मुजफ्फरपुर: हर वर्ष एइएस से मुजफ्फरपुर और गया जिलों में बच्चों की मौत होती रही है, लेकिन इसकी रोकथाम के लिए साल भर तक न तो विभागीय स्तर पर और न ही सिविल सर्जन स्तर पर गंभीर प्रयास किये गये. जो प्रयास किये गये, वे कागजों पर ही सिमट कर रह गये.
पीड़ित गांवों में अगर सघन छिड़काव किया गया रहता, तो मच्छरों के पनपने की नौबत नहीं आती. अब तो यह भी जांच की जानी चाहिए कि जिन क्षेत्रों में मेलाथियॉन का छिड़काव किया गया है, वह कितना प्रभावकारी रहा है? मुजफ्फरपुर व गया जिलों के स्वास्थ्य सहित अन्य विभागों के कार्यो की समीक्षा होनी चाहिए कि इस दिशा में किसने क्या भूमिका निभायी?
घोषणा के मुताबिक स्वास्थ्य विभाग के साथ ही पीएचइडी, समाज कल्याण व शिक्षा विभागों के निचले स्तर के पदाधिकारी जागरूकता अभियान में शामिल हुए या नहीं? जेइ का टीकाकरण अभियान जरूर चलाया गया, लेकिन इस बीमारी के सही वायरस की पहचान अब तक नहीं हो पायी है.
अब जब इस बीमारी ने फिर दस्तक दे दी है, तो सभी विभागों के लोग हाथ-पैर मार रहे हैं. पूर्व में न तो गांव की नालियों की उड़ाही की गयी और न ही स्वच्छता पर ध्यान दिया गया. हालांकि, स्वास्थ्य मंत्री अश्विनी चौबे का दावा है कि पोलियो के समान एइएस के खिलाफ अभियान चल रहा है. टास्क फोर्स का गठन किया गया है.
सभी जिलों में डॉक्टरों की टीम तैनात कर दी गयी है. आवश्यक दवाएं भेज दी गयी हैं. 102 एंबुलेंस की सेवा मुफ्त उपलब्ध करायी गयी है. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर मेडिकल कॉलेज तक पहुंचाने की व्यवस्था की गयी है. हालांकि, स्थिति संतोषजनक नहीं है, पर पिछले साल की तुलना में सुधार हुआ है.
एइएस पर कोई पेपर नहीं
मार्च में बच्चों के डॉक्टरों केसबसे बड़े वैज्ञानिक संघ इंडियन एकेडमी ऑफ पेडियाट्री (आएपी) का हाइप्रोफाइल राज्य सम्मेलन हुआ. लेकिन, आश्चर्य है कि इसमें राष्ट्रीय व राज्य स्तर के विशेषज्ञों ने दर्जनों शोधपत्र प्रस्तुत किये, पर किसी ने बिहार में एइएस पर कोई शोधपत्र प्रस्तुत नहीं किया.
नहीं हुआ चापाकल का प्लेटफॉर्म ऊंचा
बीमारी से बचाव के लिए बच्चों को शुद्ध पेयजल मुहैया कराने के लिए सरकार ने पीएचइडी को निर्देश दिया था. इसके लिए 67 लाख रुपये भी दिये गये थे, ताकि गांवों में लगे चापाकल का प्लेटफॉर्म ऊंचा कर शुद्ध पानी की व्यवस्था की जा सके. लेकिन, पीएचइडी ने अब तक कोई कार्य नहीं किया. विभाग अब टेंडर निकालने में जुटा है.