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मन्नत की हाथी से मिलती हैं रोटियां

मन्नत की हाथी से मिलती हैं रोटियांफोटो दीपकछठ पर हाथी बैठाने की परंपरा से मिलता है रोजगारशहर में करीब तीन से चार करोड़ का होता है कारोबारउत्तर बिहार के विभिन्न जिलों में होती है हाथी की आपूर्तिवरीय संवाददाता, मुजफ्फरपुरछठ में हाथी बैठाने से मन्नतें तो पूरी होती ही हैं, वहीं इस मन्नत से हजारों लोगों […]

मन्नत की हाथी से मिलती हैं रोटियांफोटो दीपकछठ पर हाथी बैठाने की परंपरा से मिलता है रोजगारशहर में करीब तीन से चार करोड़ का होता है कारोबारउत्तर बिहार के विभिन्न जिलों में होती है हाथी की आपूर्तिवरीय संवाददाता, मुजफ्फरपुरछठ में हाथी बैठाने से मन्नतें तो पूरी होती ही हैं, वहीं इस मन्नत से हजारों लोगों की रोटी चलती है. आस्था के इसी भाव से शहर में करीब डेढ़ से दो लाख मिट्टी के हाथी बनाये जाते हैं. इसके लिए कारीगर दो महीने पहले से ही जुटे रहते हैं. दशहरा के बाद से ही मिट्टी का हाथी बनना शुरू हो जाता है. निर्माण के बाद उसे पारंपरिक तरीके से हल्दी व चावल के रंगों से रंगा जाता है. पारंपरिक मान्यता के अनुसार उस पर नक्काशी की जाती है. इसके बाद उत्तर बिहार के अन्य जिलों में इसकी आपूर्ति शुरू हो जाती है.छठ में होता है तीन से चार करोड़ का कारोबारकारीगरों की मानें तो छठ के समय शहर में तीन से चार करोड़ का मिट्टी के हाथी का कारोबार होता है. शहर में करीब 1000 लोग मिट्टी के हाथी बनाने में जुट जाते हैं. जब मांग के हिसाब से आपूर्ति के लायक हाथी नहीं बन पाता, तो जरूरत के हिसाब से गांवों के कारीगरों से खरीद की जाती है. उसके बाद हाथी पर कलात्मक नक्काशी की जाती है. हरिसभा के कारीगर अरुण पंडित कहते हैं कि यहां से बने हाथी उत्तर बिहार के विभिन्न जिलों के अलावा रक्सौल तक जाता है. वहां के व्यापारी पहले से ही इसका ऑर्डर दे देते हैं.

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