मुजफ्फरपुर: स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में 11 अगस्त 1908 शहर के लिए गौरव का दिन था. देश के सबसे कम उम्र के शहीद खुदीराम बोस ने इसी शहर में अपनी शहादत दी थी. सत्य स्वीकार कर फांसी को चूमने वाले खुदीराम बोस के जज्बे से शहर में आंदोलन की नयी क्रांति की जमीन मिली थी. सुबह 3.40 बजे इस क्रांतिकारी को सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गयी थी. उनकी अर्थी जेल से निकल कर सोडा गोदाम चौक होते हुए बांध पर पहुंची थी. यहीं उनका अंतिम संस्कार किया गया. तत्कालीन डीएम वुडमैन ने फांसी के वक्त दो लोगों को रहने की इजाजत दी थी. घटना के समय मौजूद शहर के वकील उपेंद्र नाथ सेन ने 1947 में बंगला पत्रिका में इस घटना का आंखों देखा हाल लिखा था. फांसी से पहले खुदीराम के चेहरे पर खुशी के भाव थे.
खुदीराम बोस के वकील ने डीएम वुडमैन को हिंदू रीति से दाह संस्कार करने का आग्रह किया था. डीएम ने उनकी बात मान ली थी. फांसी से पहले कालिदास वसु अपने घर से अर्थी बना कर ले गये थे. डीएम ने 12 लोगों को अर्थी के साथ चलने की अनुमति दी थी. कालिदास ने अर्थी पर चाकू से खुरच कर वंदे मातरम् लिखा था. फांसी के बाद इसी अर्थी पर खुदीराम के शव को रख कर श्मशान घाट ले जाया गया. जहां उनका अंतिम संस्कार किया गया.
19 साल की उम्र में मिली थी फांसी
पश्चिम बंगाल के मिदनापुर में तीन दिसंबर 1889 को जन्मे खुदीराम बोस ने नौवीं कक्षा के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी व स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े. इसके बाद वह रिवोल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बने व वंदे मातरम् पंफलेट वितरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में चलाये गये आंदोलन में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. 28 फरवरी 1906 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. लेकिन वह पुलिस कैद से भाग निकले. दो महीने बाद अप्रैल में वह एक बार फिर पकड़े गये. 16 मई 1906 को उन्हें रिहा कर दिया गया. छह दिसंबर 1907 को खुदीराम ने नारायगढ़ रेलवे स्टेशन पर बंगाल के गवर्नर की विशेष ट्रेन पर हमला किया, परंतु गवर्नर बच गये. 1908 में दो अंग्रेज अधिकारियों वाट्सन व पैम्फायल्ट फुलर पर बम से हमला किया, लेकिन वे भी बच निकले. खुदीराम मुजफ्फरपुर के सेशन जज से बदला लेने के लिये 30 अप्रैल 1908 को उनकी गाड़ी पर बम फेंका.
उस समय गाड़ी में किंग्सफोर्ड की जगह दो यूरोपीय महिला कैनेडी व उसकी बेटी सवार थी. बम फेंकने के बाद अंग्रेजी पुलिस उनके पीछे लगी व वैनी रेलवे स्टेशन पर उन्हें घेर लिया. अपने को पुलिस से घिरा देख प्रफुल्ल चंद चाकी ने खुद को गोली मार कर अपनी कुर्बानी दे दी. जबकि खुदीराम पकड़े गये. बोस को महज 19 साल की उम्र में मुजफ्फरपुर जेल में फांसी दे दी गयी. इतिहासकारों की माने तो उन्हें देश के लिये फांसी पर चढ़ने वाला सबसे कम उम्र का क्रांतिकारी देशभक्त माना गया है.