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68 डिसमिल भूमि के पेच में घोरघट पुल

मुंगेर: राष्ट्रीय उच्च पथ 80 पर मुंगेर एवं भागलपुर जिले के सीमा पर स्थित घोरघट पुल भूमि अधिग्रहण के पेच में फंसा है. वर्ष 2006 में क्षतिग्रस्त यह पुल वर्ष 2015 में भी नहीं बन पाया. यूं तो इस पुल पर बेली ब्रिज बना कर छोटे वाहनों का परिचालन किया जा रहा है. किंतु बड़े […]

मुंगेर: राष्ट्रीय उच्च पथ 80 पर मुंगेर एवं भागलपुर जिले के सीमा पर स्थित घोरघट पुल भूमि अधिग्रहण के पेच में फंसा है. वर्ष 2006 में क्षतिग्रस्त यह पुल वर्ष 2015 में भी नहीं बन पाया. यूं तो इस पुल पर बेली ब्रिज बना कर छोटे वाहनों का परिचालन किया जा रहा है. किंतु बड़े वाहनों के लिए मुंगेर से भागलपुर जाना मुश्किल भरा है.
2006 में क्षतिग्रस्त हो गया ब्रिज : वर्ष 2006 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने काफिले के साथ सुलतानगंज विश्व प्रसिद्ध श्रवणी मेला का उद्घाटन करने जा रहे थे. जैसे ही उनका काफिला गुजरा कि ब्रिज क्षतिग्रस्त हो गया. पुल की स्थिति यह हो गयी कि वह वाहनों का लोड सहने लायक नहीं बचा और इस पुल पर बड़े वाहनों के आवागमन पर रोक लगा दी गयी.
खो दिया एनएच का अस्तित्व : राष्ट्रीय उच्च पथ 80 को जोड़ने के लिए मनी नदी पर घोरघट बेली ब्रिज का निर्माण किया गया. लेकिन बेली ब्रिज जैसे का तैसा ही रह गया. धीरे-धीरे पुल की क्षमता का ह्रास हुआ और आज यह अपना अस्तित्व ही खो दिया. पुल की स्थिति यह है कि इस पर मात्र छोटे वाहनों का ही आवागमन होता है. जिसके कारण इस मार्ग ने एनएच का स्वरूप ही खो दिया. इस पुल से ट्रक व बस का परिचालन नहीं हो रहा है.
अधर में लटकी योजना : सरकार और नेशनल हाइवे ऑथरिटी ऑफ इंडिया के बीच समझौता हुआ कि बेली ब्रिज की जगह मजबूत और चौड़ा कर नया पुल का निर्माण कराया जाय. जिसके बाद पुल निर्माण के लिए निविदा आमंत्रित की गयी और वर्ष 2012 में पुल निर्माण का कार्य प्रारंभ हुआ. कार्य करने वाली एजेंसी ने तीन पाया का निर्माण कर जमीन से ऊपर भी उठा दिया. राज्य सरकार एवं जिला प्रशासन की उदासीनता के कारण वर्तमान में निर्माण कार्य बंद हो गया.
बगैर मुआवजे नहीं हटे 35 परिवार
घोरघट पुल निर्माण में पेच ही पेच है. कार्य प्रारंभ होने के साथ ही भूमि अधिग्रहण के लिए कार्य कर रही एजेंसी ने आवेदन दिया. लेकिन अबतक सरकार भूमि अधिग्रहण नहीं कर पायी. जिसके कारण निर्माण कार्य बंद पड़ा हुआ है. बताया जाता है कि 68 डिसमिल जमीन का अधिग्रहण जिला प्रशासन द्वारा किया जाना है. जिस पर लगभग 35 परिवार रह रहे है. बिना मुआवजा के लोग भूमि से हटने को तैयार नहीं हुआ और न्यायालय की शरण में चले गये. बताया जाता है कि न्यायालय ने मुआवजा दिये बिना अधिग्रहण की कार्रवाई नहीं करने का निर्देश दिया. जिसके बाद जिला प्रशासन ने पथ निर्माण अधियाची विभाग से मुआवजे की राशि का डिमांड किया.
राशि के अभाव में नहीं हो रहा अधिग्रहण
भूमि अधिग्रहण के लिए जिला प्रशासन के पास अब तक राशि नहीं भेजी गयी है. जिसके कारण अधिग्रहण की कार्रवाई ठप पड़ गयी है और निर्माण कार्य अधर में लटक गया.
टापू बना मुंगेर, अर्थ व्यवस्था प्रभावित
घोरघट बेली ब्रिज पर मुंगेर की अर्थव्यवस्था टिकी हुई थी. जब से ब्रिज क्षतिग्रस्त हुआ है यहां की अर्थ व्यवस्था पुरी तरह प्रभावित हो गयी है. क्योंकि भागलपुर के रास्ते ही मुंगेर में खपत होने वाले खाद्यान्न, गैस, पैट्रोलियम पदार्थ सहित अन्य समान मुंगेर बाजार पहुंचता था. लेकिन वर्ष 2006 से दूसरे मार्गो से आते है. जिस कर राशि अधिक खर्च होती है. व्यवसायी इस अधिक हुए खर्च की राशि आम जनता से वसूलती है. जिससे जनता पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ता है. कुल मिला कर यह कहा जा सकता है कि मुंगेर आज किसी टापू से कम नहीं है. माल का आयात-निर्यात सही मायनों में नहीं हो पा रहा है. हाल यह है कि यहां की अर्थव्यवस्था भी बुरी तरह प्रभावित हो रहा है.
केंद्र को भेजा गया डीपीआर : ललन सिंह
राज्य के पथ निर्माण मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने कहा है कि घोरघट पुल के भूमि अधिग्रहण से संबंधित सभी कानूनी मामलों को खत्म कर लिया गया है एवं इसका डीपीआर तैयार कर केंद्र सरकार को भेजा गया है. इसकी स्वीकृति मिलते ही टेंडर की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी जायेगी.

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