कुशी गांव में है बुद्ध का महापरिनिर्वाण स्थलबौध धर्म गुरुओ ने भी किया है निरक्षण खुदाई में मिल चुके हैं कई साक्ष्यपूर्व केंद्रीय व राज्य मंत्री ने भी किया था निरीक्षणअबतक है उपेक्षित प्रतिनिधि, पानापुर भगवान बुद्ध का महापरिनिर्वाण स्थल उपेक्षा का शिकार बना हुआ है. यद्यपि अभी तक कुशी गांव को महापरिनर्वाण स्थल की मान्यता मिल भी नहीं पाई है. उत्तर प्रदेश के कुशीनगर को बुद्ध के महापरिनिर्वाण स्थल के रूप में जाना जाता है. लेकिन कुशी गांव में मिले अवशेषों के आधार पर जानकार दावा करते हैं कि कुशी में ही बुद्ध ने अंतिम सांसें ली थी. इतिहास के साक्ष्यों के आधार पर कुछ लोगों का दावा है कि वैशाली व पाटलीपुत्र में मिले बौद्धकालीन अवशेष, कुशी में मिले अवशेष से मेल खाते हैं. बौद्ध साहित्य में यह बात भी है कि बुद्ध वैशाली से चलकर कुशी पहुंचे थे. इस दूरी को उन्होंने अठारह घंटों में तय कया था. यदि वे उत्तर प्रदेश गये होते तो उस समय क्या यह संभव था. नूतन साहित्य परिषद के अध्यक्ष चंद्रभूषण सिंह कहते हैं कि उस समय यातायात व्यवस्था काफी दुर्गम थी. उसपर बुद्ध की उम्र अस्सी वर्ष थी. उस हिसाब से देखें तो वह कुशी, यही है. यहां उन्होंने अपने पांच सौ शिष्यों को कांति सूत्र का संदेश दिया था. अंग्रेजों ने उसी आधार पर इस स्थल का नाम कांति रख दिया. बाद में यह कांटी हो गया. कुशी गांव को बुद्ध के महापरिनिर्वाण स्थल घोषित किये जाने की मांग को लेकर 1962 से आंदोलन शुरु हुआ. उसके बाद सन 87 में उत्तर प्रदेश के कसिया से एक टीम यहां पहुंची. खुदाई शुरु हुई. इस दौरान 148 पुरातात्विक साक्ष्य मिले. लेकिन साजिश के तहत खुदाई रोक दी गयी. खुदाई में मिले अवशेषों को टीम साथ ले गयी. उसका क्या हुआ यह पता किसी को नहीं है. मालूम हो कि इस गांव में दो भिंडा है. उसके समीप नदी का स्वरूप भी दिखता है. हालांकि यह केवल बरसात के दिनों में ही परलक्षित हो पाता है. बताया जाता है कि यह हिरण्यवती नदी थी. दो जनवरी 2007 को जब विद्यालय निर्माण के लिए खुदाई करवाई गयी थी तो कई अवशेष मिले थे. उनकी जांच के लिए तत्कालीन डीएम विनय कुमार ने कला संस्कृति विभाग से सिफारिश की थी. कब बनेगा पर्यटन स्थल जब 2007 में एक बार फिर इसे पर्यटन स्थल बनाये जाने की मांग तेज हुई थी. 10 जनवरी 2007 को तत्कालीन केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री रघुवंश प्रसाद ने स्थल निरीक्षण भी किया. आश्वासन दिया कि इसे सूफी सर्किट से जोड़ा जायेगा. लेकिन वह आश्वासन फाइलों में सिमट कर ही रह गया. फिर 19 जनवरी 2007 को तत्कालीन खेल एवं संस्कृति मंत्री जनार्दन सिंह सिग्रीवाल ने भी यहां का दौरा किया. राज्य सरकार से हर संभव मदद दिलाने का आश्वासन दिया. लेकिन यह आश्वासन भी काम न आया. बौध धर्म गुरुओ ने भी किया है निरीक्षण 24 जनवरी 2007 को विश्व के चार देशो के बौध धर्म गुरुओ ने कुशी पहुंचकर जायजा लिया. उनलोगों ने भी इसे बुद्ध से जुड़ा अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल बताया था. भगवान बुद्ध जिस उम्र में वैशाली से कुशी पहुचे थे और जितना समय लगा था उतने समय में संभव ही नहीं है की वो उत्तर प्रदेश के कसिया पहुंचे हो, खास बात तो ये है की उस समय उनकी उम्र 80 वर्ष थी. वे डायरिया से पीड़ित थे. उमेश्वर ठाकुर, पूर्व मुखिया जब सन 1989 में कुशी बुद्ध स्थल पर खुदाई शुरू हुई तो जो अवशेष मिले उससे साबित होता है की यही बुद्ध का महापरिनिर्वाण स्थल है. चूंकि खुदाई उत्तर प्रदेश की टीम कर रही थी. वहां के कसिया को मान्यता प्राप्त है इसलिए खुदाई जैसे ही अपने लक्ष्य तक पहुंचती कि रोक दी गयी. वे खुदाई में मिले अवशेष को अपने साथ ले गएनलिनी रंजन सिंह, पूर्व विधायकभगवान बुद्ध जब वैशाली से कुशीनगर के लिए चले थे तब उन्हें लगभग १८ घंटे लगे थे. यह दूरी तय करने में, उन्होंने इस यात्रा के दौरान कई जगह पर थोड़ी-थोड़ी देर के लिये विश्राम भी किया था. ऐसा जानकारों का मानना है. फिर कहीं से ऐसा संभव ही नहीं लगता है की वो इतने घंटो में उत्तर प्रदेश पहुंचे हों. प्रो़ हरिशंकर पाण्डेय, आरसीएनडी कॉलेज, कांटी
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कुशी गांव में है बुद्ध का महापरिनर्विाण स्थल
कुशी गांव में है बुद्ध का महापरिनिर्वाण स्थलबौध धर्म गुरुओ ने भी किया है निरक्षण खुदाई में मिल चुके हैं कई साक्ष्यपूर्व केंद्रीय व राज्य मंत्री ने भी किया था निरीक्षणअबतक है उपेक्षित प्रतिनिधि, पानापुर भगवान बुद्ध का महापरिनिर्वाण स्थल उपेक्षा का शिकार बना हुआ है. यद्यपि अभी तक कुशी गांव को महापरिनर्वाण स्थल की […]
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