मुजफ्फरपुर: उद्योग मंत्रालय द्वारा उत्तर बिहार के छह जिले में रेशम उद्योग को बढ़ावा देने के लिए अस्सी के दशक में मलवरी प्रसार सह प्रशिक्षण केंद्र खोले गए थे. वर्तमान में सरकार की उदासीनता के कारण मोतिहारी और मधुबनी (जोंकी) का मलवरी केंद्र बंद हो गए.
जबकि मुजफ्फरपुर (मुसहरी), बेतिया (कुमारबाग) और सीतामढ़ी के मलवरी केंद्र अपने अस्तित्व को लेकर संघर्ष कर रहा है. वहीं अधिसूचना के बावजूद छपरा, गोपालगंज, दरभंगा व समस्तीपुर में इस केंद्र की स्थापना तीन दशक बीतने के बावजूद नहीं हो सकी. इधर, मुजफ्फरपुर के गोबरसही स्थित रेशम सेवा केंद्र और बैरिया व साहेबगंज के रीलिंग केंद्रों का नाम-निशान भी मिट गया है.
संयुक्त भवन मुजफ्फरपुर में तिरहुत, दरभंगा व सारण तीन-तीन प्रमंडलों का मॉनिटरिंग ऑफिस होने के बावजूद रेशम उद्योग की इस बदहाली की खोज-खबर लेने वाला कोई नहीं है.
उत्तर बिहार में तत्कालीन उद्योग मंत्री एलपी शाही ने 1983-84 में रेशम एरिया का चयन किया था. उसी दौरान मुजफ्फरपुर के महमदपुर गोखुल (मुरौल) और बेगूसराय में अंडी प्रसार सह प्रशिक्षण केंद्र के अलावा मुसहरी, मोतिहारी, मधुबनी, वैशाली (रानीपोखर), सीतामढ़ी, बेतिया (कुमारबाग) व सिवान में मलवरी प्रसार सह् प्रशिक्षण केंद्र को खोले गए. वहीं दरभंगा, समस्तीपुर, छपरा व गोपालगंज जिले को भी इसके लिए अधिसूचित किया गया. मगर इन जिले में आज तक यह केंद्र नहीं खुल पाया. जहां खुला भी उनका हाल बेहाल है. न कोई कारगर योजना है न पर्याप्त आवंटन. दम तोड़ रहे इस उद्योग के पीछे एक बड़ा कारण किसानों को कोकुन (रेशम) की उचित कीमत नहीं मिल पाना है. जानकार बताते हैं कि यहां से उत्पादित मलवरी कोकुन या अंडी कोकुन का उचित बाजार नहीं है. इसे मलवरी प्रशिक्षण केंद्र पर ही बेच दिया जाता है, जहां मात्र दो से ढाई सौ रुपये प्रति किलोग्राम की दर से कीमत मिलती है. जबकि पश्चिम बंगाल में यही कोकुन आठ सौ रुपये प्रति किलोग्राम बिकता है.