ऐसा विभागों की सुस्ती के कारण हुआ है. दरअसल यहां के किसी भी विभाग से इसके लिए आवेदन ही नहीं दिया था. यह उस विवि का हाल है जिसकी पहल पर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने वर्षो से बंद ‘बिहार पैकेज’ को बीते साल फिर शुरू करने का फैसला लिया है. अलबत्ता ललित नारायण मिथिला (एलएनएमयू) विवि पहली बार सैप स्कीम का लाभ पाने के कगार पर है. वहां के बॉटनी विभाग को को यूजीसी के इंटरफेस मीटिंग के लिए चयनित किया गया है. यहां के कुल बारह विभागों ने सैप के लिए आवेदन दिया था.
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विभागों की सुस्ती से सैप से वंचित हुआ विवि
मुजफ्फरपुर: यूजीसी ने 2014 में स्पेशल असिसटेंस प्रोग्राम (सैप) के लिए संभावित विभिन्न विश्वविद्यालयों के पीजी विभागों की सूची जारी कर दी है. इसमें कुल 137 विभाग शामिल है, लेकिन बीआरए बिविवि का एक भी विभाग इसमें शामिल नहीं है. यह लगातार दूसरा साल है जब विवि के किसी भी विभाग को सैप स्कीम का […]
मुजफ्फरपुर: यूजीसी ने 2014 में स्पेशल असिसटेंस प्रोग्राम (सैप) के लिए संभावित विभिन्न विश्वविद्यालयों के पीजी विभागों की सूची जारी कर दी है. इसमें कुल 137 विभाग शामिल है, लेकिन बीआरए बिविवि का एक भी विभाग इसमें शामिल नहीं है. यह लगातार दूसरा साल है जब विवि के किसी भी विभाग को सैप स्कीम का लाभ नहीं मिला.
बॉटनी विभाग के पास था मौका
वर्ष 2009 में पहली बार बॉटनी विभाग को माइक्रो बायोलॉजी व प्लांट बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में शोध के लिए सैप स्कीम का लाभ मिला था. इसका पहला फेज 2014 में खत्म हो गया. पहले फेज में हुए कार्यो की समीक्षा के आधार पर विभाग को दूसरे फेज का लाभ मिलना था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. पूरे देश में सिर्फ एक विभाग को यूजीसी ने दूसरे फेज के लिए चयन नहीं किया. विवि की ओर से इस पर आपत्ति जतायी गयी. खुद कुलपति डॉ पंडित पलांडे ने यूजीसी के अधिकारियों को पत्र लिख कर फैसले पर पुन: विचार की अपील की थी. बाद में स्थानीय सांसद अजय निषाद ने भी इसके लिए पत्र लिखा. हालांकि अधिकारियों ने उनकी मांग ठुकरा दी. उल्टे विभाग को फिर से फेज वन के लिए आवेदन देने का निर्देश दिया. आवेदन की आखिरी तारीख 15 नवंबर (2014) निर्धारित थी. लेकिन यूजीसी का पत्र देर से मिलने के कारण विभाग ऐसा नहीं कर सकी.
राजनीति विज्ञान विभाग में जारी है स्कीम
बॉटनी विभाग के बाद वर्ष 2011 में विवि राजनीति विज्ञान विभाग को भी सैप स्कीम के डिपार्टमेंटल रिसर्च सपोर्ट के पहले फेज के लिए चयनित किया गया. इसके तहत यूजीसी से उसे राशि भी मुहैया करायी जा रही है. पहला फेज 2016 में पूरा हो रहा है. इस दौरान यूजीसी से मिले पैसे की उपयोगिता व शोध कार्य की समीक्षा के आधार पर विभाग को दूसरे फेज के तहत राशि मुहैया कराने पर फैसला होना है.
क्या है सैप स्कीम
देश के तमाम विश्वविद्यालयों के चुनिंदा विभागों में शोध व शिक्षा की क्षमता में बढ़ाने के लिए यूजीसी ने स्पेशल असिसटेंस प्रोग्राम (सैप) की शुरुआत की. इसके तहत विभागों को यूजीसी अलग से फंड भी मुहैया कराती है. सैप के तीन चरण, डीआरएस (डिपार्टमेंटल रिसर्च सपोर्ट), डीएसए (डिपार्टमेंट ऑफ स्पेशल असिसटेंस) व सीएएस (सेंटर ऑफ एडवांस्ड स्टडी) होते हैं. प्रत्येक चरण में तीन अलग-अलग फेज होते हैं. प्रत्येक फेज पांच साल के लिए होता है. इस स्कीम के तहत विभाग के विशेषज्ञ संबंधित विषय के चार शोधार्थियों का चयन कर नये प्रोजेक्ट पर काम करते हैं. इस दौरान उन्हें प्रत्येक साल बारह हजार रुपये प्रोत्साहन राशि के रू प में दी जाती है. शिक्षकों को भी अलग से राशि मिलती है. टीम को शोध के लिए जरू री सुविधाओं के लिए भी यूजीसी अलग से फंड देती है.
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