मुजफ्फरपुर : स्थान : रामबाग डायट… समय : दोपहर करीब 1.15 बजे… परिसर में लगे पेड़ के पास धीरे-धीरे कुछ महिलाएं जुटने लगती हैं. कुछ बाहर खड़े टैंकर के पास हाथ-पैर धोने के लिए लाइन में लगी हैं. सबको जल्दबाजी है. नियत समय पर करीब दो दर्जन महिलाएं व युवतियां कतार में खड़ी होने लगती हैं. साड़ी का पल्लू या दुपट्टा सिर पर.
एक बुजुर्ग महिला के बिखरे बाल सामने से लटकने लगते हैं, तो एक युवती उसे सहेजती है. फिर, आंख बंद किये सब दुआ करने लगती हैं. अमन, चैन व खुशहाली तो मांगती ही हैं, सबके मन में एक दुआ जरूर थी कि दुबारा ऐसी मुसीबत मत देना अल्लाह. शनिवार को बकरीद है, जबकि ये परिवार बाढ़ के कारण अपना घर-बार और काम-धंधा छोड़कर बेसहारों की जिंदगी बसर कर रहे हैं. अभी तो सबके सामने निवाले पर भी आफत है, कुर्बानी कहां से लाएंगे.
रामबाग चौरी मोहल्ले में आयी बाढ़ के बाद बेघर हुए सैकड़ों परिवारों की दशा 10 दिनों में काफी बिगड़ गयी है. ऐसे में बकरीद को लेकर उत्साह गायब है. बकरीद से पहले जुम्मे की नमाज भी जैसे-तैसे ही अदा की. पुरुष तो मस्जिद में चले गये, लेकिन महिलाओं ने राहत शिविर में ही नमाज अदा की. लहठी का धंधा करनेवाली रानी बेगम का कहना था कि घर के सामान के साथ रोजगार भी चौपट हो गया. लहठी बनाकर रखी थी, बाढ़ में बेकार हो गया. बकरीद के लिए दो बकरे खरीदे थे, जो बाढ़ में बह गये. फूल बेगम व अंजलि खातून कहने लगीं, अभी तो खाने के लिए घर में दाना भी नहीं है. दूसरे के रहम पर जिंदगी कट रही है, तो पर्व की खुशी कैसे मना सकेंगे. राबिया खातून, हेना खातून, फिजा खातून, नसीमा खातून, रकीना खातून, अफसाना, मुसरत आदि भी काफी परेशान थीं. बताया कि शिविर में रहकर दो टाइम का खाना तो मिल जाता है, लेकिन आगे कैसे गुजारा होगा, इसकी चिंता है. बाढ़ का पानी रामबाग चौरी सहित अन्य मोहल्लों में कम हो गया है, लेकिन दिनचर्या अभी भी बेपटरी है. कुछ लोग घरों में वापस लौट गये हैं, लेकिन उनके यहां भी कोई तैयारी नहीं है, क्योंकि गृहस्थी ही बिखर चुकी है. कैंप से निकलने के बाद दो वक्त का खाना जुटाना भी मुश्किल है. जैसे-तैसे आटा, चावल, दाल व सब्जी का इंतजाम हो रहा है.