Advertisement
तब ये भी गर्व से कहेंगे आजाद हैं हम!
धनंजय पांडेय मुजफ्फरपुर : आज हर तरफ स्वतंत्रता दिवस का जश्न मन रहा है, लेकिन छह दशक बाद भी समाज के निचले पायदान पर खड़े परिवारों के लिए आजादी का मतलब सार्थक नहीं हो सका है. इनके बच्चों को शिक्षा का बुनियादी हक भी नहीं मिला. नतीजा, वे राष्ट्रीय पर्व से अनजान हैं. जब होश […]
धनंजय पांडेय
मुजफ्फरपुर : आज हर तरफ स्वतंत्रता दिवस का जश्न मन रहा है, लेकिन छह दशक बाद भी समाज के निचले पायदान पर खड़े परिवारों के लिए आजादी का मतलब सार्थक नहीं हो सका है. इनके बच्चों को शिक्षा का बुनियादी हक भी नहीं मिला. नतीजा, वे राष्ट्रीय पर्व से अनजान हैं.
जब होश संभाला तो और बच्चों की तरह इनके पांव भी घर से बाहर निकले, लेकिन स्कूल जाने की बजाय, मेहनत मजदूरी करने के लिए. हाथ में कॉपी-किताब की जगह जूठे बर्तन आ गये, तो कंधे पर स्कूल बैग की जगह कचरे से भरी बोरी ने ली. स्वतंत्रता दिवस का दिन तो दूर, इन्हें तो यह भी नहीं मालूम कि देश किस महीने में आजाद हुआ था.
वैसे तो सरकारी स्तर पर इन बच्चों को स्कूल तक पहुंचाने के लिए कई योजनाएं बनीं अरबों रुपये खर्च भी हुए, लेकिन इनकी हालत जस की तस रही. अगर इनकी स्थिति सुधर जाती, तो ये भी कह पाते कि आजाद हैं हम.
उम्र यही कोई आठ-दस साल. सीजेएम कोर्ट परिसर में स्वतंत्रता दिवस की तैयारी को लेकर सफाई चल रही थी, तो करन वहीं कूड़ादान से प्लास्टिक की बोतलें चुन रहा था. उसे इस बात का तनिक भी अहसास नहीं था कि अब से कुछ घंटों बाद ही देश की आजादी के वर्षगांठ पर जश्न शुरू होगा. उसे तो इस बात की फिक्र थी कि कितनी जल्दी उसकी बोरी भर जाये.
शहर के सिकंदरपुर का रहने वाला करन छोटे भाई व मां का गुजारा अपनी मेहनत के बल पर करता है. बचपन में ही पिता की मौत के बाद उसके ऊपर बोझ आ गया. बचपन से कभी स्कूल का मुंह भी नहीं देखा. परिवार की स्थिति ऐसी नहीं रही कि पढ़ने की बात भी सोचे. बताया कि प्लास्टिक बेचकर जो कुछ मिलता है, उसी से परिवार का गुजारा होता है.
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement