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25 दिनों में नौ सौ करोड़ के व्यापार पर फिर पानी

मुजफ्फरपुर: लोकतंत्र के महापर्व चुनाव की मार सूतापट्टी कपड़ा मंडी पर पड़ी है. पिछले पच्चीस दिनों में मंडी में काम करनेवाले व्यापारियों को लगभग नौ सौ करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा है, क्योंकि इलेक्शन ड्यूटी में लगने के कारण माल आना पहले से काफी कम हो गया है. पहले जहां बारह ट्रक माल आता था, […]

मुजफ्फरपुर: लोकतंत्र के महापर्व चुनाव की मार सूतापट्टी कपड़ा मंडी पर पड़ी है. पिछले पच्चीस दिनों में मंडी में काम करनेवाले व्यापारियों को लगभग नौ सौ करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा है, क्योंकि इलेक्शन ड्यूटी में लगने के कारण माल आना पहले से काफी कम हो गया है. पहले जहां बारह ट्रक माल आता था, वहीं, अब तीन से चार ट्रक माल ही पहुंच रहा है. इसके अलावा जो माल आ रहा है, उसके लिए किराया दोगुना चुकाना पड़ रहा है. इससे भी कपड़ा व्यवसायियों को नुकसान हो रहा है.

अभी लगन का मौसम है. इन दिनों में कपड़ा मंडी में रौनक रहती थी, लेकिन इस बार चुनाव के कारण रौनक गायब है. फुटकर दुकानों में ही कुछ सेल हो रही है. पहले जहां मंडी में रोज अनुमान के मुताबिक पचास करोड़ का कारोबार होता था. अब वह दस करोड़ तक ही सिमट गया है. चुनाव के कारण व्यापारी खरीदारी के लिए नहीं पहुंच रहे हैं. ऑर्डर भी नहीं आ रहा है. यदि बाहर के व्यापारी ऑर्डर करते भी हैं, तो व्यापारियों को कपड़ा भेजने की सुविधा नहीं मिल रही है. इन वजहों से खुदरा व्यापारियों ने भी खरीदारी कम कर दी है. व्यवसायियों का कहना है, 16 को काउंटिग है, लेकिन 20 मई तक बाजार पर असर रहेगा.

सूतापट्टी में गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान व मुंबई ज्यादातर माल आता है. कपड़ा मिल प्रतिनिधि सज्जन शर्मा कहते हैं कि पहले जो ट्रक इंदौर से 80 हजार में मंडी में कपड़ा लाती थी. उसे डेढ़ लाख चुकाना पड़ रहा है. ट्रांसपोर्ट कंपनियां बाहर से ट्रक लेते हैं, इसलिए किराया भी ज्यादा वसूल रही हैं. चुनाव से सूतापट्टी के करीब 700 दुकानें प्रभावित हैं. स्टॉकिस्ट के यहां कपड़ों की खपत नहीं है. आचार संहिता के कारण नकद खरीदारी भी बहुत कम हो रही है. लोग जांच के चलते ज्यादा नगदी लेकर नहीं आते हैं. व्यवसायियों का कहना है कि चुनाव के बाद जब गाड़ियां छूटेगी, तभी कपड़ों का व्यापार रफ्तार पकड़ेगा, लेकिन तब तक लगन का आधा सीजन समाप्त हो चुकेगा.

कपड़ा मंडी से अधिकतर खुदरा व्यवसाय उधार होता है. जिले के सैकड़ों दुकानदार उधार कपड़ा लेते हैं. रुपये देने के लिए हर महीने में तारीख तय होती है. मंडी के व्यवसायी अपने स्टाफ को भेज कर उन दुकानों से राशि वसूलते हैं, लेकिन आचार संहिता के कारण व्यवसायी अपने स्टाफ को तगादा के लिए नहीं भेज रहे हैं. उन्हें डर है कि कहीं उनका स्टाफ रकम के साथ पकड़ा गया तो फिर सारा ब्योरा देना होगा. रुपये के लेन देन नहीं होने से व्यवसायी संकट की स्थिति में हैं.

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