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सर, सरस्वती पूजा के दिन रहती हैं स्कूल की छुट्टी!

मुजफ्फरपुर : सरस्वती पूजा के दिन स्कूल में छुट्टी रहती है. इसीलिए बुधवार को स्कूल बंद है. सिकंदरपुर स्थित सामुदायिक भवन में चल रहे प्राथमिक विद्यालय हरिजन बस्ती के चौथी कक्षा के छात्र गुड्डू कुमार का यह जवाब हैरान करने से ज्यादा शिक्षा व्यवस्था को आईना दिखाता नजर आया. सरस्वती ज्ञान की देवी हैं और […]

मुजफ्फरपुर : सरस्वती पूजा के दिन स्कूल में छुट्टी रहती है. इसीलिए बुधवार को स्कूल बंद है. सिकंदरपुर स्थित सामुदायिक भवन में चल रहे प्राथमिक विद्यालय हरिजन बस्ती के चौथी कक्षा के छात्र गुड्डू कुमार का यह जवाब हैरान करने से ज्यादा शिक्षा व्यवस्था को आईना दिखाता नजर आया. सरस्वती ज्ञान की देवी हैं और स्कूल ज्ञान का मंदिर. इस स्कूल परिसर में आसपास के बच्चे पूजा का आयोजन भी किये हैं. दोपहर करीब पौने 12 बजे स्कूल में दो दर्जन बच्चे विभिन्न कक्षाओं के थे. कुछ बच्चे क्लास रूम में थे, तो चार-पांच बाहर पूजा पंडाल बनवाने में मदद कर रहे थे. गुड्डू के साथ वहीं पर खड़े अन्य बच्चे भी इस बात से खुश थे सरस्वती पूजा के दिन छुट्टी रहेगी.

प्रावि सिकंदरपुर शिक्षा व्यवस्था की सच्चाई बयां करने के लिए महज बानगी है. शहर में ही दर्जन भर सरकारी स्कूलों में कुछ ऐसे ही हालात है, जबकि दूर-दराज के गांवों में चल रहे स्कूलों की व्यवस्था भगवान भरोसे है. दरअसल, स्कूलों में पढ़ाई को छोड़कर अन्य गतिविधियों पर अधिक जोर रहता है. यही वजह है कि ज्ञान की देवी अपने मंदिर से ही अलग होती जा रही है. खासकर, सरकारी स्कूलों में पठन-पाठन का माहौल दिनों-दिन बिगड़ता जा रहा है. बच्चों की उपस्थिति सुधारने व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए चल रहे अभियान धरातल पर असर नहीं दिखा रहे. सरस्वती पूजा को लेकर बच्चों में भी आस्था तो है, लेकिन उसके मायने समझ से बाहर है. शिक्षाविदों का कहना है कि जिस दिन मां सरस्वती अपने मंदिर में विराजमान हो जायेंगी, उसी दिन यह श्रद्धा साकार होगा.
शिक्षा के मंदिर में पठन-पाठन का माहौल बनाना जरूरी : बोचहां में तैनात मिडिल स्कूल के शिक्षक सुशील कुमार का कहना है कि शिक्षा के मंदिर में पठन- पाठन का माहौल बनाना जरूरी है. शिक्षा व्यवस्था सुधारने के लिए सरकारी स्तर से काफी प्रयास किया जा रहा है, लेकिन सही मॉनीटरिंग नहीं होने के कारण दिक्कतें आ रही हैं. कहा कि इसके लिए शिक्षकों को भी अपना कर्तव्य इमानदारी से निभाना होगा. एआइएल के जिला नोडल सुधीर कुमार का कहना है कि बच्चों में पढ़ाई के प्रति रुचि पैदा करके ही स्कूलों का माहौल सुधारा जा सकता है. इसके लिए परंपरागत तरीकों से हटकर कुछ नया करने की जरूरत है, जिससे बच्चों का पढ़ाई में मन लगे.
स्कूलों में शिक्षण व्यवस्था सुधारने के लिए चल रहे सरकारी मुहिम भी धरातल पर असर दिखाने में नाकाम है. स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति नियमित रहे तथा पढ़ाई भी होती रहे, इसके लिए मॉनीटरिंग की व्यवस्था की गयी है. सीआरसी, बीआरसी व प्रखंड से लेकर जिला स्तर तक जिम्मेदारी दी गयी है. लेकिन सिस्टम की गड़बड़ी के चलते पढ़ाई का माहौल नहीं बन पा रहा. जिले में कुछेक स्कूल अपवाद हो सकते हैं, जहां प्रभारी व शिक्षकों ने खुद के दम पर व्यवस्था को सुधारा है.
हालांकि, अधिकतर सरकारी स्कूलों में स्थिति बेपटरी होती जा रही है.
भवन, भोजन व कपड़े में उलझे शिक्षक
बच्चों को स्कूल तक लाने के लिए सरकार ने कई योजनाएं शुरू की हैं. स्कूल भवन का निर्माण शिक्षकों को ही कराना है. एक भवन की जिम्मेदारी मिलने पर उनका पूरा समय उसी में गुजर जाता है. इसके अलावा एमडीएम, पोशाक, छात्रवृत्ति शिक्षकों के लिए सिरदर्द है. सत्र के शुरुआत में डिमांड तैयार करने में कुछ महीने गुजर जाते हैं, तो राशि आने पर वितरण की जिम्मेवारी निभानी पड़ती है. जब वितरण से खाली होते हैं तो विभाग को उपयोगिता देने का टेंशन रहता है. इसके अलावा भी कई तरह के विभागीय कार्यों ने शिक्षकों का ध्यान पढ़ाई से हटाने में अहम भूमिका निभायी है.
और भी हैं समस्याएं
टीइटी एसटीइटी उत्तीर्ण नियोजित शिक्षक संघ के जिला महासचिव गणेश सिंह मंगलवार की दोपहर कुछ सहयोगियों के साथ डीपीओ स्थापना कार्यालय में जमे थे. उन्होंने बताया कि वेतन भुगतान व सेवा पुस्तिका सहित अन्य समस्याओं को लेकर तीन दिनों से परेशान है. अधिकारी केवल आश्वासन दे रहे हैं. उसी समय दर्जनभर माध्यमिक शिक्षक डीपीओ स्थापना के कक्ष में वेतन की समस्या पर ही चर्चा कर रहे थे. ऐसा नजारा रोज का ही है, क्योंकि शिक्षकों की समस्याओं का समय से निस्तारण नहीं हो पाता. यह भी एक बड़ी वजह है, जिसके चलते स्कूलों में पढ़ाई का माहौल नहीं बन पाता. स्कूल व कार्यालय का समय लगभग एक ही है. जब शिक्षक स्कूल छोड़कर अधिकारियों व बाबुओं के चक्कर लगाते हैं, तो बच्चों की पढ़ाई बाधित होती है.
सरकारी स्कूल के बच्चों का जवाब शिक्षा व्यवस्था का आईना
श्रद्धा तब होगा साकार, जब अपने मंदिर में बसे मां सरस्वती
स्कूलों में पढ़ाई को छोड़ अन्य गतिविधियों पर अधिक जोर

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