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निकाल सकेंगे पांच लाख लीटर ग्राउंड वाटर

मुजफ्फरपुर: सूबे में ग्राउंड वाटर के उपयोग के लिए ‘नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (एनओसी)’ लेने की प्रक्रिया बेहद जटिल है. इससे चोरी-छुपे इसके उपयाेग की लगातार शिकायतें मिल रही हैं. इसे रोकने के लिए केंद्र सरकार ने प्रमाण पत्र हासिल करने की प्रक्रिया को सरल बनाने का फैसला लिया है. बिहार व झारखंड जैसे राज्यों में, […]

मुजफ्फरपुर: सूबे में ग्राउंड वाटर के उपयोग के लिए ‘नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (एनओसी)’ लेने की प्रक्रिया बेहद जटिल है. इससे चोरी-छुपे इसके उपयाेग की लगातार शिकायतें मिल रही हैं. इसे रोकने के लिए केंद्र सरकार ने प्रमाण पत्र हासिल करने की प्रक्रिया को सरल बनाने का फैसला लिया है. बिहार व झारखंड जैसे राज्यों में, जहां स्टेट ग्राउंड वाटर ऑथोरिटिज कार्यरत नहीं है, वहां स्थानीय स्तर पर डीएम को एक दिन में 500 क्यूबिक मीटर यानी करीब पांच लाख लीटर ग्राउंड वाटर के उपयोग के लिए एनओसी जारी करने का अधिकार देने की योजना है. हालांकि, इसे लागू करने से पहले स्थानीय स्तर पर अधिकारियों से राय-शुमारी की जायेगी.
इसके लिए पहल भी शुरू हो गयी है. इस संबंध में जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय के क्षेत्रीय निदेशक एके अग्रवाल ने डीएम धर्मेंद्र सिंह को पत्र भेज कर उनकी राय पूछी है. मंत्रालय का मानना है कि स्थानीय स्तर पर एनओसी जारी करने के आदेश से ग्राउंड वाटर पर आधारित लघु एवं छोटे उद्योगों को फायदा होगा. फिलहाल ग्राउंड वाटर के उपयोग के लिए संबंधित व्यक्ति या उद्यमी को सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) के क्षेत्रीय कार्यालय में आवेदन देना होता है. वहां जांच के बाद आवेदन को सेंट्रल ग्राउंड वाटर ऑथोरिटी को भेजा जाता है, जो नियमों के आधार पर ग्राउंड वाटर के उपयोग की अनुमति देती है.
अवैध वाटर बॉटलिंग प्लांट पर लगेगी रोक
बीते कुछ सालों से गरमी के मौसम में जिले के कुछ इलाकों में भारी जलसंकट की समस्या उत्पन्न हो जाती है. चापाकल व मोटर के जवाब देने के कारण लोग डिब्बा बंद पानी खरीद कर पीने को मजबूर हैं. जैसे-जैसे संकट बढ़ता जा रहा है, जिले में वाटर बॉटलिंग प्लांटों की संख्या भी बढ़ती जा रही है. अनुमान के अनुसार, शहर में ही तीन दर्जन से अधिक बॉटलिंग प्लांट सक्रिय हैं. ग्रामीण इलाकों में भी दिन-प्रतिदिन इनकी संख्या बढ़ती जा रही है. लेकिन, सेंट्रल ग्राउंड वाटर ऑथोरिटी की रिपोर्ट के अनुसार, महज तीन बेवरेज प्लांट ही ऐसे हैं, जिन्होंने ग्राउंड वाटर के उपयोग के लिए एनओसी ले रखा है. नया नियम लागू होने से जिला प्रशासन खुद इस पर नजर रख सकेगा.

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