मुजफ्फरपुर: समूह बीमा राशि के दावों के भुगतान में इन दिनों बीआरए बिहार विवि प्रशासन के पसीने छूट रहे हैं. हाल यह है कि इस योजना मद में विवि के खाते में महज 11 लाख रुपये शेष हैं, जबकि अब तक आये 340 दावों के भुगतान के लिए उसे 1.5 करोड़ रुपये से अधिक राशि की जरूरत है.
आवेदन आने का सिलसिला जारी है. ऐेसे में यह दावा दो करोड़ रुपये के पार जा सकता है. मजबूरी में अब विवि प्रशासन इस योजना को खत्म करने पर विचार कर रहा है, लेकिन यह उतना आसान नहीं. योजना बंद करने से पूर्व न सिर्फ उसे सेवानिवृत्त शिक्षकों व कर्मचारियों के दावों का निपटारा करना होगा, बल्कि कार्यरत शिक्षक व कर्मचारियों के वेतनमद से काटी गयी राशि को भी लौटाना होगा.
लेखा विभाग इसके लिए ‘एकमुश्त समझौता’ पर विचार कर रहा है, पर इसके लिए लाभुकों की आम सहमति अनिवार्य होगा.
1985 में शुरू हुई योजना
विवि में ग्रुप बीमा योजना की शुरुआत एक अप्रैल 1985 में हुई थी. इसके तहत पीजी विभाग में कार्यरत शिक्षकों व थर्ड ग्रेड कर्मचारियों के वेतन से प्रतिमाह 80 रुपये व फोर्थ ग्रेड कर्मचारी के वेतन से प्रतिमाह 40 रुपये इस योजना में काटे जाते हैं.
सेवानिवृत्त होने पर शिक्षक व कर्मचारियों को काटी गयी राशि में राष्ट्रीयकृत बैंक में देय ब्याज दर जोड़ कर वापस किया जाता है. सेवानिवृत्ति से पूर्व मृत्यु होने की स्थिति में शिक्षक व थर्ड ग्रेड कर्मचारियों के परिजनों को 96 हजार व फोर्थ ग्रेड कर्मचारियों के परिजनों को 48 हजार रुपये देने का प्रावधान है.
निवेश के नाम पर फिक्स होती थी राशि
शुरुआत में विवि प्रशासन ने समूह बीमा की राशि के निवेश की योजना बनायी थी. इसके तहत बीमा क्षेत्र की किसी कंपनी से समझौता होना था, लेकिन ऐसा हो न सका. पहले दस साल तक शिक्षकों व कर्मचारियों के वेतनमद से काटी गयी राशि को फिक्स डिपोजिट के रूप में बैंक में जमा किया गया. विवि में कर्मचारियों की बहाली वर्ष 1962 में शुरू हुई. इसके कारण 1990 तक सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों की संख्या काफी कम थी. लेकिन परेशानी उसके बाद शुरू हुई, जब इसकी संख्या में तेजी से इजाफा हुआ. वर्ष 1999 से 2014 के बीच करीब 1900 कर्मचारी व शिक्षक सेवानिवृत्त हुए. वहीं दर्जनों कार्यरत कर्मचारी व शिक्षकों का निधन हो गया. इनके दावों के भुगतान के लिए बैंक में फिक्स की हुई राशि को तोड़ दिया गया.
सरकार ने बदली योजना, विवि ने नहीं
राज्य सरकार ने अपने अधीन कार्यरत कर्मचारियों के लिए जब एक अप्रैल 1985 में समूह बीमा योजना की शुरुआत की, तो उसी तर्ज पर विवि में भी इस योजना की शुरुआत हुई. लेकिन राज्य सरकार ने एक अप्रैल 1998 में योजना में बदलाव किया. इसके तहत कर्मचारियों को चार ग्रुप में बांटा गया. फिर उनके वेतन से काटी जाने वाली राशि में से 30 प्रतिशत बीमा क्षेत्र में व 70 प्रतिशत राशि सेविंग फंड में डाला जाने लगा. लेकिन विवि ने अपनी योजना में कोई बदलाव नहीं किया.
विवि में जो योजना चल रही है, सरकार ने उसे पहले ही बंद कर दिया है. फिलहाल यह विवि के लिए घाटे का सौदा है. ऐसे में इसे बंद करने पर विचार किया जा रहा है. लेकिन इसके लिए काटी गयी राशि लाभुकों को कैसे वापस की जाये, इसकी रणनीति तैयार करनी होगी. अंतिम फैसला कुलपति का होगा.
आरएनपी सिंह, वित्त पदाधिकारी