मुजफ्फरपुर: बेटी नहीं तो मां, पत्नी, बहन कोई भी नहीं. यहां तक की सृष्टि ही नहीं रहेगी. डॉ देवव्रत अकेला की पुस्तक मां! मुङो मात मारो काव्य संग्रह है जो भ्रूण हत्या के विरुद्ध एक क्रांति है. उक्त बातें डीजी (स्पोर्ट्स) गुप्तेश्वर पांडेय ने चैंबर ऑफ कॉमर्स सभागार में पुस्तक मां! मुङो मात मारो के लोकार्पण के दौरान कही. उन्होंने कहा कि मनुष्य के अंदर तीन गुण होते हैं, सात्विक, राजतीक व तामसिक गुण.
सात्विक गुण छोड़कर दोनों एक साथ होते हैं, मनुष्य गलत की ओर बढ़ता है इसलिए उसे इसपर काबू रखना चाहिए. मौके पर अन्य वक्ताओं ने कहा कि डॉ देवव्रत ने एक पुरुष होते हुए महिला की संवेदना को जिस तरह बताया है इसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है. किताब में तीन अंक भ्रूण हत्या, कुर्सी व पैसा पर एक से बढ़कर एक रचनाएं हैं, जो लोगों को बहुत कुछ सिखाएंगी.
इस पुस्तक में युगवाणी भी है और युग-युगवाणी भी है. पुस्तक में बताया गया है कि भ्रूण हत्या उपभोक्तावादी संस्कृति की उपज है. इस पुस्तक में इसके निराकरण के लिए समाज को जागृत करने की बातों का भी उल्लेख है. वक्ताओं में डॉ कुमकुम राय, डॉ रिपुसुदन श्रीवास्तव, डॉ ताराशंकर सिंह, डॉ ममता रानी, डॉ सफीक आलम, डॉ संजय पंकज, डॉ विजय शंकर मिश्र, श्रवण कुमार, नर्मदेश्वर चौधरी, देवी लाल, विनय कुमार मिश्र, अशोक भारती, विष्णुकांत झा, प्रवीण कुमार मिश्र आदि शामिल थे.