमण, प्रो रेणु श्रीवास्तव मौजूद थे. संचालन डॉ ब्रह्मचारी व्यासनंदन शास्त्री व धन्यवाद ज्ञापन डॉ उमेश प्रसाद सिंह ने किया.