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लोहे की छड़ की जगह बांस की फट्टी से बनाया घर

सरैया (मुजफ्फरपुर) : भूकंप के बाद से मुजफ्फरपुर के सरैया प्रखंड में गोविंदपुर गांव के श्रीकांत कुशवाहा ‘जादूगर’ का मकान सुर्खियों में है. 22 साल पहले बने श्रीकांत के दो मंजिले मकान में लोहे की छड़ की जगह पर बांस की फट्टी लगी है. मकान पूरी तरह से सुरक्षित है. छड़ से बने कई मकानों […]

सरैया (मुजफ्फरपुर) : भूकंप के बाद से मुजफ्फरपुर के सरैया प्रखंड में गोविंदपुर गांव के श्रीकांत कुशवाहा ‘जादूगर’ का मकान सुर्खियों में है. 22 साल पहले बने श्रीकांत के दो मंजिले मकान में लोहे की छड़ की जगह पर बांस की फट्टी लगी है. मकान पूरी तरह से सुरक्षित है. छड़ से बने कई मकानों में जहां भूकंप के दौरान दरारें आ गयीं, वहीं, श्रीकांत के मकान को किसी तरह का नुकसान नहीं हुआ है.
जादू के पेशे से जुड़े श्रीकांत बताते हैं कि मकान उनके पिता रामदेनी भगत ने 1993 में बनवाया था. वो कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े थे. इस वजह से जगह-जगह की यात्र करते थे. इस दौरान उन्होंने मकान में कम खर्च के लिए लोहे की जगह बांस की फट्टी लगाने का फैसला लिया. इसको लेकर उन्होंने तब कई राज मिट्टियों से सलाह ली. इसके बाद घर बनाने का काम शुरू हुआ. श्रीकांत बताते हैं कि मकान बनाने का काम 1992 में शुरू हुआ था, जो एक साल में पूरा हुआ.
श्रीकांत के मकान में अन्य घरों की तरह सीमेंट, बालू, ईंट व अन्य चीजों का प्रयोग हुआ. नींव पड़ी, लिंटर लगा, बीम ढाली गयी और छत पड़ी, लेकिन सभी जगह छड़ की जगह फट्टी का इस्तेमाल हुआ. सवा कट्ठे में बने इस मकान में दस कमरे हैं. पांच कमरे ग्राउंड फ्लोर पर और पांच कमरे फस्र्ट फ्लोर पर. घर की मजबूती पर किसी तरह का असर अभी तक देखने को नहीं मिला है. दो मंजिले मकान में अभी भी पहले की तरह चमक-दमक है.
श्रीकांत का कहना है कि जब घर बन रहा था, तो बांस की फट्टियां काटी जाती थीं. उन्हें एक रात पानी के भीतर रखा जाता था. इसके बाद उन्हें मकान में छड़ की जगह पर लगाया जाता था. इन्हीं से सीढ़ी भी ढाली गयी है. वह बताते हैं कि मकान बनने के पांच साल बाद पिता का रामदेनी भगत का निधन हो गया, लेकिन उनका बनाया मकान उन्हें अब भी प्रेरणा दे रहा है. उन्होंने मकान की तर्ज पर बांस का शौचालय बनाया है, जिसकी लागत तीन हजार आयी है, जबकि सामान्य तौर पर इसे बनाने का खर्च 13 से 15 हजार रुपये के बीच में आता है.
श्रीकांत कहते हैं कि हमारे घर की मजबूती भी अन्य घरों की जैसी है. हमने 2004 पहली बेटी सुमन की शादी की थी, तब दो से तीन सौ लोग एक साथ छत पर बैठे थे. इसके बाद 2009 में बेटी निर्मला की शादी की थी, तब भी बड़ी संख्या में लोग छत पर इकट्ठा हुये थे, लेकिन किसी तरह की परेशानी नहीं हुई.
श्रीकांत के परिवार में अभी छह सदस्य रहते हैं. इनमें उनकी मां सरस्वती देवी, पत्नी दौलत देवी, बेटा दिलीप कुमार, बहू विभा कुमारी व पोता साहिल शामिल हैं. श्रीकांत जादू दिखाते हैं, लेकिन इनका बेटा दिलीप किसान सलाहकार है.
श्रीकांत की चाहत है कि उनकी घर की तरह अन्य लोग भी बांस की फट्टी से मकान का निर्माण कर सकते हैं. इसमें उन्हें अच्छी खासी बचत होगी और मजबूती तो हमारे घर से पता ही चल रही है. वो कहते हैं, अगर कोई मकान बनाने को तैयार हो, तो वह उसकी मदद करने को तैयार हैं.
बॉक्स-
बनाया बांस का शौचालय, खर्च तीन हजार
श्रीकांत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छता अभियान से खासे प्रभावित हैं. इसका स्लोगन उन्होंने बांस का बनाये शौचालय की दीवारों पर लगा रखा है.
इनका कहना है कि अगर लोग स्वच्छता से रहें, तो तमाम तरह की बीमारियों उन्हें नहीं होंगी.वो लोहे व ईंट की जगह बांस का शौचालय कम खर्चे पर बना सकते हैं, जहां सामान्य लैट्रिन बनाने में 13 से 15 का खर्च आता है, वहीं बांस के शौचालय पर केवल तीन हजार के खर्च आता है. इसके प्रचार-प्रसार में श्रीकांत लगे हैं. इनके कहने पर अभी तक इलाके से आधा दर्जन लोग बांस का शौचालय बना चुके हैं. इनमें बसैठा के विशेश्वर पटेल, राजेश्वर राय, गोविंदपुर के राजेश्वर भक्त आदि शामिल हैं.
कोट-
कम लागत वाले घरों में लोहे के छड़ की जगह पर बांस का प्रयोग किया जा सकता है. केरल में ऐसे मकान बनते हैं, लेकिन अपने इलाके में इसका बहुत कम प्रयोग होता है. इसमें किस तरह का बांस और कैसे लगाना है. इसका विशेष ख्याल रखना होता है.
आरके सिंह, वास्तुविद
लागत के हिसाब से देखें, तो छड़ की जगह पर बांस लगाने से इसमें नब्बे फीसदी तक की कमी आ जायेगी, लेकिन हम लोग ऐसे भवनों का निर्माण नहीं करवाते हैं. इसलिए ये कितने दिन चलेगा. इसको लेकर कोई तकनीकि अनुमान नहीं लगा सकते हैं.
श्रीनिवास सिंह, कार्यपालक अभियंता, भवन निर्माण

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