मुजफ्फरपुर: नन बैंकिंग कंपनी इरिल विहार म्यूचुअल बेनिफिट लिमिटेड (इआरआइएल) जिले से करीब 50 करोड़ से अधिक रकम लेकर फरार हो गयी है. कंपनी में निवेश करने वाले लोगों ने जब एजेंटों को पकड़ा तो इसका खुलासा हुआ. पिछले छह महीने से कंपनी का कार्यालय बंद पड़ा है.
लोगों के दबाव के बाद सैकड़ों एजेंटों ने बुधवार को बैठक कर कंपनी के खिलाफ केस दर्ज करने का निर्णय लिया है. बताया जाता है कि 2010 के अंत में यह कंपनी मुजफ्फरपुर में आयी थी. तब अनवारुल हक नामक व्यक्ति ने यहां कंपनी की शुरुआत की थी. अघोरिया बाजार स्थित गहीलो गैलेक्सी में कंपनी ने अपना कार्यालय खोला. लोगों को जोड़ना शुरू किया. पहले अधिक ब्याज पर भुगतान भी किया. एजेंटों को कमीशन के रूप में मासिक भुगतान भी किया. जब 50 करोड़ से अधिक वसूल लिया, तब कंपनी यहां से फरार हो गयी. छह माह पहले ही कार्यालय में ताला लग गया.
कंपनी में रुपये जमा करानेवाले लोगों ने जब कंपनी के एजेंटों पर पैसे देने का दबाव बनाना शुरू किया, तब एजेंट जगे. इसको लेकर बुधवार को कंपनी के एजेंट सुबोध शर्मा, मनोज कुमार महतो, विजय कुमार व प्राणनाथ सहित सैकड़ों एजेंटों ने रामदयालु कॉलेज मैदान में बैठक की. इसमें निर्णय लिया कि गुरुवार को काजी मोहम्मदपुर थाने में कंपनी के खिलाफ केस करेंगे.
जेल में है कंपनी का डायरेक्टर
कंपनी का प्रधान कार्यालय धनबाद में है. कंपनी का डायरेक्टर विप्लव डे चार माह से जेल में बंद है. एजेंटों ने बताया कि एक सप्ताह पूर्व नगालैंड पुलिस डायरेक्टर को रिमांड पर ले गयी है. इस शहर में अनवारुल हक नामक व्यक्ति ने कंपनी को लाया. मुजफ्फरपुर में कार्यालय खुलने के बाद समस्तीपुर, छपरा, सहरसा, खगड़िया, सीतामढ़ी, पटना, गोपालगंज, रक्सौल में शाखा खुल गयी. ये सभी मुजफ्फरपुर ऑफिस के अधीन थे.
एफडी व रेकरिंग के नाम पर लगाया चूना
एजेंटों ने बताया कि कंपनी ने एफडी व रेकरिंग का काम शुरू किया. इसमें लोगों को चार गुना व एजेंट को दोगुना राशि दी जाती थी. 25 रुपये व एक हजार की एफडी में कंपनी के मेंबर (एजेंट) बनाये जाते थे. कंपनी का काम जनवरी 2014 में बंद हो गया. इसके बाद ऑफिस अघोरिया बाजार एसबीआइ बैंक के ऊपर भवन में शिफ्ट हो गया. मई 2013 तक लोगों का पेमेंट हुआ. उसके बाद रोक लग गयी. जब एजेंटों ने दबाव दिया तो एक नवंबर को एजेंट सत्य नारायण महतो को दस लाख, सात नवंबर को राजकुमार महतो को 30 लाख व पांच नवंबर को दिनेश पासवान को 40 लाख का चेक दिया. तीनों चेक बाउंस कर गये.
यह था कमीशन
नौ माह का 10, 12 माह का 12, 15 माह का 16.5, 24 माह का 20 प्रतिशत कमीशन था. वहीं एफडी में दस हजार की एफडी सात साल बाद 43,600 हो जाती थी. लेकिन भुगतान कुछ महीनों में थोड़ा-थोड़ा करके किया जाता था. कंपनी के केवल मुजफ्फरपुर में ही दो हजार एजेंट थे. कुछ तो ऐसे एजेंट हैं जिन्होंने लोगों के चार से पांच करोड़ रुपये कंपनी में जमा कराये हैं. गया में एक एजेंट ने लोगों के दबाव के बाद आत्महत्या कर ली. कुछ एजेंटों ने बताया कि हमारा घर परिवार टूटने वाला है.