मुजफ्फरपुर : चुनाव के समय मतदाता सूची को लेकर हाय-तौबा होना नयी बात नहीं है. लोक सभा हो या विधान सभा या फिर निगम चुनाव के वोटर लिस्ट जारी होने के साथ नाम कटने व दूसरे वार्ड व बूथ में जुड़ने की शिकायत आना शुरू हो जाता है. इसका मूल वजह है कि मतदाता सूची तैयार करने में लापरवाही बरती जाती है. बिना सत्यापन किये मतदाता का नाम हटा दिया जाता है, या फिर जोड़ दिया जाता है. चुनाव आयोग के नियमानुसार वोटर के नाम हटाने या बूथ बदलने के पहले उसे नोटिस किया जाना चाहिए.
लेकिन बीएलओ वार्ड व पंचायत के जनप्रतिनिधि से बात कर वोटर लिस्ट बना लेते हैं. इसमें जनप्रतिनिधि अपने हिसाब से लोगों का नाम जुड़वाते व हटाते हैं. यही नहीं क्रमांक के बीच से नाम गायब हो जाता है. मामला सामने आने पर विखंडीकरण में गलती बता कर लीपा – पोती हो जाती है. 2010 के विधानसभा चुनाव में शहरी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर वोटर का नाम मतदाता सूची से हटा दिया गया था. वोटर लिस्ट में नाम नहीं रहने के कारण काफी संख्या में लोग वोट देने से वंचित हो गये थे. मामला चुनाव आयोग के पास पहुंचा था. जांच में पाया गया कि बगैर सत्यापन किये नाम हटा दिया गया है.
इसके बाद चुनाव आयोग ने नाम हटाने व जोड़ने के नियम को सख्त किया. इसके तहत वोटर के नाम हटाने के पहले नोटिस देकर उनसे मंतव्य लेना है. गृह स्वामी के मकान में नहीं रहने की स्थिति में आस – पड़ोस के लोगों से जानकारी लेनी हैं. इधर निगम के वोटर लिस्ट जारी होने के बाद सैकड़ों की संख्या शिकायत आयी है. मंगलवार को भी बूथ नंबर 29 के एक दर्जन वोटर ने डीएम सह जिला निर्वाचन पदाधिकारी से शिकायत किया है कि नाम जोड़ने के लिए आवेदन बीरएलओ को देने के बाद भी नाम नहीं जुट पाया.