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मनरेगा : नौ महीने में सर्फि 20 प्रतिशत मजदूरों को मिला काम

मनरेगा : नौ महीने में सिर्फ 20 प्रतिशत मजदूरों को मिला काम – जिले में 5.65 लाख मनरेगा मजदूर – मनरेगा के पिछड़ने से ग्रामीण विकास योजनाओं पर लगा ब्रेक – पीआरएस के हड़ताल व राशि का अभाव के बीच लटका रहा का काम- कांटी, कटरा, मीनापुर, मोतीपुर, मुरौल व मुशहरी प्रखंड में 17 प्रतिशत […]

मनरेगा : नौ महीने में सिर्फ 20 प्रतिशत मजदूरों को मिला काम – जिले में 5.65 लाख मनरेगा मजदूर – मनरेगा के पिछड़ने से ग्रामीण विकास योजनाओं पर लगा ब्रेक – पीआरएस के हड़ताल व राशि का अभाव के बीच लटका रहा का काम- कांटी, कटरा, मीनापुर, मोतीपुर, मुरौल व मुशहरी प्रखंड में 17 प्रतिशत मजदूरों को ही मिला काम उप मुख्य संवाददाता, मुजफ्फरपुर मनरेगा में चार साल पहले तक सूबे में अव्वल रहने वाला मुजफ्फरपुर जिला पिछले दो साल से काफी पीछे चल रहा है. मनरेगा योजना में लक्ष्य के अनुसार न याेजना पूरी हुई और न ही मजदूरों को काम मिला. 2015 में स्थिति तो और भी खराब रही. पंचायत रोजगार सेवक के लगातार हड़ताल पर रहने व राशि के अभाव के कारण मनरेगा का कार्य जिले में लगभग ठप हो गया. इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जिले में जॉब कार्डधारी मजदूरों की संख्या 5.65 लाख के करीब है. इनमें से सिर्फ बीस प्रतिशत मजदूरों को ही काम मिला. कुछ प्रखंड कांटी, कटरा, मीनापुर, मोतीपुर, मुरौल व मुशहरी में तो स्थिति इससे भी दयनीय रही. इन प्रखंडों में 17 प्रतिशत ही मजदूरों को काम दिया गया. इससे समझा सकता है कि मजदूरी नहीं मिलने से योजनाएं भी चालू नहीं हुई. दरअसल पीआरएस के अपने स्थायीकरण व अन्य मांगों को लेकर हड़ताल पर चले जाने के कारण पंचायत सचिव को मनरेगा की कमान सौंपी गयी, लेकिन स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ. पंचायत सचिव ने बंद योजनाओं को चालू करने पर पहल भी नहीं की. उधर, पीआरएस के लगातार हड़ताल पर रहने पर तत्कालीन डीडीसी ने सभी पीआरएस को बरखास्त करने की अनुशंसा सरकार से कर दी. इसके बाद मनरेगा योजना का काम, बिल्कुल पीओ (कार्यक्रम पदाधिकारी) के भरोसे हो गया. पीओ को दिया गया टास्कमनरेगा योजना की जिले में खराब स्थिति को देखते हुए डीएम धर्मेंद्र सिंह ने सभी पीओ को संविदा रद्द करने की चेतावनी देते हुए टास्क सौंपा. इसमें हर हाल में प्रत्येक पंचायत में 50-50 कार्य दिवस सृजन करने को कहा गया. साथ ही सेल्फ ऑफ प्रोजेक्ट योजना के तहत स्कीम चालू कर मजदूरों को काम दिलाने को कहा गया. सामाजिक वानिकी कार्यक्रम में तेजी लाते हुए पौधरोपण का काम भी कराने का निर्देश दिया गया है. पंचायत प्रतिनिधि रहे परेशान मनरेगा योजना से काम नहीं होना पंचायत प्रतिनिधियों के लिए परेशानी का सबब बना रहा. पंचायत की योजनाएं बंद रहने पर जहां लोगों का कोप भाजन बनना पड़ा, वहीं अगले साल 2016 में होने वाले पंचायत चुनाव को लेकर मुखिया व वार्ड पाषर्द की चिंता बढ़ी रही.

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