मुजफ्फरपुर: शिक्षा विभाग में गजब का खेल हो रहा है. लाभ के लिए विभाग के अधिकारी कुछ भी सही-गलत कर लेते हैं. भले ही अच्छा काम में चाहे कितना ही रोड़ा न अटक जाये. ऐसा ही एक और मामला सामने आया है. नियम के विपरीत शिक्षा विभाग के अधिकारी 2.14 करोड़ रुपये पर वर्षों से कुंडली मार बैठे हैं. इस पैसे का हिसाब-किताब रोकड़ बही में भी नहीं दिखाया गया है, जबकि इतनी अधिक राशि एक साथ अपने पास रखने का कोई प्रावधान नहीं है. इस मामले का खुलासा महालेखाकार की ऑडिट रिपोर्ट 2014-15 से हुआ है. यह मामला जिला शिक्षा पदाधिकारी कार्यालय का है.
ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार, डीइओ कार्यालय के कागजात की जांच में कई अनियमितता का खुलासा हुआ है. रोकड़ बही की समीक्षा में पाया गया कि 31 दिसंबर 2012 को विभिन्न योजनाओं की अवशेष राशि 2.70 करोड़ रुपये थी. पिछले लेखा परीक्षा दल ने बताया था कि कई योजनाओं में उपयोग नहीं किये गये 92 लाख रुपये संबंधित मद में जमा नहीं किया गया, उसे जमा किया जाये. लेकिन जमा नहीं हो सका.
आगे भी जांच में पाया गया कि वित्तीय वर्ष 2013-14 में उस राशि में से मात्र 8.32 लाख रुपये ही चालान के माध्यम से कोषागार में जमा किया गया. रोकड़ बही में इतने का ही हिसाब था. वर्तमान में 31 दिसंबर 2014 को 2.14 करोड़ रुपये अवरूद्ध था. इसका हिसाब-किताब रोकड़ बही में नहीं दिखाया गया था. जब विभाग से पूछा गया, तो अधिकारियों ने कहा,योजनाओं में खर्च के बाद बची हुई राशि की विस्तृत वितरणी तैयार कर संबंधित योजनाओं की शीर्ष मद में वापस कर दी जायेगी.
महालेखाकार का कहना है कि यह सब प्रक्रिया नियम के विपरीत है. नियम 177 के अनुसार, मांगाें की प्रत्याशी में या बजट अनुदानों को लैप्स हो जाने से बचाने के लिए कोषागार से राशि की निकासी नहीं की जानी चाहिए. यदि किसी परिस्थिति में सक्षम प्राधिकारी के आदेशों से एडवांस निकासी की जाती है, तो इस प्रकार निकासी की गयी राशि खर्च नहीं होने की स्थिति में अगले विपत्र में या चालान के साथ अल्पकालीन निकासी द्वारा कोषागार में यथाशीघ्र जमा कर देना चाहिए.
किसी भी तरह ‘जिस वित्तीय वर्ष राशि की निकासी हुई है’ वित्तीय वर्ष अंत होने से पूर्व ही कोषागार में जमा कर देनी चाहिए.