दरअसल, वर्ष 2011 में पूर्व कुलपति डॉ विमल कुमार के समय पांच दर्जन से अधिक कर्मचारियों को रेगुलराइज्ड किया गया. इसके लिए राज्य सरकार की ओर से 1991 में जारी अधिसूचना को आधार बनाया गया. हालांकि बाद में जांच के क्रम में पता चला कि उक्त अधिसूचना खुद राज्य सरकार ने 1995 में निरस्त कर दी थी. यही नहीं नियमित किये गये कर्मचारियों में चौदह पश्चिम चंपारण के एक कॉलेज से थे, जिनकी नियुक्ति को खुद राज्य सरकार ने ही जन्मजात अवैध बताया था.
रेगुलराइज्ड होने के बाद कई बार इन कर्मचारियों के भुगतान का मामला उठा. कुलपति डॉ पंडित पलांडे के समय जब एक बार फिर यह मामला उठा तो उन्होंने इसे डिस्कशन के लिए संचिका कुलसचिव को बढ़ा दी. लेकिन बिना कुलसचिव के कमेंट के ही डीलिंग असिसटेंट ने संचिका भुगतान के लिए लेखा विभाग के पास भेज दिया. इसको लेकर काफी विवाद भी हुआ. आखिर में संचिका वित्त अधिकारी के पास भेजी गयी, जिसमें उन्होंने नियमितीकरण के साथ डिप्टी रजिस्ट्रार द्वारा रेगुलराइजेशन की अधिसूचना पर सवाल उठा दिये. उनका तर्क है कि वित्त मामले में अधिसूचना जारी करने का अधिकार रजिस्ट्रार का है. इसके बाद से ही मामला लंबित है.