फ्लैश बैक : ….जब मुजफ्फरपुर लोकसभा क्षेत्र से श्याम नंदन जीते तो थे पर रिजल्ट के पहले ही दुनिया छोड़ गये

रवींद्र कुमार सिंह मुजफ्फरपुर : वर्ष 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में मुजफ्फरपुर सेंट्रल लोकसभा क्षेत्र से डॉ श्याम नंदन सहाय चुनाव जीते थे. वह बिहार विवि के पहले कुलपति भी थे. उन्होंने पांच साल तक लोकसभा में मुजफ्फरपुर का प्रतिनिधित्व भी किया. डॉ सहाय ने 1957 में भी मुजफ्फरपुर लोकसभा से कांग्रेस पार्टी […]

By Prabhat Khabar Print Desk | March 17, 2019 7:15 AM

रवींद्र कुमार सिंह

मुजफ्फरपुर : वर्ष 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में मुजफ्फरपुर सेंट्रल लोकसभा क्षेत्र से डॉ श्याम नंदन सहाय चुनाव जीते थे. वह बिहार विवि के पहले कुलपति भी थे. उन्होंने पांच साल तक लोकसभा में मुजफ्फरपुर का प्रतिनिधित्व भी किया. डॉ सहाय ने 1957 में भी मुजफ्फरपुर लोकसभा से कांग्रेस पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा. वह 80 हजार मतों के अंतर से चुनाव जीते, लेकिन जीत का प्रमाणपत्र लेने से पहले ही वह दुनिया छोड़कर चले गये.

श्याम नंदन सहाय ने अपने जीवन का अंतिम लोकसभा चुनाव 1957 में लड़ा था. तब लोकसभा व विधानसभा के चुनाव एक साथ हुए थे. कांग्रेस ने विधानसभा के लिए महेश प्रसाद सिंह को और लोकसभा के लिए श्याम नंदन सहाय को प्रत्याशी बनाया था. महेश प्रसाद सिंह के खिलाफ महामाया प्रसाद सिन्हा खड़े थे. श्याम नंदन सहाय ने महेश बाबू की मदद के लिए गांव-गांव का दौरा किया था.

57 के इस चुनाव पर सारे देश की आंखें लगी हुई थी. दूर-दूर से पत्रकार इस चुनाव को देखने और समझने के लिए यहां आये थे. वोटों की गिनती शुरू होने पर प्रत्येक बूथ का परिणाम रिटर्निंग अधिकारी करते थे. खबर आयी कि महेश प्रसाद सिन्हा 28 हजार वोटों से पीछे चल रहे हैं. चितरंजन सिन्हा कनक आगे लिखते हैं- प्रथम दिन के मतों की गिनती में (सहाय जी) 40 हजार मतों से आगे चल रहे थे और उसी दिन यानी 14 मार्च को लगभग एक बजे दिन में उनका निधन हो गया.

टमटम, बैलगाड़ी और जीप से प्रचार

पूर्व सांसद श्याम नंदन सहाय के पौत्र रविरंजन सहाय ने बताया कि डॉ श्याम नंदन सहाय 1947 से 1950 तक संविधान सभा के सदस्य भी रहे. उस समय चुनाव में सभी उम्मीदवारों के नाम से अलग-अलग बक्सा होता था. बैलेट पेपर पर ठप्पा नहीं मारना होता था. उम्मीदवार के नाम वाले बक्से में बैलेट पेपर डाल दिया जाता था. चुनाव प्रचार टमटम, बैलगाड़ी, रिक्शा व जीप से किया जाता था. जीप, टमटम और बैल गाड़ी पर भोंपू (माइक) लगाकर प्रचार किया जाता था.

एक जनवरी,1900 को उनका जन्म हुआ था और 14 मार्च,1957 को निधन हो गया. सीनियर सिटीजन के चितरंजन सिन्हा कनक बताते हैं कि वे लोग चुनाव में वर्कर थे. ग्रामीण क्षेत्रों में बैलगाड़ी व शहर में रिक्शा व जीप से प्रचार किया जाता था. उस समय भोंपू पर बोल कर प्रचार करते थे. रिकाॅर्डिंग सिस्टम नहीं था. शाम के समय सभी प्रत्याशी कल्याणी चौक पर कुछ देर के लिए पहुंचते थे. वहां बलाई बाबू के होटल में बैठते और चाय नाश्ता करते थे.

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