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साहित्य के बिना कोई भी समाज समृद्ध नहीं हो सकता : लतांत

फोटो संख्या : 8फोटो कैप्सन : कवि सम्मेलन में उपस्थित बुद्धिजीवी प्रतिनिधि , मुंगेरसमकालीन साहित्य मंच के तत्वावधान में रविवार को कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया. उसकी अध्यक्षता जनसत्ता महानगर संस्करण दिल्ली के संपादक प्रसून लतांत ने की. मुख्य अतिथि के रुप में डॉ शब्बीर हसन, विशिष्ट अतिथि यदुनंदन झा थे. गोष्ठी का संचालन […]

फोटो संख्या : 8फोटो कैप्सन : कवि सम्मेलन में उपस्थित बुद्धिजीवी प्रतिनिधि , मुंगेरसमकालीन साहित्य मंच के तत्वावधान में रविवार को कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया. उसकी अध्यक्षता जनसत्ता महानगर संस्करण दिल्ली के संपादक प्रसून लतांत ने की. मुख्य अतिथि के रुप में डॉ शब्बीर हसन, विशिष्ट अतिथि यदुनंदन झा थे. गोष्ठी का संचालन पत्रकार कुमार कृष्णन ने किया. प्रसून लतांत ने कहा कि आपकी रचनों की आवश्यकता समाज को है. कोई भी समाज साहित्य के बिना समृद्ध नहीं हो सकता. मुझे यह खुशी होती है कि समकालीन साहित्य मंच ने गजल पर काफी काम किया है. गजल हमे सांप्रदायिकता से ऊपर उठाती है. ऐसा अन्य विधाओं के माध्यम से संभव नहीं है. मौके पर कविता एवं गजल पाठ का आयोजन किया गया. जिसकी शुरुआत विकास की गजल से है. जिसके बोल थे… बेवफा होने से पहले बावफा हो जाउंगा, देखिए मत इस तरह से आइना हो जाउंगा. ज्योति कुमार सिन्हा ने अपनी कविता का पाठ किया. जिसमें उन्होंने कहा ‘ हमने देखा है सामने खंडहर होता हुआ घर और सहमा हुआ एक शहर ”. एहतेशाम आलम ने कहा … ‘ खुद का लंका जला दिया, तुमने ये क्या किया’. प्रो शब्बीर हसन ने कहा कि मर गयी कल एक गोरइया बिजली के खंभे से, मुर्दा जिस्म देख कर कांप गये मेरे हाथ”. अशोक आलोक के गजल के बोल थे ‘ दिल की बातों को बताऊं कैसे, ये जो रूठे है मनाऊं कैसे’. अनिरुद्ध सिन्हा के गजल के बोल थे ‘ खुद से रुठे तो मौसम बदल जायेंगे, दास्तां बन के अश्कों में ढल जायेंगे ‘. मौके पर कवि कुमार कर्ण, युदनंदन झा द्विज ने भी अपनी कविता का पाठ किया.

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