इंसानियत को दिल से महसूस करने वाले शैलेंद्र की पहल का ही परिणाम है कि आज उनके गोधूलि आश्रम में चार बुजुर्ग अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं. उनके खाने पीने, आश्रय व स्वास्थ्य में शैलेंद्र कोई कमी नहीं होने देते. सबसे बड़ी बात यह है कि इसके लिए उन्हें कोई सरकारी मदद भी नहीं मिलती. शैलेंद्र सारा खर्च समाज के कुछ लोगों के सहयोग से उठाते हैं.
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अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस पर विशेष, एक शख्स की इंसानियत ने दिया बुजुर्गों को आशियाना
मुजफ्फरपुर. बुजुर्गों से नाता तोड़ने वाले अपने भले ही पराये हो जाये, लेकिन समाज में कई ऐसे लोग हैं जो पराये को भी अपनों जैसा प्यार देते हैं. ऐसे ही लोगों में शहर के शैलेंद्र कुमार एक हैं. इंसानियत को दिल से महसूस करने वाले शैलेंद्र की पहल का ही परिणाम है कि आज उनके […]
मुजफ्फरपुर. बुजुर्गों से नाता तोड़ने वाले अपने भले ही पराये हो जाये, लेकिन समाज में कई ऐसे लोग हैं जो पराये को भी अपनों जैसा प्यार देते हैं. ऐसे ही लोगों में शहर के शैलेंद्र कुमार एक हैं.
प्रजापिता ईश्वरीय विश्वविद्यालय से मिली प्रेरणा. शैलेंद्र कहते हैं कि वे प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय से जुड़े हैं. वे एक बार जब माउंट आबू गये तो वहां उन्हें बंगलुरु के एक व्यक्ति से मुलाकात हुई. उन्होंने बताया कि वे अनाथालय चलाते हैं, जिसमें बुजुर्गों को रखा जाता है. शैलेंद्र इससे काफी प्रभावित हुए. वे उनका अनाथालय देखने उनके साथ हैदराबाद चले गये. यहीं उन्होंने शहर में भी बुजुर्गों के लिए आशियाना बनाने की ठानी. इसके बाद 2006 में उन्होंने रामदयालु में गोधूलि आश्रम की स्थापना की. वर्ष 2009 में उन्होंने कन्हौली में एक घर लेकर आश्रम बनाया. तबसे आज तक वे बुजुर्गों की सेवा कर रहे हैं.
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