मुजफ्फरपुर: आज पूरे देश में 1974 के हालात हैं. उस समय युवाओं का आंदोलन लोक नायक जयप्रकाश नारायण ने शुरू किया था. इसका नारा था संपूर्ण क्रांति. उद्देश्य तात्कालिक नहीं था, बल्कि सामाजिक, विकास, रोजगार व आर्थिक मुद्दे को लेकर था. आज भी देश में वैसी ही स्थिति है. फर्क इतना है कि आज के मुद्दे ज्वलंत हैं. आज हमारे बीच जेपी नहीं हैं लेकिन अपना भविष्य संवारने के लिये खुद ही जेपी बनना होगा.
यह बातें रविवार को खादी भंडार स्थित लक्ष्मी स्मारक भवन में विद्यार्थी युवजन सभा के तीन दिवसीय राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविर में समाजवादी जन परिषद के महामंत्री सह सामयिक वार्ता के संपादक सुनील ने कही. उन्होंने कहा, हाल ही में दो आंदोलन हुए, जिसका बेहतर परिणाम सामने आया है. एक अन्ना का आंदोलन तो दूसरा दिल्ली गैंगरेप के विरोध में आंदोलन. दोनों आंदोलन देशभर में फैला.
दूसरे सत्र में समाजवादी चिंतक सच्चिदानंद सिन्हा ने समाजवाद की विश्वदृष्टि पर प्रकाश डाला. विद्यार्थी युवजन सभा की राष्ट्रीय महामंत्री शिउली वनजा ने कहा कि हमें ऐसा समाज बनाना होगा जहां एक बच्च फिर कोई सपना देख सके. मौके पर प्रो. प्रमोद, राष्ट्र सेवा दल के शाहिद कमाल, ओडिसा के किसान नेता लिंगराज, प्रो विनोद कुमार सिंह, जेकब जोशी, समाजवादी जन परिषद उपाध्यक्ष लिंगराज, प्रो अरुण कुमार, जगतनारायण, रंजीत कुमार, राकेश पंकज आदि मौजूद थे. संचालन नवेंदू प्रियदर्शी ने किया. कार्यक्रम की शुरुआत भवेस असगर ने क्रांति गीत
से की.
शिक्षा के स्तर में गिरावट का दौर जारी
आजादी के इतने साल बाद भी शिक्षा के स्तर नहीं सुधरा है. श्री सुनील ने कहा कि आजादी में तीन मुख्य बातों पर सभी की सहमति बनी थी. पहला भारत आजाद होगा तो कोई बच्च अशिक्षित नहीं रहेगा. दूसरा हम नई शिक्षा की रचना करेंगे ना कि अंग्रेजों की बनायी शिक्षा पद्धति पर काम करेंगे. तीसरी सहमति इस बात पर बनी थी कि अगर अंग्रेज चले जाएंगे तो अंग्रेजी की विदाई हो जायेगी, लेकिन इनमें से कोई बात पूरी नहीं हुई. कुछ माह पूर्व शिक्षा का अधिकार कानून संसद में पास हुआ लेकिन इसका लाभ सभी को नहीं मिल पा रहा है. इधर, केंद्र व राज्य की सरकार शिक्षा निजी हाथों में सौंप रही है. सरकारी स्कूल का कबाड़ा किया जा रहा है. ऐसे में लोहिया की तीन बातों पर ध्यान देने की जरूरत है. राष्ट्रपति या मेस्तर की संतान सभी को शिक्षा एक समान. खुला दाखिला सस्ती शिक्षा लोकतंत्र की यही इच्छा. तीसरा चले देश में देशी भाषा, गांधी लोहिया की यही अभिलाषा. इन तीनों बातों पर ध्यान देने की जरूरत है.