मुंगेर : सेंट वेलेंटाइन का संदेश पाश्चात्य देशों सहित देश के मेट्रो सिटी में पूर्व से ही लोकप्रिय रहा है, लेकिन वर्तमान में प्यार के इस पर्व ने बिहर को भी अपनी जद में ले लिया है. बाजारवाद के प्रभाव ने अन्य उत्सवों की तरह वेलेंटाइन डे को भी निशाना बनाना शुरू कर दिया है. हालांकि इस ओर युवा पीढ़ी सहजता से आकर्षित भी हो रही है.
वेलेंटाइन डे की परिकल्पना आपसी भाइचारे, सामाजिक सौहार्द व पारिवारिक संस्कारों के इर्द-गिर्द ही बुनी गयी थी, लेकिन कालांतर में प्यार जताने का यह खास दिन लड़का व लड़कियों के आकर्षण सहित सिल्वर स्क्रीन पर ही सिमट कर रह गया था.
इधर, समाज के बुद्धिजीवियों द्वारा वेलेंटाइन डे के स्वरूप को लेकर जताये गये विरोध को युवा पीढ़ी ने भी अंगीकार करना शुरू कर दिया है, जो आने वाले समय में हिंदुस्तानी कल्चर के अनुरूप वेलेंटाइन डे के उद्देश्य को भी सार्थकता प्रदान करेगी.
प्रेम का अनूठा पर्व
भारतीय संस्कृति में आपसी प्रेम को परिभाषित करने के लिए कई प्रकार के पर्व ऐतिहासिक काल से ही अस्तित्व में हैं. खासकर रक्षा बंधन, करवा चौथ, भातृ द्वितीया, मधुश्रवणी, वट सावित्री, बाल दिवस, शिक्षक दिवस जैसे पर्व हैं जिनमें पति-पत्नी, भाई-बहन व गुरु- शिष्य परंपरा को लेकर समर्पण का भाव उमड़ कर सामने आता है. बीते दशकों की बात करे तो ग्लोबलाइजेशन की वजह से विदेशी मूल्कों से शुरू हुए वेलेंटाइन डे की पहुंच गांव व कस्बों तक हो गयी है.
प्रेम को प्रेम ही रहने दें
समाजशास्त्री कहते हैं कि पाश्चात्य परंपरा का प्रचलन समाज में हो चुका है, इसमें प्रेम की भाषा को गलत अर्थो में परिभाषित नहीं करना चाहिए. वेलेंटाइन डे माता-पिता, भाई-बहन सहित सभी आत्मजनों से प्रेम जताने का दिन है. इसे सिर्फ प्रेमी-प्रेमिका के बीच उलझा कर रखना उचित नहीं है. ऐसे में भारतीय संस्कृति पर खतरा हो सकता है. डॉ प्रसाद कहते हैं कि अपने प्रियजनों को कार्डस व प्लावर के जरिये इजहार करने का अवसर है.