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ग्लोबल वार्मिंग से कहीं मिट न जाये शाही लीची

मुजफ्फरपुर: बारिश की कमी, बेतहाशा पड़ रही गर्मी व वातावरण में तेजी से बढ़ रहे धूल कण वैसे तो सभी फलदार पौधे के लिए घातक साबित हो रहे हैं, लेकिन मौसम के तेजी से बदल रहे मिजाज का सबसे अधिक मार लीची पर पड़ रही है. विशेष रूप से मुजफ्फरपुर की पहचान शाही लीची का […]

मुजफ्फरपुर: बारिश की कमी, बेतहाशा पड़ रही गर्मी व वातावरण में तेजी से बढ़ रहे धूल कण वैसे तो सभी फलदार पौधे के लिए घातक साबित हो रहे हैं, लेकिन मौसम के तेजी से बदल रहे मिजाज का सबसे अधिक मार लीची पर पड़ रही है.

विशेष रूप से मुजफ्फरपुर की पहचान शाही लीची का अस्तित्व ही खतरे में है. मई प्रथम सप्ताह में बाजार में उतरने वाला प्रसिद्ध शाही लीची फिर प्रकृति के चपेट में है. मार्च महीने में सामान्य से पड़ी अधिक गर्मी लीची की सेहत पर भारी पड़ रहा है. किसान बाग में पानी पटा कर लीची के फल को झड़ने से रोकने के लिए जुगत कर रहे हैं, लेकिन आग उगल रही धूप व
धरती की गर्मी के आगे किसान की एक नहीं चल रही है. बाग में लीची के तेजी से झड़े फल को देख किसान माथा पीट रहे हैं.
लीची की जड़ नहीं सहन कर पाती अधिक गर्मी : लीची विशेषज्ञों के अनुसार लीची का फाइबर रूट (जालीदार जड़) होता है जो 8-9 इंच ही जमीन के नीचे रहता है. तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक होने व वाटर लेबल के नीचे चले जाने पर जमीन की गर्मी लीची की जड़ें अवशोषित कर लेती हैं. यही गर्मी पेड़ सूखने व फल झड़ने के समस्या के रूप में सामने आता है. दूसरी ओर वातावरण में बढ़ रहे धूल कण की मात्रा भी लीची के लिए घातक साबित हो रही है. धूल लीची के फल को बढ़ने से रोकता है. यही वजह है कि मार्च-अप्रैल महीने में बारिश होने पर फल साइज काफी कम हो जाता है.

कांटी के सहबाजपुर निवासी किसान मुरलीधर शर्मा बताते हैं कि तापमान अधिक होने पर बाग में पानी पटाने से फायदा नहीं हो रहा है. जमीन का तापमान अधिक होने से बाग में पटाया गया पानी आसपास के खेत की गर्मी को अवशोषित कर लेता है. इसका उल्टा असर हो जाता है. खेत में नमी के बदले गर्मी आ जाती है. किसानों का यह भी कहना है कि पक्की सड़क के किनारे के बाग
गर्मी से अधिक प्रभावित हैं. तपती सड़क से निकलने वाली हवा से फल जल जाता है.
कांटी, मीनापुर और सकरा में सबसे अधिक नुकसान
शाही लीची की नैहर माने जाने वाली कांटी व मीनापुर इलाके में सबसे अधिक नुकसान हो रहा है. इसका वजह इन दोनों क्षेत्र में ग्रांउड वाटर का बहुत नीचे जाना है. जानकारों के अनुसार कांटी के थर्मल पावर से निकलने वाली छाई व बड़े-बड़े बोरिंग से बाग को नुकसान हो रहा है. इसके अलावा सकरा में फरवरी महीने में ही जलस्तर के नीचे जाने से लीची के बाग सूखने लगा है. नये पौधे के साथ सालों पुराने पेड़ भी सूख गये हैं. सकरा के थतिया गोर्वधनपुर निवासी किसान जगन्नाथ मिश्र बताते हैं कि एक एकड़ में लगे लीची के पेड़ में अधिकांश सूख गये हैं. इन तीनों क्षेत्र में 50 प्रतिशत तक लीची के नुकसान का अनुमान है.

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