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पीजी का रेगुलेशन पास, विवि में रिजल्ट पर संकट

मुजफ्फरपुर: बीआरए बिहार विवि में पीजी फोर्थ सेमेस्टर की परीक्षा दे चुके करीब सात हजार छात्र-छात्राओं का रिजल्ट एक बार फिर फंस सकता है. राजभवन ने पीजी में सेमेस्टर सिस्टम के रेगुलेशन को मंजूरी तो दे दी है, लेकिन यह सत्र 2014-15 से है. पुराने सत्र के छात्र-छात्राओं पर अभी तक कोई फैसला नहीं हुआ […]

मुजफ्फरपुर: बीआरए बिहार विवि में पीजी फोर्थ सेमेस्टर की परीक्षा दे चुके करीब सात हजार छात्र-छात्राओं का रिजल्ट एक बार फिर फंस सकता है. राजभवन ने पीजी में सेमेस्टर सिस्टम के रेगुलेशन को मंजूरी तो दे दी है, लेकिन यह सत्र 2014-15 से है. पुराने सत्र के छात्र-छात्राओं पर अभी तक कोई फैसला नहीं हुआ है.

विवि प्रशासन राजभवन की मंजूरी की प्रत्याशा में रिजल्ट जारी करने का फैसला ले सकती थी, लेकिन इसमें भी अड़चन है. यह आंतरिक मूल्यांकन के दस अंक को लेकर है.

विवि प्रशासन ने सत्र 2011-13 में जो पीजी का रेगुलेशन तैयार किया था, उसमें प्रत्येक सेमेस्टर में आंतरिक मूल्यांकन के आधार पर 20 अंक देने का प्रावधान था. इसमें अधिकतम अंक छात्रों की कक्षा में उपस्थिति व उसके आचरण पर दिया जाता था, जो विभागाध्यक्ष देते थे. लेकिन राजभवन ने जिस रेगुलेशन को मंजूरी दी है, उसमें आंतरिक मूल्यांकन की जगह सतत आंतरिक मूल्यांकन (सीआइए) का जिक्र है, जो तीस अंकों का है. इसमें पंद्रह अंक प्रत्येक सेमेस्टर में आयोजित दो मिड सेमेस्टर परीक्षा (लिखित परीक्षा) के आधार पर, पांच अंक सेमिनार या क्विज के आधार पर, पांच अंक असाइनमेंट का व पांच अंक कक्षा में उपस्थिति व छात्र के व्यवहार पर दिया जाना है. ये अंक विभाग में संबंधित पेपर के शिक्षक देंगे.

सेमेस्टर के अंत में होने वाली परीक्षा में सफल होने के लिए अभ्यर्थी को न्यूनतम 50 अंक लाना अनिवार्य होगा. यदि कोई छात्र किसी पेपर के सीआइए में सफल नहीं हो पाता है तो उसे अगले साल पुन: उस पेपर की सीआइए परीक्षा देनी होगी. फिलहाल पीजी फोर्थ सेमेस्टर की परीक्षा दे चुके सात हजार छात्र-छात्राओं को तीन सेमेस्टर मिला कर अधिकतम साठ अंक दिया गया है, जबकि नये रेगुलेशन के तहत यह नब्बे अंक होना चाहिए था. ऐसे में इस तीस अंक के अंतर को दूर करना परीक्षा विभाग के लिए मुश्किल चुनौती साबित हो सकता है. बुधवार को परीक्षा बोर्ड में भी यह मामला उठा, लेकिन कोई फैसला नहीं हो सका. वैसे विवि अधिकारियों की मानें तो इसके लिए ट्रांजिट रेगुलेशन एक विकल्प हो सकता है.

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