मुजफ्फरपुर : कहते हैं कि बच्चों की मुस्कान राष्ट्र की शान होती है. बच्चे रामकृष्ण परमहंस का रूप होते हैं, लेकिन आज हम आपकोबतातेहैं बिहार के मुजफ्फरपुर जिलेकेमीनापुर प्रखंड के मझौली गांव के रहने वाले एकऐसे बच्चेकीकहानी, जिसके बारे मेंजानकरआप हैरत में पड़ जायेंगे. कहानीसुनकर आप कभी रोमांचित होंगे, तो कभी आपकी आंखें उसके सिसकते बचपन को देखकर नम हो जायेंगी. जी हां., टेलीफोनके खंभे में जंजीर और ताले में जकड़े इस मासूम का नाम मंतोष है. नाम औरचेहराजितना भोला-भाला है. इसकी कहानी उतनी ही हैरतअंगेज और खौफनाक है. मंतोष के छोटे से जीवन में एक ऐसा वाकिया घटितहुआ,जिसके बाद इसके बचपन की लीला जंजीरों में जकड़कर कैद हो गयी.
क्या है मंतोष की पूरी कहानी
जंजीरों में बंधा मंतोष सात साल का मासूम बच्चा है. प्यारी और भोली सूरत का मालिक मंतोष तरसता है कि उसके पास भी बच्चे आयें और उसके साथ खेलें. ऐसा हो नहीं पाता. यह जानने केलिए मंतोष की कहानी जाननी होगी. मंतोष के परिजन और उसकी मां की मानें तो दो साल पहले मंतोष को एक सांप ने काट लिया. सांप के जहर का मंतोष पर कोई असर नहीं हुआ. मंतोष उल्टा सांप को उठा लिया और उसे दांत से काट लिया. इतना ही नहीं मंतोष ने कई टुकड़ों में सांप को काट खाया. परिजन अभी कुछ समझते तब तक मंतोष सांप को काटकर मार चुका था. इस घटना के बाद से मंतोष का जीवन बदल गया. अचानक एक दिन उसने अपने पड़ोसी की बकरियों को दांत से काट खाया. घटना में दो बकरियों की तत्काल मौत हो गयी. उसके बाद गांव वालों ने मंतोष की मां को ताना देना शुरू किया और मंतोष की भी गाहे-बगाहे पिटाई करने लगे.
जंजीरों में जकड़ा बचपन
गांव वालों के दबाव के आगे मंतोष के परिजनों को झुकना पड़ा और एक मां ने बच्चे की पिटाई होने से ज्यादा बेहतर उसे जंजीरों में जकड़ना समझा. मंतोष के पास बच्चा हो या बूढ़ा, कोई भी जाने से पहले सौ बार सोचता है. मंतोष को उसकी मां ने टेलीफोन के खंभे से जकड़ दिया. उस दिन के बाद से मंतोष लगातार दो सालों से जंजीरों में बंधा हुआ है. बेजान टेलीफोन का खंभा ही उसका सबकुछ है. दोस्त, पड़ोसी और खेलने का साधन. दो साल तक लगातार खंभे से बंधने की वजह से मंतोष अर्ध विक्षिप्त हो चुका है. एक मां के लिए मंतोष असहनीय दर्द है, तो गांव वालों के लिए महज तमाशा.
क्या कहते हैं परिजन
मंतोष की चाची ने बताया कि एक दिन वह घास काटकर घर आ रही थीं, तो उन्होंने देखा कि मंतोष के हाथ में सांप है और वह उसे दांत से काट रहा है. उसके बाद उन्होंने यह बात उसकी मां को बतायी. मां प्रमिला कहती हैं कि बच्चे को खुला नहीं छोड़ सकते. गांंववालों को आपत्ति है. इलाज के लिए जितना हो सकता था प्रयास किये. गरीब हैं कहां जायें. रात को सिर्फ कुछ देर के लिये जंजीर खोलते हैं, ताकि यह सो सके. बाकी दिन इसे बांधकर रखना मजबूरी है. इसके शरीर में विष है. यह जिसे भी काटता है, वह काल के गाल में समा जाता है.
नहीं हुआ कहीं इलाज
मंतोष के परिजनों के मुताबिक, उन्होंने जिला अस्पताल से लेकर राजधानी पटना के पीएमसीएच तक के चक्कर लगाये, लेकिन कहीं इलाज नहीं हुआ उल्टे उन्हें दुत्कार कर भगा दिया गया. मंतोष की कहानी सूबे की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोलने के लिए काफी है. मात्र इलाज के अभाव में एक मासूम दो सालों से जंजीरों में कैद है. मंतोष के पिता नागेश्वर महतो कहते हैं कि कई लोगों ने कहा कि इसका इलाज होने के बाद यह ठीक हो जायेगा, लेकिन वह मजदूरी करते हैं, भला कहां से इलाज का खर्च जुटा पायेंगे. पिता के मुताबिक, मंतोष कभी-कभार हिंसक हो जाता है. वह पास पड़े किसी भी सामान को दांतों से काटता है. बेड़ियों ने उसे इतना हिंसक बना दिया है कि कोई भी आस-पास जाये, तो उस पर झपटता है. पिता ने बताया कि मंतोष की वजह से कई बकरियों की जान जा चुकी है, इसलिए उसे जंजीरों में बांधकर रखना मजबूरी है.
मीडिया के माध्यम से स्थानीय लोगों ने की अपील
गांव के पंचायत नेउरा के पूर्व मुखिया सरदुल हक कहते हैं कि वे लोग मीडिया के माध्यम से देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के अलावा बिहार के मुख्यमंत्री से अपील करते हैं कि मंतोष का इलाज सरकारी खर्चे पर कराया जाये. मंतोष की कहानी पूरे जिले में चर्चा का विषय बनी हुई है. जंजीरों में कैद इस बाल-गोपाल को लोगों की मानें तो एक घटना ने बाल विषधर बना दिया है. सही इलाज हो तो मंतोष का बचपन दोबारा लौट सकता है.