इबादत. सुबह से शाम तक इबादत में बीत रहा समय
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अजमत, रहमत व बरकत से लबरेज माह है रमजान
इबादत. सुबह से शाम तक इबादत में बीत रहा समय इफ्तार के बाद शाम में चौक-चौराहे रोशन हो जाते हैं. देर तक खरीदारी भी हो रही है. मुजफ्फरपुर : रमजान का पूरा महीना मोमिनों के लिए खुदा की तरफ से अजमत, रहमत व बरकतों से लबरेज है, लेकिन अल्लाह ने इस माह को तीन अशरों […]
इफ्तार के बाद शाम में चौक-चौराहे रोशन हो जाते हैं. देर तक खरीदारी भी हो रही है.
मुजफ्फरपुर : रमजान का पूरा महीना मोमिनों के लिए खुदा की तरफ से अजमत, रहमत व बरकतों से लबरेज है, लेकिन अल्लाह ने इस माह को तीन अशरों में बांटा है. पहला अशरा खुदा की रहमत वाला समाप्त हो चुका है. अब दूसरे अशरे में गुनाहों की माफी मांगी जा रही है. अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम ने फरमाया कि अगर लोगों को मालूम हो जाए कि रमजान क्या चीज है तो मेरी उम्मत साल के 12 महीने रमजान होने की तमन्ना करेगी. रमजान का महीना रहमत व बरकत वाला है.
हर मर्द, बच्चों, औरत और वृद्ध रोजे का साथ नमाज-तरावीह में मशगूल रहते हैं. इन दिनों ऐसे ही पाक नसीहतों की सीख दी जा रही है. इफ्तार के बाद गुलजार हो रहे चौक-चौराहे पर अल्लाह के बताये गये नियमों को बताया जा रहा है. इफ्तार के बाद नमाज व तरावीह पढ़ने के बाद लोग खरीदारी भी कर रहे हैं. इससे बाजार में रौनक रहती है. देर रात तक लोग कुरान शरीफ की तिलावत में जुटे हैं. छोटी-छोटी उम्र के बच्चे भी रोजे रख मिसाल पेश कर रहे हैं. इन बच्चों का उत्साह देखते ही बनता है.
दूसरे अशरे में मांगी जा रही गुनाहों की माफी
रमजान में बढ़ा दी जाती है मोमिनों की रोजी
जिस साहबे इमान शख्स ने एक नेकी या एक फर्ज अदा किया उसका अज्र उस व्यक्ति की तरह होगा, जिस ने दूसरे महीने में सत्तर फर्ज अदा किया. यह महीना सब्र का है और सब्र का बदला जन्नत है. इसके दिनों में मोमिन की रोजी बढा दी जाती है. जिसने किसी रोजेदार को इफतार कराया तो न केवल यह कि कराने वाले के गुनाह बख्श दिये गए, बल्कि रोजेदार के रोजा का सवाब कम किए बगैर इफ्तार कराने वाले को भी रोजेदार के बराबर सवाब मिलेगा. रमजान की रातों में जो साहबे ईमान मर्द या औरत नमाजें पढे अललाह तआला हर सज्दे के एवज 1700 नेकीयाँ उसके लिए लिखता है. साथ ही जन्नत में लाल याकुत का ऐसा मकान बनवाता है, जिसके हजार दरवाजे हैं. रमजान मे नमाज पढने का यह सवाब ऐसा है कि हर मुसलमान में नमाज पढने की ख्वाहिश पैदा करती है और मसजिदें भर जाती हैं.
मौलाना जिया अहमद कादरी, मर्कजी खानकाह आबादानिया व एदारा–ए–तेगिया, माड़ीपुर
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